Water Save: निर्मल गंगा के लिए अविरल प्रयास में जुटे हैं ‘गंगेय’ निशीथ
Water save जागरूकता अभियान के जरिए गंगा स्वच्छता को समर्पित है ‘गंगा समग्र’ संस्था का दावा अभियान से बदलने लगी है तस्वीर
हावड़ा, इम्तियाज अहमद अंसारी। देश के बड़े हिस्से में फैली गंगा ना केवल हमारी सांस्कृतिक पहचान को सदियों से संभाले हुए है, बल्कि भारत की एक बड़ी आबादी के जीवन-यापन में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अत्यंत शालीनता के साथ महती भूमिका निभा रही है। हालांकि विकास व आधुनिकता की अंधदौड़ ने गंगा नदी की अविरलता और निर्मलता को प्रभावित किया है।
नतीजतन बंगाल के अधिकांश हिस्सों में भूमिगत पेयजल में आर्सेनिक व एसिडिक तत्वों का स्तर तेजी से बढ़ा है, जिसका असर नदी की समीपवर्ती आबादी की सेहत पर पड़ा है। यही नहीं प्रदूषण के कारण गंगा में मिलने वाली मछलियों व अन्य जलीय जीवों की प्रजातियां लगभग लुप्ति की कगार पर हैं। गंगा की जो जलीय प्रजातियां बची हैं, वो संकट की स्थिति में हैं।
मौजूदा समस्या के निराकरण को राज्य या केंद्र की कोई सक्रियता जमीनी स्तर पर फिलहाल दिख नहीं रही है। जबकि स्वयंसेवी संस्थाएं निज सामथ्र्य से जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए गंगा को निर्मल बनाने के अविरल प्रयास में जुटी हुई हैं। इस क्रम में ‘गंगा समग्र’ के प्रांत (प्रदेश) संयोजक व ‘गंगेय’ निशीथ कुमार दत्ता की भूमिका बेहद महती है। उनके नेतृत्व में बंगाल में गंगा की निर्मलता को पुनस्र्थापित करने के अविरल प्रयास सालों से जारी है। निशीथ दत्ता का दावा है कि संस्था के इस प्रयास का ही नतीजा है कि आंशिक तौर पर ही सही पर गंगा स्वच्छ के उद्देश्य को सकारात्मक नतीजे मिलने लगे हैं।
प्रदूषित जल का भूमिगत जल व जैव विविधिता पर असर
निशीथ दत्ता के अनुसार गंगा के आसपास भारत की लगभग 40 फीसद आबादी निवास करती है। लगभग 10 करोड़ लोग गंगा से सीधे तौर पर लाभान्वित होते हैं। गंगा अपने आसपास के लगभग 2,00 किलोमीटर के दायरे को प्रभावित करती है। इस सूरत में नदी का दूषित जल अपने समीपवर्ती क्षेत्रों के भूमिगत पेयजल की गुणवत्ता को तेजी से दुष्प्रभावित करता है। यही वजह है कि सूबे में गंगा के समीपवर्ती इलाकों के भूमिगत पेयजल में आर्सेनिक व अन्य हानिकारक तत्वों का स्तर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इससे गंगा की जैव विविधिता भी प्रभावित हो रही है। दूषित जल के कारण गंगा में पाई जाने वाली मछलियां संक्रमित हो रही हैं। चूंकि बंगाल की एक बड़ी आबादी मछली का अनिवार्य रूप से सेवन करती है, उनकी सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इस सूरत में गंगा की स्वच्छता को बनाए रखना का प्रयास बेहद जरूरी है। ऐसा कर हम एक ओर गंगा को जहां फिर से निर्मल बना सकते हैं। इससे जल संरक्षण, भूमिगत जल की गुणवत्ता समेत संबद्ध तमाम कारकों में सुधार लाया जा सकता है।
दिखने लगे हैं सकारात्मक नतीजे
निशीथ दत्ता के अनुसार बंगाल के दक्षिणी हिस्से में गंगा नदी तुलनात्मक रूप से ज्यादा प्रभावित है। इन हिस्सों में सक्रियता पर संस्था का अतिरिक्त ध्यान रहता है। 10 से 17 लोगों का 100 से भी ज्यादा समूह स्थानीय स्तर पर सूबे के सैकड़ों गंगा घाटों पर स्वच्छता को सक्रिय रहता है। साथ ही लोगों को इसके बारे में जागरूक भी करता है। सप्ताह में कम से कम एक बार यह समूह जागरूकता अभियान , घाटों की साफ-सफाई व जन साधारण से संवाद के कार्यक्रम समेत आदि आयोजन करता है। नदी के जल में क्या फेंकना है क्या नहीं इस बारे में घाटों पर तख्तियां लगाना, किनारे पर पौधारोपण करना, नदी के जल को स्वच्छ रखने की महत्ता को बताना समेत जागरूकता के अन्य कार्य शामिल हैं। नियमित तौर पर संस्था स्कूली बच्चों में गंगा स्वच्छता को संवाद कार्यक्रम भी चलाती है। निशीथ दत्ता का कहना है कि अभियान को लेकर जन-साधारण का ना केवल रूझान बढ़ा बल्कि नदी को लेकर नजरिया भी बदला है।
निशीथ दत्ता के अनुसार देश की 4.5 फीसदी आबादी को साफ पेयजल नहीं मिल पाता है। इनमें 78 लाख लोग राज्य से हैं। राजस्थान के बाद बंगाल इस मामले में दूसरे स्थान पर है। सूबे की 84 फीसदी ग्रामीण आबादी अब भी पीने के पानी के लिए भूमिगत जल पर ही निर्भर है। सूबे के 83 ब्लाक के क्षेत्रों में भूमिगत पानी में आर्सेनिक का स्तर तय सीमा से ज्यादा है, वहीं 43 ब्लाकों में फ्लोराइड की मात्र भी अधिकता की रेखा को पार कर चुकी है। भूमिगत पानी में खारापन और आयरन की समस्या तो है ही। उनके अनुसार बंगाल के शहरी इलाके में 56 फीसदी परिवारों को ही स्वच्छ पानी मिल पाता है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत 70.6 फीसदी से कम है। उनका कहना है कि भूमिगत जल संकट की वजह से महानगर में बोतलबंद पानी का कारोबार तेजी से बढ़ा है।
सूबे की 84 फीसद आबादी भूमिगत पेयजल पर निर्भर
सूबे में पेयजल की वर्तमान समस्या को ध्यान में रखते हुए जल संरक्षण के उपायों पर हमे जोर देना होगा। इस कार्य में गंगा बेहद अहम भूमिका निभा सकती है। बशर्ते हम इसे लेकर गंभीर हों। पेयजल संरक्षण की दिशा में यदि समय रहते सामूहिक व ठोस कदम नहीं उठाई गई, तो देश की अगली पीढ़ी के लिए पेयजल संकट गंभीर शक्ल अख्तियार कर सकता है।