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एक डाक्टर जिन्होंने 50,000 बच्चों को दिलाया जन्म !

हैप्पी डॉक्टर्स डे ! -अपने हाथों जन्म दिलाए बच्चों के बच्चों को भी जन्म दिलाया -जटिल स्त्री रोग

By JagranEdited By: Published: Thu, 30 Jun 2022 09:47 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2022 09:47 PM (IST)
एक डाक्टर जिन्होंने 50,000 बच्चों को दिलाया जन्म !
एक डाक्टर जिन्होंने 50,000 बच्चों को दिलाया जन्म !

हैप्पी डॉक्टर्स डे ! -अपने हाथों जन्म दिलाए बच्चों के बच्चों को भी जन्म दिलाया

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-जटिल स्त्री रोग के 25,000 से अधिक आपरेशन को दिया अंजाम इरफ़ान-ए-आज़म, सिलीगुड़ी: वह पूर्वोत्तर भारत के प्रवेशद्वार सिलीगुड़ी शहर में आज के समय स्त्री रोग व प्रसूति विशेषज्ञ के बतौर प्रैक्टिस कर रहे डाक्टरों में सबसे वरिष्ठ व अनुभवी डाक्टर हैं। उनकी प्रैक्टिस जितने सालों की है उतनी यहा ज्यादातर डाक्टरों की उम्र भी नहीं है। उनके बारे में कहा जाता है कि, सिलीगुड़ी का शायद ही ऐसा कोई घर हो जिस घर में उनके हाथों जन्मा कोई न कोई एक न हो। अब तक के अपने करियर में उन्होंने 50,000 से अधिक बच्चों को जन्म दिलाया है। इतना ही नहीं उनके हाथों जन्मे अनेक बच्चों के बच्चों को भी उन्होंने ही जन्म दिलाया है। इसके साथ ही स्त्री संबंधित विभिन्न जटिल रोगों के 25,000 से अधिक ऑपरेशनों को भी उन्होंने अंजाम दिया है। आज उम्र के 70वें पड़ाव में भी वह पूरी तरह फिट हैं और निरंतर प्रैक्टिस किए जा रहे हैं। वह शख्सियत हैं डा. गोष्ठो बिहारी दास जो कि डा. जी. बी. दास के नाम से मशहूर हैं। उत्तर बंगाल के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी स्त्री रोग व प्रसूति विशेषज्ञ (आब्सटेट्रिशियन-गायेनैकोलॉजिस्ट) होने के बावजूद डा. जी. बी. दास सबसे महंगे नहीं हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि, वह जटिल से जटिल स्त्री रोग का भी बड़ा ही आसान, अत्याधुनिक व बेहद किफायती इलाज करते हैं। आज के व्यावसायिकता भरे समय में भी बड़ी मानवता का परिचय देते हैं। उनके यहा दवा, इंजेक्शन, जाच आदि के लफड़े भी बहुत कम ही होते हैं। अगर कहें कि, भरोसे का दूसरा नाम है डा. जी. बी. दास तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। यही वजह है कि सिर्फ सिलीगुड़ी व उत्तर बंगाल ही नहीं बल्कि पूर्वोत्तर भारतीय पड़ोसी राज्यों और बिहार यहा तक कि पड़ोसी देशों नेपाल, भूटान व बाग्लादेश से भी उनके यहा मरीजों की भीड़ उमड़ी रहती है। सिलीगुड़ी शहर के आश्रम पाड़ा में पाकुड़तला मोड़ के एकदम करीब नजरुल सरणी स्थित उनका चिकित्सा संस्थान न्यू राम कृष्णा सेवा सदन (सिलीगुड़ी) स्त्री रोग की चिकित्सा व प्रसूति के लिए सबसे भरोसेमंद ठिकाना हो उठा है। एक वरिष्ठतम चिकित्सक होने के बावजूद उनके व्य1ितत्व में रौब व अहंकार लेश मात्र नहीं है। कोई बड़ा हो या छोटा, उनका शात-मधुर स्वभाव व हंसमुख रवैया और आत्मीय व्यवहार हर किसी का दिल जीत लेता है। डा. जी. बी. दास के पिता भी डाक्टर थे, वह भी डाक्टर हैं और उनके पुत्र-पुत्री भी डॉक्टर ही हैं। उनका जन्म 4 अप्रैल 1952 को उड़ीसा के भद्रक में हुआ। वहीं स्कूली शिक्षा के बाद 1969 से उन्होंने कटक मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल से डाक्टरी की पढ़ाई की। 1974 में एमबीबीएस और 1978 में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने पश्चिम बंगाल के आसनसोल अंतर्गत रानीगंज में अपने एक दोस्त के निजी अस्पताल में प्रैक्टिस शुरू कर दी। मगर, वहा साल भर भी नहीं हुए थे कि 1979 में उन्हें जलपाईगुड़ी जिला के मयनागुड़ी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बतौर सरकारी चिकित्सक नियुक्ति मिल गई। फिर, अगले ही साल 1980 में उनका तबादला सिलीगुड़ी महकमा अस्पताल (अब जिला अस्पताल) में हो गया। वहा लगभग 12 साल तक चिकित्सकीय सेवा देने के बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। उसके बाद 1992 में सिलीगुड़ी शहर के ही विधान रोड इलाके में पानीटंकी मोड़ के निकट उन्होंने अपना निजी अस्पताल राम कृष्णा सेवा सदन कायम किया। अपनी उत्कृष्ट चिकित्सा के चलते वह थोड़े ही समय में इतने ज्यादा लोकप्रिय हो गए कि मरीजों की भीड़ के आगे उनका अस्पताल छोटा पड़ने लगा। तब, उन्होंने 2010 में अपने अस्पताल से थोड़ी ही दूर पाकुड़तला मोड़ के निकट नजरुल सरणी में अपना एक और अस्पताल न्यू राम कृष्णा सेवा सदन कायम किया। यहा वह और स्त्री रोग व प्रसूति विशेषज्ञ उनके पुत्र डा. विनायक दास साथ-साथ प्रैक्टिस करते हैं। वहीं, उनकी बड़ी संतान, पुत्री डा. ॠतुपर्णा दास आइवीएफ व टेस्ट ट्यूब बेबी स्पेशलिस्ट हैं। वह भी वहा से निकट ही राम कृष्णा आइवीएफ सेंटर चलाती हैं। डा. जी. बी. दास कहते हैं कि, चिकित्सा का पेशा अन्य तमाम पेशों से अलग सेवा भरा पेशा है। अपने व्यक्तिगत व पारिवारिक जीवन से बहुत कुछ समझौता करते हुए खुद को इसमें झोंक देना होता है। इस पेशे में व्यावसायिकता को मानवता पर हावी नहीं होने देना चाहिए। ऐसा वह सिर्फ कहते ही नहीं बल्कि अपने कर्म जीवन में करके भी दिखाते आ रहे हैं। इसीलिए चार दशकों से भी अधिक समय से यहा उनकी लोकप्रियता बरकरार है। समाज के विभिन्न वगरें की ओर से उन्हें अनेक पुरस्कार व सम्मान से नवाजा गया है।


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