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जगह-जगह मनाई गई ईद मीलाद-उन-नबी

इस्लाम धर्म के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का 1452वा जन्मदिवस मनाया

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Oct 2021 09:30 PM (IST)Updated: Tue, 19 Oct 2021 09:31 PM (IST)
जगह-जगह मनाई गई ईद मीलाद-उन-नबी
जगह-जगह मनाई गई ईद मीलाद-उन-नबी

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : इस्लाम धर्म के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का 1452वा जन्मदिवस मंगलवार 19 अक्टूबर को, इस्लामी कैलेंडर के 12 रबी-उल-अव्वल को देश-दुनिया के साथ-साथ यहा भी मनाया गया। इस बार कोरोना सुरक्षा प्रोटोकॉल के तहत शहर व आसपास में कहीं भी जुलूस-ए-मोहम्मदी नहीं निकाला गया। अपने-अपने इलाकों में लोगों ने छोटे स्तर पर सामूहिक रूप में अथवा व्यक्तिगत रूप में अपने-अपने घरों में ही ईद मीलाद-उन-नबी मनाया। इस उपलक्ष्य में कर्बला कब्रिस्तान इंतजामिया कमेटी की ओर से, बर्दवान रोड के झकार मोड़ के निकट कर्बला में जिक्त्र की महफिल आयोजित की गई। जहा शहर व आसपास के उलेमाओं ने हजरत मोहम्मद साहब के जीवन, आदर्श, व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विविध पहलुओं से लोगों को अवगत कराया। कहा कि, वह मानवता के मसीहा थे। वर्ष 570 ई. में उनका जन्म अरब के मक्का में हुआ। उन्होंने युवावस्था से ही लोगों को सद्कमरें का संदेश देना शुरू किया। उस जमाने में उन्होंने, एक 25 साल के युवा होने के बावजूद अपना प्रथम विवाह अपने से 15 वर्ष बड़ी, 40 साल उम्र की एक विधवा हजरत खदीजा से किया। उन्होंने स्वयं विधवा विवाह कर समाज को विधवा विवाह का संदेश दिया। जबकि, उस जमाने में इस बाबत सोचना भी गुनाह समझा जाता था। अरब में बेटियों के जन्म लेने पर लोग उसे दफन तककर देते थे। उन्होंने इसका घोर विरोध किया। बेटी को बचाने, व उसे बेटे के बराबर समझे जाने ही नहीं बल्कि विवाह के बाद भी बेटी को पैतृक संपत्ति में से उसका हक देने की वकालत की। उन्होंने गुलाम प्रथा का भी विरोध किया और गुलामों को आजाद करना धर्म बताया। शराब, जुआ, अनैतिक संबंध आदि बुराइयों से सबको रोका। उन्होंने यह संदेश दिया कि मजदूर को उसकी मजदूरी उसका पसीना सूखने से पहले अदा की जाए। हर किसी को बराबरी का हक दिया जाए। मस्जिदों में जो पहले आए वह पहली कतार में रहे और जो बाद में आए वह पिछली कतार में रहे।चाहे बादशाह हो, चाहे गुलाम। उन्होंने सबके लिए समानता का सिद्धात दिया। कहा कि, इंसान अल्लाह का बंदा है और अल्लाह के बंदों में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। यहा तक कि उन्होंने इस्लाम के मानने वालों को यह सीख भी दी कि जो इस्लाम को नहीं मानते उनके साथ भी नरमी और सद्-व्यवहार से पेश आएं। उन्होंने शिक्षा पर भी खूब जोर दिया।यह नसीहत भी दी कि अगर शिक्षा हासिल करने के लिए दूर देश चीन तक की यात्रा करनी पड़े तो करो। हर कठिनाई उठाओ लेकिन शिक्षा जरूर हासिल करो। उन्होंने लोगों को अमानत में खयानत नहीं करने, सबके साथ बराबरी का व्यवहार और न्याय करते हुए पूरी ईमानदारी के साथ जीवन जीने का दर्शन दिया। वह वास्तव में अल्लाह ताला के प्यारे पैगंबर और समाज व संसार के मुक्तिदाता थे। इस दिन ईद मीलाद-उन-नबी के उपलक्ष्य में आयोजित उक्त जिक्त्र की महफिल के साथ ही साथ देश दुनिया में अमन, चैन व भाईचारे की दुआ भी की गई। इस अवसर पर जरूरतमंदों के बीच ब्लैंकेट भी वितरित किए गए। इसमें कर्बला कब्रिस्तान इंतजामिया कमेटी के अध्यक्ष कलीम अख्तर अशरफी व अन्य कई सम्मिलित रहे। इस दिन उर्दू सोसायटी (सिलीगुड़ी) की ओर से भी जामा मस्जिद (हिलकार्ट रोड) में महफिल-ए-नूर का आयोजन किया गया। इसमें उलेमाओं ने हजरत मोहम्मद साहब के जीवन, दर्शन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विविध पहलुओं से लोगों को अवगत कराया। इसमें फिरोज अहमद खान व अन्य कई सम्मिलित रहे। इसके अलावा भी, हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर सोमवार शाम नूर-ए-मुजस्सम नामक संस्था की ओर से मोहम्मद राजू आदि के संयोजन में भी ईद मीलाद-उन-नबी समारोह का आयोजन किया था जिसमें काफी संख्या में लोग शामिल हुए। इसके अलावा भी जगह-जगह विभिन्न संगठन व संस्थाओं की ओर से विविध रूप में ईद मीलाद-उन-नबी मनाई गई।

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