हर्षोल्लास के साथ मना भैया दूज का त्यौहार
-बहनों ने भाईयों के लिए की लंबी उम्र की कामनाउपहारों का हुआ आदान-प्रदान जागरण संवादद
-बहनों ने भाईयों के लिए की लंबी उम्र की कामना,उपहारों का हुआ आदान-प्रदान
जागरण संवाददाता ,सिलीगुड़ी: हिन्दू धर्म में भैया दूज का काफी महत्व होता है। इस पर्व को यम द्वितीया और भ्रातृ द्वितीया भी कहा जाता है।
सिलीगुड़ी और आसपास के क्षेत्रों में सोमवार को सुबह से ही इस पर्व को लेकर काफी उत्साह देखा गया। रक्षाबंधन के बाद भैया दूज दूसरा ऐसा त्यौहार है जिसे भाई-बहन बेहद उत्साह के साथ मनाते हैं। यह त्यौहार भाई-बहन के आपसी प्रेम का प्रतीक होता है। जहा, रक्षाबंधन में भाई अपनी बहन को सदैव उसकी रक्षा करने का वचन देते हैं वहीं भाई दूज के मौके पर बहन अपने भाई की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती है। इस दिन सुबह से ही घरों में चहल-पहल नजर आई। इस मौके पर बहनों ने अपने भाई को टीका लगाकर उनकी लंबी आयु की कामना की। बंगाली समुदाय में बहनों ने ओस की बूंदों में चंदन, काजल मिलाकर भाई को फोटा लगाया भाइयेर कपाले दिलाम फोटा यम दुआरे पड़ल काटा यमुना देय यम के फोटा यमुनार जल होय जतो आमार भाइयेर आयु हो ततो गीत को गाते हुए बहनों ने भाई की लंबी उम्र की कामना की। नेपाली समुदाय में बहनों ने अखरोट की बलि देकर भाई की लंबी उम्र की कामना की। अखरोट की बलि देने का मतलब है भाई पर आने वाली सब तकलीफ, बाधाएं दूर हो जाए। इसी क्रम में बहनें सुबह से ही भाइयों की लंबी आयु की कामना करते नजर आई। बिहारी समुदाय में बहनों ने भाइयों को चना खिलाकर उनकी समृद्धि की कामना की। बहनों ने बताया कि चना खिलाने से तात्पर्य है कि उनका भाई बज्र के समान कठोर बने। ताकि उनपर आने वाली सारी बाधाएं स्वत: ही दूर भाग जाए। वे हमेशा स्वस्थ रहें। जीवन खुशियों से भरा हो। मारवाड़ी समुदाय और पंजाबी समुदाय में भी बहनों ने भाईयों को टीका लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की। साथ ही उपहारों का आदान-प्रदान चलता रहा। बहनें भाइयों के घर उपहार लेकर पहुंची। वहीं भाइयों ने भी बहनों को शगुन के तौर पर नगद राशि और उपहार दिया। इसके साथ ही मंदिरों में पूजा-अर्चना की गई। जहा पर सुख-समृद्धि की कामना की गई। ऐसे भाई दूज को लेकर एक लेकर एक पौराणिक मान्यता भी है। कहते हैं यह वही तिथि है जब यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने के लिए जाते हैं। उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए पूरा देश इस दिन को भाई दूज के रूप में मनाता है। कथा के मुताबिक, सूर्य की संज्ञा नामक पत्नी से दो संतानें थी. पुत्र यमराज पुत्री यमुना, संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पाईं, जिसके चलते उन्होंने अपनी छाया का निर्माण कर अपने पुत्र -पुत्री को उसे सौंपकर वहा से चली गई। छाया को यम यमुना से कोई प्यार नहीं था, लेकिन भाई बहन के बीच बहुत प्रेम था। यमुना अपने भाई यमराज से उसके घर आने का निवेदन करती थी, लेकिन यमराज यमुना की बात को टाल जाते थे। एक बार काíतक शुक्ल द्वितीया के दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने पहुंचे। यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को देखकर बेहद खुश हो गई। यमुना ने अपने भाई का स्वागत-सत्कार कर उन्हें भोजन करवाया.बहन के आदर सत्कार से खुश होकर यमदेव ने यमुना से कुछ मागने को कहा तभी यमुना ने उनसे हर साल इस तिथि के दिन उनके घर आने का वरदान मागा। मान्यता है कि जो भाई आज के दिन बहन से तिलक करवाता है उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। इस दिन को यम द्वितिया के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो देश भर की पवित्र नदियों में इस दिन भाई बहन स्नान के लिए पहुंचते हैं. लेकिन मथुरा वृन्दावन में यमुना स्नान का विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन भारी संख्या में लोग मथुरा पहुंचते है अपने भाई-बहन बहन की लंबी उम्र के लिए देवी यमुना से प्रार्थना करते हैं । मान्यता है कि जो भाई बहन इस दिन यमुना में स्नान करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं स्वयं यमदेव पूरी करते हैं।