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कालरात्रि की पूजा कर मांगा अभय का वरदान

जागरण संवाददाता सिलीगुड़ी 19 अप्रैल यानि सोमवार को चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि है। इस ि

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Apr 2021 05:22 PM (IST)Updated: Mon, 19 Apr 2021 11:39 PM (IST)
कालरात्रि की पूजा कर मांगा अभय का वरदान
कालरात्रि की पूजा कर मांगा अभय का वरदान

जागरण संवाददाता ,सिलीगुड़ी: 19 अप्रैल यानि सोमवार को चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि है। इस दिन नवरात्रि का सातवा दिन है। आज श्रद्धालुओं ने मां की पूजा के साथ अभयदान का वरदान मांगा। नवरात्रि की सप्तमी तिथि में मा कालरात्रि की पूजा की जाती है। मा कालरात्रि की पूजा करने से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। मा कालरात्रि की पूजा से शनिदेव भी शात होते हैं। आचार्य पंडित यशोधर झा के अनुसार कालरात्रि का शाब्दिक अर्थ है जो सब को मारने वाले काल की भी रात्रि या विनाशिका हो। सनातनी आस्था है कि सत्कर्म से अज्ञान का विनाश होता है और अमरत्व मिलता है। तो, यह साधना की शक्ति से अज्ञान की समाप्ति की कालरात्रि है। यह ज्ञान की संप्राप्ति की महारात्रि है। ध्यातव्य है कि यह अमरत्व शरीर का नहीं, शरीरी का होता है, उसके अच्छे कर्मो का होता है। तो, यह सत्कर्मो की कीíत का अमरत्व है। विदित हो कि आर्ष ग्रंथों में कुसंस्कार और अज्ञान को मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु के रूप में वíणत किया गया है, जो उसके रक्त और बीज(वीर्य) के माध्यम से संचरित होते हैं। साधना की अग्नि से ये रक्तबीज रूपी राक्षस विनष्ट होते हैं। इस तरह साधकों को समझना चाहिए कि कालरात्रि क्या है और महारात्रि क्या है। कालरात्रि को रूप में भयंकरा, साधकों के लिए अभयंकारा जबकि भक्तों के लिए शुभंकरी कहा गया है, क्योंकि उनके लिए ये समस्त शुभों की आश्रयस्थली हैं। इसे ऐसे समझें कि उद्दाम ऊर्जा का विस्फोट अपने स्वरूप में भयंकर लेकिन निमित्त में शुभ होता है। स्मरण रहे कि साकेतिक रूप से ही आदि शक्ति (मां) के इस उग्र-स्वरूप में निरूपित किया गया है। जब इन सप्त चक्रों की सुषुप्त ऊर्जा उद्घाटित होती है, तो इस सृष्टि के कण-कण में अपरिमित ऊर्जा का प्रवाह होता है।काल समय को कहते हैं और मृत्यु को भी। सनातन कहता है कि काल(समय) ही काल(मृत्यु) है। यह काल(मृत्यु का कारण) हर काल(क्षण) आपको ग्रास बनाता जाता है. खाता जाता है और एक दिन आप पूरी तरह काल-कवलित(भौतिक देह समाप्त) हो जाते हैं। अब देखें कि चराचर विश्व की अधीश्वरी, जग को धारण करनेवाली, संसार का पालन एवं संहार करने वाली तथा तेज:स्वरूप भगवान विष्णु की अनुपम शक्ति पराम्बा के सातवें रूप को कालरात्रि या महाकाली कहा गया है।

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