Kartarpur Corridor: जीएस होरा बोले, भारत-पाक के बीच पिघलेगी दुश्मनी की बर्फ
Kartarpur Corridor करतारपुर साहिब रावी नदी के पार डोरा बाबा नानक से मात्र चार किलोमीटर दूर 1522 में बनाया था। विभाजन के बाद यह पाकिस्तान में चला गया।
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी। Kartarpur Corridor: विभाजन के बाद से ही भारत पाक के बीच संबंध कभी सामान्य नहीं रहे। दोनों देशों के संबंधों की गाड़ी कभी पटरी पर आई ही नहीं। समय-समय पर संबंध ठीक करने की कोशिश जरूर होती रही। ऐसे में गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के अवसर पर सिख संप्रदाय की वर्षो की मुराद करतारपुर साहिब कॉरिडोर खुलना इस बात का सबूत है कि अब भारत पाक के बीच दुश्मनी की बर्फ पिघल जाएगी। क्योंकि सिख जहां गुरुनानक देव जी को गुरू के रूप में पूजा व वंदना करते हैं, वहीं मुसलमान भी उन्हें पीर मानते हैं। यह सांप्रदायिक सद्भाव का मिसाल बनेगा। इसलिए यह कॉरिडोर आने वाले दिनों में दोनों देशों के संबंध में मिठास घोलेगा। यह कहना है गुरुसिंह साहेब गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष सह लायंस क्लब के पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जीएस होरा का। वे दैनिक जागरण के लोकप्रिय कार्यक्रम जागरण विमर्श में बतौर अतिथि चर्चा कर रहे थे। आज का विषय था 'करतारपुर कॉरिडोर दोस्ती या खतरे का रास्ता'।
जीएस होरा ने कहा कि इस कॉरिडोर के खुलने से सिख श्रद्धालु दूरबीन से गुरूद्वारा साहिब के दर्शन नहीं करेंगे। वे गुरुद्वारा साहिब की पवित्र भूमि पर जाएंगे। वैश्विक स्तर पर खराब छवि के संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को करतारपुर कॉरिडोर के माध्यम से खुद को उदार राष्ट्र के तौर पर पेश करने का मौका मिला है। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा से मात्र चार किलोमीटर दूर करतारपुर साहिब को भारत में डेरा बाबा नानक गुरूद्वारा से जोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि यह सिख समुदाय के लिए मनमांगी मुराद से कम नहीं है। इसके लिए उनका 72 वर्षों का अरदास पूरा हुआ। सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष यहीं गुजारे थे। यहां भारतीय श्रद्धालुओं को बिना वीजा के पाकिस्तान के नारोबल में करतारपुर साहिब का दर्शन हो पाएगा। यह सिख समुदाय के लिए यादगार क्षण है। भारत सरकार ने पाकिस्तान के तल्ख तेवरों की परवाह नहीं करते हुए पाकिस्तान के साथ समझौता कर इसे खुलवाया। करतारपुर साहिब कॉरिडोर सिखों के लिए धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व रखता है। करतारपुर साहिब रावी नदी के पार डोरा बाबा नानक से मात्र चार किलोमीटर दूर 1522 में बनाया था। विभाजन के बाद यह पाकिस्तान में चला गया।
चर्चा के दौरान बताया कि करतारपुर कॉरिडोर के निर्माण की बात आज की नहीं है। वर्ष 1999 में स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने लाहौर बस सेवा के साथ सबसे पहले यह मांग की थी। वर्ष 2000 में पाकिस्तान ने भारत की सीमा में पुल निर्माण के जरिए भारतीय सिख तीर्थयात्रियों को बिना पासपोर्ट और वीजा गुरुद्वारा के दर्शन की अनुमति दी थी। उसके बाद 2018 में इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में इस बात को उठाया गया। राष्ट्र की आकांक्षा देश की धार्मिक और निजी भावनाओं से उपर नहीं हो सकती। दोनों देश के अमन पंसद लोगों के लिए यह कॉरिडोर एक बंद दरवाजा था। मेरा तो मानना है कि पाकिस्तान को धार्मिक स्थल के जरीये तिजारत बंद कर देना चाहिए। उन्हें श्रद्धालुओं से 20 डॉलर लेने से स्पष्ट मना कर देना चाहिए। इसके माध्यम से दोनों देश के बीच संबंधों में विश्वास बढ़ेगा। जहां तक इसके आड़ में किसी खतरे की बात है तो हमारी सुरक्षा एजेंसियां सभी प्रकार से मुंहतोड़ जबाव देने के लिए तैयार है।
होरा ने कहा कि वे यहां से 80 श्रद्धालुओं के साथ करतारपुर जाएंगे। गुरू की कृपा रही तो किसी भी परिस्थिति में अब यह बंद नहीं होने वाला। इसकी अगुवाई वे स्वयं करेंगे। कार्यालय आए अतिथि का स्वागत वरिष्ठ समाचार संपादक गोपाल ओझा और महाप्रबंधक सुभाशीष जय हालदार ने किया। चर्चा में दैनिक जागरण की ओर से राघवेंद्र शुक्ला, विपिन राय अशोक झा व छायाकार संजय साह आदि मौजूद थे।