नजर आया चांद, 10 को ईद-उल-अजहा
जागरण संवाददाता सिलीगुड़ी इस्लाम धर्मावलम्बियों का दूसरा सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण त्योहार ईद-उ
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : इस्लाम धर्मावलम्बियों का दूसरा सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण त्योहार ईद-उल-अजहा (बकरईद) आगामी 10 जुलाई को मनाया जाएगा। इधर, बीते गुरुवार को बकरईद का चांद नजर आने की देश के विभिन्न हिस्सों से पुष्टि हो चुकी है। उसी के मद्देनजर यह त्योहार आगामी 10 जुलाई को देश भर में मनाया जाएगा। बकरईद को लेकर यहां जगह-जगह बाजार सज गए हैं। शहर के हाशमी चौक पर सेवइयों का बाजार लग गया है। वहीं, माटीगाड़ा व फूलबाड़ी आदि इलाकों में बकरों का बाजार भी सज गया है। इसकी खरीद-बिक्री भी शुरू हो गई है।
ईद-अल-अजहा के बारे में एनजेपी जामा मस्जिद के इमाम मौलाना व कारी अब्दुल मन्नान जीलानी अशरफी सहरसावी ने बताया कि, तमाम संपन्न मुसलमानों पर बकरईद के उपलक्ष्य में हलाल जानवरों की कुर्बानी देना फर्ज है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। मान्यता अनुसार सर्वशक्तिमान अल्लाह तआला ने एक दफा अपने पैगंबर हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की भक्ति की परीक्षा लेनी चाही। अल्लाह ने उन्हें कहा कि जो तुम्हें सबसे प्रिय है वह मेरे नाम पर कुर्बान करो। तब, हजरत इब्राहीम बहुत सोच-विचार के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि अपने पुत्र हजरत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) से ज्यादा उन्हें कुछ भी प्रिय नहीं। उन्होंने इस बाबत हजरत इस्माईल से बात की। वह भी खुदा की राह में कुर्बान होने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गए। मासूम हजरत इस्माईल को लेकर हजरत इब्राहीम एक निर्जन जगह पर गए और उनकी आंखों व अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली कि कहीं कुर्बान करते वक्त एक-दूसरे को देख कर बाप-बेटे का प्यार अल्लाह की भक्ति पर हावी न हो जाए। उसके बाद उन्होंने हजरत इस्माईल की गर्दन पर छुरी चला दी। मगर, जब आंखें खोली तो आश्चर्यचकित रह गए।
तब, हजरत इस्माईल की जगह एक दुंबा (खरगोश की तरह का एक छोटा जानवर) कुर्बान पड़ा था। हजरत इस्माईल सुरक्षित थे। अल्लाह के इस करिश्मे से जहां हजरत इब्राहीम अभिभूत थे वहीं उनकी भक्ति से प्रसन्न अल्लाह ने उनके बाद अपने समस्त बंदों पर कुर्बानी फर्ज करार दे दिया। मगर, उसके लिए यह शर्त भी है कि यदि व्यक्ति संपन्न हो तभी कुर्बानी करे। गरीबों को कुर्बानी से छूट है। बकरईद वास्तव में त्याग व बलिदान का पैगाम देता है। सांसारिक मोह माया पर ईश-भक्ति को वरीयता देने का संदेश इसमें निहित है।
इस त्योहार के उपलक्ष्य में कुर्बानी करने वाले संपन्न मुसलमानों की ओर से निर्धन जरूरतमंदों के बीच जहां दान-पुण्य किया जाता है वहीं उन्हें नए कपड़े व कुर्बानी का मांस भी दिया जाता है ताकि उनकी भी ईद अच्छी मने। इसमें गरीब-अमीर, ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, सभी के एक होने, मिल-जुल कर रहने-सहने का दर्शन निहित हैं। बकरईद के त्योहार को लेकर शहर के मुस्लिम बहुल इलाकों दरभंगा टोला, चप्पल पट्टी, फकीर टोला, कुरैशी मुहल्ला, डांगीपाड़ा, कोयला डिपो, टिकिया पाड़ा, राजा हाली, साउथ कॉलोनी, अशरफ नगर, मल्लागुड़ी आदि में जोर-शोर से तैयारियां शुरू हो गई हैं।