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यदि ऐसा हुआ तो 12000 से अधिक एचआईवी मरीजों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी

सरकार जहां एचआईवी तथा एड्स के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह फूंक रही है वहीं दूसरी ओर मरीजों के इलाज के लिए बने एआरटी सेंटरों का हाल बुरा है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 08 Jul 2019 10:39 AM (IST)Updated: Mon, 08 Jul 2019 10:39 AM (IST)
यदि ऐसा हुआ तो 12000 से अधिक एचआईवी मरीजों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी
यदि ऐसा हुआ तो 12000 से अधिक एचआईवी मरीजों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी

सिलीगुड़ी, विपिन राय। केंद्र और राज्य सरकार एक ओर जहां एचआईवी तथा एड्स के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह फूंक रही है वहीं दूसरी ओर एचआईवी पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए बने एआरटी सेंटरों का हाल बुरा है। आलम यह है कि एआरटी सेंटर में डॉक्टर नहीं हैं। जिसकी वजह से एचआईवी पीड़ित मरीजों की चिकित्सा बाधित हो रही है।

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दार्जिलिंग जिले में भी एआरटी सेंटरों की यही स्थिति है। स्वास्थ्य विभाग सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दार्जिलिंग जिले के दोनों एआरटी सेंटरों में पिछले कई महीने से डॉक्टर नहीं हैं। यहां काम करने वाले टेक्नीशियन ही एचआईवी मरीजों की चिकित्सा कर रहे हैं। जिसकी वजह से एचआईवी मरीजों की जान आफत में फंस गई है। एआरटी सेंटर में डॉक्टर नहीं होने से सिर्फ सिलीगुड़ी के एचआईवी मरीज ही नहीं बल्कि उत्तर बंगाल के चार जिलों पर इसका सीधा असर पड़ रहा है।

उत्तर बंगाल में दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, अलीपुरद्वार तथा जलपाईगुड़ी जिले के लिए मात्र दो एआरटी सेंटर हैं। इनमें से एक उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज तथा दूसरा दार्जिलिंग सदर अस्पताल में है। इन सेंटरों की हालत भी खस्ता है। डॉक्टर नहीं रहने के कारण यहां काम करने वाले अन्य कर्मचारी भी बस किसी तरह से दिन काट रहे हैं और सरकार से तनख्वाह लेने में लगे हुए हैं। जबकि एचआईवी मरीजों की चिकित्सा डॉक्टरों के नहीं रहने से पूरी तरह से राम भरोसे है। इन चारों जिलों को मिलाकर करीब 12000 से अधिक एचआईवी मरीजों की जिंदगी खतरे में है। एड्स पीड़ित मरीजों के संगठन सहित विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों ने सरकार से कई एआरटी सेंटरों की संख्या बढ़ाने की मांग की है।

यहां बता दें कि एआरटी का मतलब एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी है। इसी थेरेपी से एचआईवी मरीजों की जान बचती है। जिस तरह से उत्तर बंगाल में एचआईवी मरीजों की संख्या बढ़ रही है,एसके अनुसार और ज्यादा एआरटी सेंटर खोलन की जरूरत है। जबकि डॉक्टरों के नहीं होने से उल्टे यह बंद होने के कगार पर हैं। ऐसे एआरटी सेंटरों का संचालन राज्य सरकार नहीं करती है। केंद्र सरकार के अधीन नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन नाको की जिम्मेदारी एआरटी सेंटर चलाने की है।

नाको के वेबसाइट से जो जानकारी मिली है,उसके अनुसार दार्जिलिंग जिले में ही कम से कम 3 एआरटी सेंटर होने चाहिए। दार्जिलिंग जिले में जिला अस्पताल का दर्जा दो अस्पतालों को मिला हुआ है। एक दार्जिलिंग सदर अस्पताल तो दूसरा सिलीगुड़ी जिला अस्पताल है। इसमें दार्जिलिंग सदर अस्पताल में एआरटी सेंटर है। जबकि सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में एआरटी सेंटर नहीं है। हां उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एआरटी सेंटर है। अब सबसे अश्चर्यजनक बात यह है कि दो मात्र एआरटी सेंटर में भी पिछले कई महीने से चिकित्सक नहीं है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि कोई भी डॉक्टर एआरटी सेंटर मेंमरीजों की चिकित्सा करना नहीं चाहते। क्योंकि उन्हें बहुत कम तनख्वाह दी जाती है।

सूत्रों के अनुसार एआरटी सेंटर के डॉक्टरों को प्रतिमाह करीब तीस हजार रुपये की तनख्वाह मिलती है। अब भला इतनी कम तनख्वाह में कौन डॉक्टर काम करेगा। यहां मोटी तनख्वाह पर डॉक्टर नहींे मिलते। जाहिर है इतनी कम तनख्वाह में डॉक्टर मिलना मुश्किल ही नहीं असंभव सा भी है।

सूत्रों के अनुसार एआरटी सेंटरों में डॉक्टरों की नियुक्ति की जिम्मेदारी भी नाको की ही है। इन्हें तनख्वाह भी नाको की ओर से ही दी जाती है। राज्य सरकार की इस मामले में कोई जिम्मेदारी नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार एआरटी सेंटरों की खस्ताहाली की वजह भी यही है। नाको और राज्य सरकार के बीच खींचतान से भी समस्या बढ़ी है। इस संबंध में सिलीगुड़ी के प्रमुख स्वास्थ्य कार्यकर्ता सोमनाथ चटर्जी का कहना है कि एआरटी सेंटरों में डॉक्टरों का नहीं होना, एचआईवी एड्स मरीजों की जान से खिलवाड़ है।

एचआईवी मरीजों की नियमित चिकित्सा जरूरी है। इसके अलावा उन्हें नियमित रूप से दवा भी लेनी पड़ती है। चटर्जी ने कहा एचआईवी जानलेवा बीमारी नहीं है। अगर एआरटी सेंटर में रोगी की नियमित चिकित्सा हो और उन्हें दवा मिलती रहे तो वह आराम से 20-25 साल तक जी सकते हैं। उनकी जान को खतरा नहीं है। लेकिन सबसे बड़ी बात है समय पर चिकित्सा एवं दवा का मिलना। एड्स की दवा काफी महंगी होती है। हर कोई इस दवा को खुले बाजार से नहीं खरीद सकता। यह दवा एआरटी सेंटरों से ही मुफ्त मिलती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ही एआरटी सेंटर खोले गए हैं।

दार्जिलिंग जिले के दोनों सेंटर में डॉक्टरों का नहीं होना काफी चिंता का विषय है। उन्होंने इस मामले में राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग की। सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि आज के दिन कोई भी डॉक्टर इतनी कम तनख्वाह में काम नहीं करेगा। राज्य सरकार नाको पर इसकी जिम्मेदारी देकर पल्ला नहीं झाड़ सकती। उन्हें चिकित्सा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी नाको के साथ-साथ राज्य सरकार की भी है।

उन्होंने तत्काल सभी सेंटरों में डॉक्टरों की नियुक्ति की मांग की। साथ ही सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में भी एआरटी सेंटर खोलने की मांग उन्होंने रखी है। सोमनाथ चटर्जी का कहना है कि यदि एआरटी सेंटरों में डॉक्टर नहीं होते तो इसके कामकाज पर सवाल उठना लाजमी है। आने वाले दिनों में ये सेंटर बंद भी हो सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो 12000 से अधिक एचआईवी मरीजों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी। उन्होंने आगे कहा कि एचआईवी मरीज हर कहीं जा कर दवा ले भी नहीं सकते। एचआईवी मरीजों की पहचान उजागर नहीं की जा सकती। इसलिए जल्द से जल्द डॉक्टरों की नियुक्ति होनी चाहिए।

क्या कहते हैं रोगी कल्याण समिति के चेयरमैन

इस संबंध में जब उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के रोगी कल्याण समिति के चेयरमैन डॉ रुद्रनाथ भट्टाचार्य से बातचीत की गई तो उन्होंने माना कि 80 एआरटी सेंटरों में डॉक्टरों का नहीं होना काफी चिंताजनक है। रुद्रनाथ भट्टाचार्य ने कहा कि इस मामले की जानकारी राज्य के स्वास्थ्य विभाग को दे दी गई है। एआरटी सेंटरों को चलाने में राज्य स्वास्थ्य विभाग की बहुत अधिक भूमिका नहीं होती है। क्योंकि इसका संचालन नाको से होता है। एआरटी सेंटर में डॉक्टरों के नहीं होने का मुख्य कारण उनकी तनख्वाह काफी कम होना है। नाको को तनख्वाह बढ़ाने की दिशा में पहल करनी चाहिए। इसके साथ ही रुद्रनाथ भट्टाचार्य ने उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के एआरटी सेंटर में स्वैच्छिक रूप अपनी सेवाएं देने की भी पेशकश की।

यहां बता दें कि डॉक्टर भट्टाचार्य पहले उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में ही कर्तब्यरत थे। उन्होंने एचआईवी एवं एड्स मरीजों के कल्याण के लिए कई कार्य किए। उन्होंने एचआईवी संक्रमित लोगों को एकजुट किया। इन रोगियों की एक स्वयंसेवी संगठन खड़ा करने में भी बड़ी भूमिका निभाई। अब एआरटी सेंटरों में डॉक्टरों के नहीं होने से रुद्रनाथ भट्टाचार्य चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि वह उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के एआरटी सेंटर में अपनी सेवा निशुल्क देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने राज्य सरकार को एक प्रस्ताव भी भेजा है। डॉक्टर भट्टाचार्य के अनुसार यदि राज्य सरकार उनके प्रस्ताव को मंजूरी दे देती है तो वह उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के एआरटी सेंटर में एचआईवी मरीजों की निशुल्क चिकित्सा करने लगेंगे।

लगातार बढ़ रही है मरीजों की संख्या

सिलीगुड़ी तथा आसपास के जिलों में एचआईवी मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के अलावा सिलीगुड़ी,जलपाईगुड़ी जिला तथा अलीपुरद्वार जिला में एचआईवी मरीजों की संख्या 12 हजार के पार हो चुकी है। इनमें गरीब लोगों की संख्या ज्यादा है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता सोमनाथ चटर्जी के अनुसार सेक्स के मामले में अमीर लोगों मुकाबले गरीब लोग कम जागरूक हैं। असुरक्षित यौन संबंध के कारण ही एचआईवी मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है। 


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