पीएम मोदी से मिले पद्मश्री करीमुल हक
-सिलीगुड़ी में चुनाव प्रचार करने आए थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी -करीमुल व मोदी गले मिले पू
-सिलीगुड़ी में चुनाव प्रचार करने आए थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
-करीमुल व मोदी गले मिले, पूछा एक-दूसरे का कुशलक्षेम इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी : पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव-2021 के तहत दलीय उम्मीदवारों के समर्थन में शनिवार को सिलीगुड़ी में प्रचार करने आए भाजपा के दिग्गज नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उत्तर बंगाल के जाने-माने समाजसेवी पद्मश्री करीमुल हक उर्फ 'बाइक एंबुलेंस' उर्फ 'एंबुलेंस दादा' ने भेंट की। अपने विशेष विमान से उड़ान भर कर पीएम मोदी जब बागडोगरा एयरपोर्ट पर उतरे तो वहां पहले से ही प्रतीक्षारत करीमुल हक उनके पास गए और भेंट की। दोनों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया व एक-दूसरे के गले मिले। वहीं दोनों ने एक-दूसरे से उनका कुशलक्षेम पूछा व अभिवादन किया।
उल्लेखनीय है कि 'एंबुलेंस दादा' के नाम से मशहूर करीमुल हक जलपाईगुड़ी जिले के माल प्रखंड के राजाडागा ग्राम पंचायत अंतर्गत धलाबाड़ी गाव के निवासी हैं। वह समाजसेवा के क्षेत्र में बड़ी मिसाल बन चुके हैं। अपने आस-पास के दर्जनों गावों के गरीब जरूरतमंदों को पिछले दशक भर से भी ज्यादा समय से वह नि:शुल्क बाइक एंबुलेंस सेवा देते आ रहे हैं। अब तक उन्होंने लगभग चार हजार लोगों को नि:शुल्क बाइक एंबुलेंस सेवा दी है। उनके झोंपड़ीनुमा घर में ही नि:शुल्क क्लिनिक भी चलती है जहा लोगों की कुछ स्वास्थ जाच भी हो जाती है और दवाएं भी मिल जाती हैं। इसके अलावा यहा-वहा से जुटा कर नए-पुराने कपड़े, दाना-पानी, किताब-कलम व कॉपी आदि से भी वह जरूरतमंदों की सेवा करते रहते हैं। करीमुल की कहानी दिलचस्प
कई जरूरतमंद विकलागों का घर बनवाने में भी करीमुल हक ने बड़ी सहायता की है। अब वह अपने घर के पास ही अपनी पुश्तैनी जमीन पर गाव केलोगों को चिकित्सा परिसेवा देने के लिए एक तीन मंजिला अस्पताल भी बनवा रहे हैं। करीमुल हक की कहानी बड़ी दिलचस्प है। वह पेशे से एक चाय बागान मजदूर हैं। एक निम्न वर्ग से ताल्लुक रखने के बावजूद उनकी सोच शुरू से ही समाज सेवा की दिशा में बहुत ऊंची रही। इसे तब और ज्यादा बल मिल गया जब एक घटना ने उनकी जिंदगी बदल कर रख दी। यह 1995 की बात है। एक दिन देर रात करीमुल की मां जफीरुन्निसा को दिल का दौरा पड़ा। वह यहां-वहा बहुत दौड़े पर कोई संसाधन न मिला। मां को अस्पताल न पहुंचाया जा सका सो मा चल बसीं। उस घटना ने करीमुल को अंदर तक झकझोर कर रख दिया। तब, उन्होंने प्रण लिया कि किसी को भी संसाधन के अभाव के चलते वह मरने नहीं देंगे और लोगों की स्वास्थ्य सेवा में जुट गए। शुरू-शुरू में रिक्शा, ठेला, गाड़ी, बस जो मिला उसी से रोगियों को अस्पताल पहुंचाने का काम करने लगे। उनके एंबुलेंस दादा बनने की कहानी कुछ यूं है कि वर्ष 2007 में एक दिन चाय बागान में काम करने के दौरान करीमुल का एक साथी मजदूर गश खाकर गिर पड़ा। उन्होंने आनन-फानन में बागान प्रबंधक की बाइक ली व उसे अस्पताल ले गए। उसी घटना से बाइक एंबुलेंस का आइडिया आया। फ्री बाइक एंबुलेंस सेवा
करीमुल हक ने एक पुरानी राजदूत मोटरसाइकिल खरीदी और शुरू कर दी फ्री बाइक एंबुलेंस सेवा। एक बार एक्सीडेंट के शिकार भी हुए जिसके चलते उनका एक पाव आज तक थोड़ा छोटा व टेढ़ा है। उस समय एक्सीडेंट से मोटरसाइकिल भी बेकार हो गई। तब, यहा-वहा से जैसे-तैसे करके पैसे जुटा कर वर्ष 2009 में उन्होंने एक नई बाइक खरीदी और अपनी नि:शुल्क एंबुलेंस सेवा को और बेहतर कर दिया। इसके बावजूद उन्हें ताने भी सुनने पड़े। कई ऐसे लोग रहे जिन्होंने शुरू-शुरू में उन्हें नौटंकी, पगला, आदि कह कर ताने भी कसे। मगर, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपने जज्बे को डिगने नहीं दिया। समाज सेवा को पूरी मेहनत व लगन से दिन-रात जारी रखा। फिर, वही हुआ जो होना था। उनकी मेहनत रंग लाई। उनके जज्बे को चहुंओर सराहना मिलने लगी। उनकी ख्याति उनके गाव की सीमा से बाहर भी जगह-जगह फैलने लगी और भारत सरकार के कानों तक जा पहुंची। फिर, वर्ष 2017 में भारत सरकार ने उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा। उसके बाद करीमुल हक की शोहरत सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जा पहुंची। इधर, बॉलीवुड भी उनके प्रभाव से अछूता नहीं रहा। अब बहुत जल्द उनकी जीवनी सिल्वर स्क्रीन के माध्यम से सबके सामने होगी। उनके जीवन पर अब फिल्म बनने जा रही है।