Move to Jagran APP

दार्जिलिंग हिल्स चुनाव में गोरखालैंड होगा अहम मुद्दा

-पार्टी नहीं व्यक्ति विशेष होगा चुनाव का केंद्र -बिमल गुरुंग के उम्मीदवारों को हिल्स टीएम

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 04:31 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 04:31 PM (IST)
दार्जिलिंग हिल्स चुनाव में गोरखालैंड होगा अहम मुद्दा
दार्जिलिंग हिल्स चुनाव में गोरखालैंड होगा अहम मुद्दा

-पार्टी नहीं व्यक्ति विशेष होगा चुनाव का केंद्र

loksabha election banner

-बिमल गुरुंग के उम्मीदवारों को हिल्स टीएमसी का मिला समर्थन

भाजपा भी संविधान के दायरे में समाधान का दे रही विश्वास

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : दार्जिलिंग पहाड़ के सभी तीन विधानसभा सीट कालिम्पोंग, कर्सियांग और दार्जिलिंग में एक बार फिर से चुनावी मुद्दा गोरखा अस्मिता यानि गोरखालैंड बनने की ओर तेजी से बढ़ा है। इसका प्रमुख कारण है गोरखा जनमुक्ति मोर्चा सुप्रीमो बिमल गुरुंग अपने चुनावी घोषणा पत्र में पहला मुद्दा गोरखालैंड बनाना। इस मुद्दा से प्यार करने वाले हिल्स के लोगों के अलावा तराई और डुवार्स के गोरखाओं का वोट भी गोजमुमो बटारने की कोशिश में है। यहां गोरखाओं को वोट तृणमूल उम्मीदवार को देने की बात की जा रही है। ठीक इसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी की ओर से तराई डुवार्स और हिल्स की समस्या का समाधान संविधान के दायरे में रहकर करने का आश्वासन दिया जा रहा है। इतना ही नहीं तीनों विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कराने के लिए भाजपा की ओर से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दार्जिलिंग में रात्रि विश्वास भी करने वाले है। 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही सभी चुनावों में यह प्रमुख मुद्दा बनता रहा है। इस मुद्दे का नाम चाहे कुछ और ही क्यों ना कर लिया गया हो। अलग राज्य गोरखालैंड की मांग को पूरा कराने की आस में यहां के लोग जीते और मरते है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा बिमल गुरुंग ने ममता बनर्जी को तीसरी बार सत्ता में लाने के लिए पूरा दमखम लगा दिया है। हिल्स के तीनों सीटों के अलावा वह तराई व डुवार्स में भी आठ दस सीटों (जो प्रस्तावित गोरखालैंड में है) में जीत दर्ज कराने में लगे है। यह उनकी ही रणनीति का हिस्सा था कि माटीगाड़ा नक्सलबाड़ी विधानसभा क्षेत्र में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार कैप्टन नलिनी सिंह राय को नामांकन करने के बाद हटना पड़ा। वहां पूर्व आरटीओ गोरखा संतान राजेन सुंदास को तृणमूल कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया। इसके पीछे भी गहरी सोच छुपी हुई है। माटीगाड़ा नक्सलबाड़ी विधानसभा क्षेत्र में करीब 55 हजार मतदाता गोरखा है। गोरखालैंड आंदोलन और जीटीए समझौता के समय भी माटीगाड़ा नक्सलबाड़ी विधानसभा क्षेत्र से 150 मौजे को इसमें शामिल करने की मांग की गयी थी। विरोध होने के बाद यह बाद ठंडे बस्ते में चले गये। गोरखालैंड आंदोलन को लेकर माटीगाड़ा, बागडोगरा, अपर बागडोगरा, सैनिकपुरी, मिलनमोड़, देवीडांगा,भूजियापानी, खपरैल और कदमतल्ला समेत अन्य भागों में आंदोलन की आग सुलगती रही थी। यहां लगभग एक लाख राजवंशी वोटर भी माटीगाड़ा में है। अतुल राय समेत अन्य राजवंशी नेताओं के साथ तालमेल कर बिमल गुरुंग माटीगाड़ा सीट ममता बनर्जी के झोली में डालना चाहते है। इसमें दो फायदा बिमल गुरुंग को मिल सकता है। एक तो पिछले तीन वर्षो से फरारी के हालत में कमजोर संगठन को मजबूती प्रदान होगी और दूसरा सदन के अंदर गोरखालैंड और गोरखाओं की आवाज बुलंद करने वाला प्रतिनिधि मिल जाएगा। इतना ही नहीं गोरखालैंड आंदोलन के जन्मदाता स्वर्गीय सुभाष घींिसंग की पार्टी गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा सुप्रीमा मन घीसिंग ने भाजपा के उम्मीदवार को समर्थन देने का निर्णय लिया है। वह भी इसलिए कि गोरखाओं के 11 जाति को जनजाति का दर्जा देने के साथ लोकसभा चुनाव के समय गोरखाओं के समस्या का राजनीतिक स्थायी समाधान निकालने की बात भाजपा ने कही है। इसके विपरीत तृणमूल कांग्रेस विकास और हिल्स में शांति स्थापित करने के नाम पर भाजपा के इस सीट को हार में बदलना चाहती हैं। यहां जातीय समीकरण को प्रमुखता दी गयी है। गोरखा को नेपाली कहे जाने से इसको लेकर विरोध करते हुए गोरखा समाज को एकजुट करने की कोशिश विनय तमांग की ओर से की जा रही है। तृणमूल कांग्रेस भी हिल्स में गोरखाओं को खुश करने के लिए हिल्स के ही शांता क्षेत्री को राज्यसभा सांसद बनाया और दोबारा गोरखा संतान अमर राई को उम्मीदवार बनाया था। पार्टी ने गोरखाओं के साथ का स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की थी। इतना ही नहीं जीटीए चेयरमैन है या दोनों गोजमुमो गुट ने सभी उम्मीदवार गोरखा ही उतारा है। इस बार विधानसभा चुनाव चुनाव में पार्टी से ज्यादा उम्मीदवार का व्यक्तित्व महत्वपूर्ण होगा।

यह है इसका इतिहास

हिल्स और समतल मिलाकर यहां गोरखाओं का संगठन गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा और समतल में माकपा, कांग्रेस और भाजपा का बोलबाला है। 1980 से 86 तक यहां गोरखालैंड अलग राज्य आंदोलन को लेकर 1800 से अधिक आंदोलनकारी मारे गये। उसके बाद यहां अलग स्वायत्त शासन दिया गया। उसके बाद पिछले दो वर्षो में विमल गुरुंग के नेतृत्व में अलग राज्य के लिए हिसक आंदोलन हुआ जिसमें दर्जनों लोग मारे गए। 110 दिन के हिल्स पर बंद का इतिहास आज भी यहां चुनाव के आसपास प्रमुख मुद्दा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.