दो पर जीत और तीन पर नजदीकी मुकाबले में हारी थी भाजपा
-निगम चुनाव से पहले ही समीकरण बनाने की तैयारी शुरू -बागी जीते तो इस बार बन सकते हैं किंग
-निगम चुनाव से पहले ही समीकरण बनाने की तैयारी शुरू
-बागी जीते तो इस बार बन सकते हैं किंग मेकर फ्लैश बैक
-अधिकांश वार्डो में है त्रिकोणीय मुकाबले वाली स्थिति
-कुछ वार्डो मे आमने-सामने की भी लड़ाई वाली स्थिति है 08
सीटों पर भाजपा दूसरे पायदान पर थी
23
सीटों पर वाम मोर्चा को मिली थी जीत
281
उम्मीदवार हैं इस बार चुनाव मैदान में दीपेंद्र सिंह, सिलीगुड़ी: सिलीगुड़ी नगर निगम में किसका राज होगा। किसके हाथ सत्ता आएगी। किंग मेकर की भूमिका में कौन होगा। यह चर्चा का विषय बना हुआ है। चुनावी माहौल में इस बात को लेकर खास तौर से चर्चा भी हो रही है। इसके साथ ही चुनाव बाद समीकरण बनाने की तैयारी भी शुरू हो गई है। इन्हीं चर्चाओं पर केंद्रित आंकड़ों के लिहाज से एक विशेष रिपोर्ट तैयार की गई है। कहते हैं कि आंकड़े झूठ नहीं बोलते हैं। 2015 में हुए चुनाव में सिलीगुड़ी नगर निगम पर वाममोर्चा का कब्जा हुआ था। वाममोर्चा को 23 सीटें मिली थीं। इस बार तृणमूल कांग्रेस व बीजेपी तथा कांग्रेस की ओर से बोर्ड पर कब्जा करने की बात जोर-शोर से कही जा रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि राजनीति में बयान से कहीं ज्यादा आंकड़ों का महत्व होता है। चुनाव नतीजे आने के बाद ही यह तय होगा कि आंकड़े किसके पक्ष में हैं। फिलहाल इस पर कयास या पूर्वानुमान ही लगाए जा सकते हैं। वर्तमान समय में सिलीगुड़ी नगर निगम चुनाव में 281 प्रत्याशी मैदान में हैं और लगभग प्रत्येक सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला जैसी स्थिति है। कहीं - कहीं दो पक्षीय भी मुकाबला दिख रहा है। लेकिन दो पक्षीय मुकाबला औसतन काफी कम सीटों पर है। वैसे इस बार चुनाव में यदि किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो ऐसी स्थिति में बागी उम्मीदवार किंग मेयर की भूमिका निभा सकते हैं। बताते चले कि चुनाव से पहले ही वाममोर्चा, बीजेपी व तृणमूल कांग्रेस से कई नेता इधर से उधर हुए हैं। कुछ तो निर्दलीय चुनाव भी लड़ रहे हैं। कुछ चुनाव नहीं लड़ रहे हैं कि लेकिन वह अपनी ही पार्टी को हारते हुए देखना चाहते हैं। माना जा रहा है कि यदि 3 से 4 सीट भी बतौर बागी निर्दलीय जीत गए तो वह किंग मेयर की भूमिका में होंगे। दो से तीन सीटों पर निर्दलीय लड़ाई देते हुए भी नजर आ रहे हैं।
पिछले चुनाव का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि 2015 में नगर निगम चुनाव में भले ही वाममोर्चा ने जीत हासिल की थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने जबरदस्त लड़ाई दी थी। करीब आठ सीटों पर बीजेपी मुकाबले में दूसरे स्थान पर रही थी। जबकि 25 सीटों पर तीसरे नंबर पर थी तथा 10 सीटों पर वह मुकाबले से बाहर चौथे स्थान पर रही थी। हालांकि तीन सीटों पर उसका मुकाबला बेहद करीबी थी। वार्ड नंबर 9,12 व 36 में हार का आंकड़ा महज दहाई में था। अगर देखा जाए तो बीजेपी ने पिछले चुनाव में अच्छा मुकाबला दिया था। इस बार बीजेपी के हाथ क्या आएगा यह तो समय तय करेगा, लेकिन राजनीति के जानकार बताते हैं कि इस बार भी कई सीटों पर बीजेपी का काफी करीबी मुकाबला हो रहा है। वाममोर्चा की ओर से पूर्व मेयर अशोक भट्टाचार्य को फिर से पार्टी का चेहरा बनाया गया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस की ओर से प्रशासकीय बोर्ड के पूर्व चेयरमैन गौतम देव को सामने रखा जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस की ओर से शहर में जिस तरह से पोस्टर लगाए गए हैं उसे देखकर तो कहा ही जा सकता है कि यदि तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई तो गौतम देव मेयर की रेस में सबसे आगे होंगे। भाजपा जीती तो मेयर कौन
लेकिन बीजेपी किसे मेयर बनाएगी यह अब तक अंधेरे में हैं। सिलीगुड़ी के विधायक व वार्ड नंबर 24 के प्रत्याशी शंकर घोष पर रहकर - रहकर लोगों की नजरे जा रही हैं, लेकिन राजनीति के जानकार मानते हैं कि यह वर्तमान परिस्थिति में यह संभव नहीं है। शंकर घोष वाममोर्चा से आए हैं और उन्हें पार्टी ने विधायक का टिकट दे दिया। वह विधायकी जीत भी चुके हैं, लेकिन तुरंत उन्हें मेयर बना दिया जाए इसकी संभावना कम ही है। हालांकि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। शंकर घोष के अलावा दूसरे भी कई नेता पार्टी में हैं और निगम की राजनीति में काफी पुराने हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि वाममोर्चा व तृणमूल कांग्रेस से मुकाबले के लिए यदि बीजेपी की ओर से पहले ही चेहरा घोषित कर दिया जाता तो इसका एक अलग ही प्रभाव होता। दक्षिण से अलग है उत्तर की राजनीति
कोलकाता नगर निगम चुनाव में बीजेपी को 3 सीटें मिली हैं। ऐसे में सिलीगुड़ी में बीजेपी की नैया पार लगने की सवाल पर राजनीति के जानकार साफ तौर पर कहते हैं कि दक्षिण बंगाल से उत्तर बंगाल की राजनीति जुदा है। अगर ऐसा नहीं होता तो वर्ष 2015 के सिलीगुड़ी नगर निगम चुनाव में जनता वाममोर्चा को नहीं जीताई होती। क्योंकि तब राज्य में तृणमूल कांग्रेस की सरकार थी। सिलीगुड़ी की राजनीति की अपनी अलग ही धारा है। यहां राजनीतिक तौर पर कट्टरता काफी कम है। मिली- जुली संस्कृति का ही प्रभाव कहा जाएगा, जो हर पार्टी को कुछ न कुछ सीट हासिल हो जाता है। भाजपा सांसद ने किया सत्ता में आने का दावा
दार्जिलिंग लोकसभा सीट के सांसद व बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजू बिष्ट की माने तो उनकी पार्टी इस चुनाव में न सिर्फ बेहतर प्रदर्शन करेगी, बल्कि सत्ता में भी आएगी। अब देखने वाली बात यह है कि बीजेपी नेता के दावे कितने सही होते हैं। लेकिन इतना तो तय है कि इस बार किसी भी पार्टी के लिए राह आसान बनते हुए नहीं दिख रहा है।