उत्तर बंगाल के इस स्थान पर बन रही विश्व की सबसे बड़ी सरस्वती प्रतिमा...
सरस्वती पूजा करीब है। धुपगुड़ी में इस अवसर के लिए विश्व की सबसे ऊंची सरस्वती प्रतिमा के माध्यम से रिकॉर्ड बनने जा रहा है।
धुपगुड़ी [रनी चौधरी]। जलपाईगुड़ी जिले के धुपगुड़ी में विश्व की सबसे ऊंची सरस्वती की प्रतिमा के मामले में रिकॉर्ड बनने जा रहा है। इसका निर्माण अंतिम चरण में है। 51 फीट की प्रतिमा बनाई जा रही है। इस प्रतिमा में दो या चार के स्थान पर आठ हाथ बनाए जा रहे हैं। गत वर्ष बांग्लादेश के ढाका विश्वविद्यालय में विश्व की सबसे बड़ी सरस्वती प्रतिमा 34 फीट की बनाई गई थी।
इस साल धुपगुड़ी की सरस्वती पूजा का खासियत यह रहेगी कि यहीं वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किया जाएगा। मानव व जंगली जानवरों के बीच होनेवाले संघर्ष को रोकने के उपाय बताए जाएंगे। बता दें कि सेंट्रल डुवार्स प्रेस क्लब द्वारा सरस्वती पूजा का भव्य आयोजन करीब 23 वर्ष से किया जा रहा है। गत वर्ष 15 फीट ऊंची प्रतिमा बनवाई गई थी।
क्लब के प्रेसीडेंट डॉ. कृष्णदेव ने बताया कि जब उन्हें पता चला कि बांग्लादेश में देवी सरस्वती की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाकर पूजा की गई तो उन्होंने इसे मात देने का निर्णय इसलिए किया कि भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता। लिहाजा इसके लिए सेक्रेटरी अर्णब साहा व अन्य सदस्यों से विमर्श किया। सबकी सहमति मिलने के बाद इस वर्ष 51 फीट की प्रतिमा बनवाने का निर्णय लिया गया। इसमें 15 कारीगर रात-दिन लगे हुए हैं। इस प्रतिमा के आठ हाथ बनाए जा रहे हैं। यह देवी मातंगी का स्वरूप है। प्रतिमा के निर्माण में करीब ढाई लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है।
उन्होंने बताया कि देवी मातंगी दस महाविद्याओं में नवें स्थान पर अवस्थित हैं। सामान्यतः देवी निम्न तथा नाना जनजातियों से सम्बंधित हैं। अन्य एक विख्यात नाम उच्छिष्ट चांडालिनी या महा-पिशाचिनी से भी देवी विख्यात हैं तथा देवी का सम्बन्ध नाना प्रकार की तंत्र क्रियाओं, विद्याओं से हैं। इंद्रजाल विद्या या जादुई शक्ति में देवी पारंगत हैं। साथ ही वाक् सिद्धि, संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में निपुण हैं, नाना सिद्ध विद्याओं से सम्बंधित हैं।
देवी केवल वचन द्वारा त्रिभुवन में समस्त प्राणियों तथा अपने घोर शत्रु को भी वश करने में समर्थ हैं, जिसे सम्मोहन क्रिया कहा जाता हैं। देवी सम्मोहन विद्या एवं वाणी की अधिष्ठात्री हैं। देवी का सम्बन्ध प्रकृति, पशु, पक्षी, जंगल, वन, शिकार इत्यादि से हैं। जंगल में वास करने वाले आदिवासी-जनजातियों से देवी मातंगी अत्यधिक पूज्य हैं। निम्न तथा जनजाति द्वारा प्रयोग की जाने वाली नाना प्रकार की परा-अपरा विद्या देवी द्वारा ही उन्हें प्रदत्त हैं।
देवी मातंगी, मतंग मुनि के पुत्री के रूप से भी जानी जाती हैं। देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध उच्छिष्ट भोजन पदार्थों से हैं, परिणामस्वरूप देवी, उच्छिष्ट चांडालिनी के नाम से विख्यात हैं, देवी की आराधना के लिए उपवास की आवश्यकता नहीं होती हैं। देवी की आराधना हेतु उच्छिष्ट सामाग्रियों की आवश्यकता होती है। इस देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं, किन्तु बौद्ध धर्म के प्रारंभ में देवी का कोई अस्तित्व नहीं था। कालांतर में देवी बौद्ध धर्म में मातागिरी नाम से जानी जाने लगी।
देवी मातंगी का सम्बन्ध मृत शरीर या शव तथा श्मशान भूमि से हैं। देवी अपने दाहिने हाथ पर महा-शंख (मनुष्य खोपड़ी) या खोपड़ी से निर्मित खप्पर, धारण करती हैं। पारलौकिक या इंद्रजाल, मायाजाल से सम्बंधित रखने वाले सभी देवी-देवता श्मशान, शव, चिता, चिता-भस्म, हड्डी इत्यादि से सम्बंधित हैं, पारलौकिक शक्तियों का वास मुख्यतः इन्हीं स्थानों पर हैं। तंत्रो या तंत्र विद्या के अनुसार देवी तांत्रिक सरस्वतीनाम से जानी जाती हैं एवं श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरीके रथ की सारथी तथा मुख्य सलाहकार हैं।