अयोध्या में श्रीराम मंदिर को लेकर 5 अगस्त को भूमिपूजन, कार सेवा में गुंबद पर भगवा लहराने में शहीद हुए थे कोठारी बंधु
बहन पूर्णिमा कोठारी ने कहा भूमि पूजन में अब तक नही मिला निमंत्रण। मुझे गर्व है मेरे भाइयों की शहादत बेकार नही गया। सम्मलित होता तो अपने भाई से मिलने की अनुभूति प्राप्त होती।
सिलीगुड़ी, अशोक झा। अयोध्या में श्रीराम मंदिर को लेकर पांच अगस्त को भूमिपूजन होने जा रहा है। इसके लिए जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं वही दूसरी ओर इसे रोकने का षड्यंत्र भी चल रहा है। भूमिपूजन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है।
हालांकि राम मंदिर आंदोलन में जान गंवाने वाले जिन लोगों के परिजनों को भूमिपूजन का बुलावा नहीं मिला है, वो बेहद हताश व निराश हैं। बंगाल से राम मंदिर आंदोलन में जान गंवाने वाले कोठारी बंधुओं के परिजनों का भी यही हाल है। इस परिवार को इस बात का गर्व है कि उनके भाइयो की शहादत बेकार नही गयी।
इस संबंध में दैनिक जागरण ने रामजन्म भूमि आंदोलन में अपना प्राण न्योछावर करने वाले राम कुमार कोठारी व शरद कोठारी की बहन पूर्णिमा कोठारी से बात की। पूर्णिमा कोठारी के आंखों में खुशी और गम के आंसू है। खुशी इस बात की जिस काम के लिए उनके भाइयों ने अपना जीवन अर्पण किया वह साकार हो रहा है। उनके आहुति के 30 वर्षों बाद 5 अगस्त को रामजन्म भूमि स्थल पर भव्य व दिव्य श्रीराम मंदिर निर्माण का भूमि पूजन हो रहा है। रोना इसलिए आ रहा है कि इस मौके पर शामिल होने के लिए अब तक निमंत्रण नहीं मिला है।
कोठारी बंधुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी ने दैनिक जागरण से कहा की मुझे आज भी वह गूंज सुनाई देती है जब भाइयों ने कहा था रामलला हम आएंगे मंदिर वही बनायेगें। बच्चा - बच्चा राम का जन्म भूमि के काम का। पूर्णिमा कोठारी बताती है कि भाइयों की शहादत के बाद स्वामी राम सुखदाख ने हमको बुलाया था। कहा था कि मेरे भाइयों की कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी।
हिंदू समाज हमेशा उनको याद रखेगा। हमकों विश्वास है कि हमको भी भूमिपूजन में शामिल होने के लिए जरूर निमंत्रण मिलेगा। शामिल होता तो समझता कि अपने खोए भाइयों का प्यार व दुलार मिल गया।
30 साल की घटन आज भी है ताजा, एक -एक बात है याद
पूर्णिमा कोठारी ने कहा कि भले ही इस बात को 30 वर्ष हो गए लेकिन उन्हें यह सारी बाते आज की लगती है। सभी यादे ताजा है यह मलिन नही हुई है। दैनिक जागरण से अंतिम यात्रा को साझा करते पूर्णिमा कोठारी कहतीं है कि 30 अक्टूबर को कारसेवा के 22 अक्टूबर 1990 को मेरे भाई घर से अयोध्या के लिए निकले थे। उसी साल 16 दिसंबर को मेरी शादी होने वाली थी।
भाइयों ने कहा था प्रभु श्रीराम का काम कर लौट तुम्हारी शादी की तैयारी करेंगे। उस दिन रात डेढ़ बजे वाराणसी के लिए ट्रेन रवाना होती है, लेकिन उनको पता चलता है कि उनको स्टेशन पर पुलिस गिरफ्तार कर लेगी। तभी मेरे भाई समेत 80 लोग वाराणसी स्टेशन से पहले ही ट्रेन से उतर जाते हैं।
अयोध्या की ओर ये सभी पैदल ही चल पड़ते हैं। 7 दिन में सभी अयोध्या पहुंचते है। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी। पूरे राज्य को जेल में तब्दील कर दिया गया था। मेरे भाई बहादुर और निर्भीक थे। सभी बाधाओं को पार करते हुए कारसेवा के लिए 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंच गए थे। भाइयों ने विवादित गुंबद में सबसे पहले भगवा लहराया था। गोली चली थी जब अशोक सिंघल घायल हो गए थे, तब उन्होंने अपना धैर्य खो दिया था और सेवा करने के लिए आगे कदम बढ़ाया था। उसके बाद विवादित स्थल पर कुछ भी नही होने की बात सरकार की ओर से फैलाई गई। इससे और आक्रोश फैल गया। तय हुआ कि 2 नवम्बर को कारसेवा किया जाएगा। उसी दौरान बढ़ते रामभक्तों को रास्ते मे घेरकर गोलियों से भून दिया गया।
पुलिस की गोली में मेरे दोनों भाइयों के साथ कई कार सेवकों व साधुसंतों ने रामजन्म भूमि के लिए अपने प्राण दे दिए। उसके बाद भी हमारा परिवार 1991 व 1992 कारसेवा में भाग लिया। 12 वर्ष बाद पिता और 25 वर्ष बाद मां बैकुंठ चली गयी।