Bengal Election 2021: झाडग़्राम के जंगल में खिलने को बेताब कमल, जानें क्या हैं यहां के मुख्य मुद्दे
यहां साल के पेड़ों पर निकल रहीं कोपल बदलाव की कहानी बयां कर रही है। फागुन की मदमस्त हवाओं के साथ इठलाती व अंगड़ाई लेती प्रकृति की सुंदर वादियों में चुनावी रंग परवान चढ़ रहा है। महानगर कोलकाता के लोग जब कोलाहल और वायु प्रदूषण से परेशान हो जाते हैं
अनूप कुमार, झाडग़्राम : यहां साल के पेड़ों पर निकल रहीं कोपल बदलाव की कहानी बयां कर रही है। फागुन की मदमस्त हवाओं के साथ इठलाती व अंगड़ाई लेती प्रकृति की सुंदर वादियों में चुनावी रंग परवान चढ़ रहा है। महानगर कोलकाता के लोग जब कोलाहल और वायु प्रदूषण से परेशान हो जाते हैं, तो 200 किलोमीटर दूरी तय कर यहीं सुकून पाने आते हैं। कभी यह इलाका माओवादी आतंक कर गढ़ था, लेकिन अब शांति है।
झाडग़्राम निवासी झूलन नंदी कहते हैं, 2017 में पश्चिमी मेदिनीपुर से कटकर अलग जिला बनने के बाद झाडग़्राम के शहरी इलाके में बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार हो रहा है, लेकिन भ्रष्टाचार भी यहां पांव पसार रहा है। हर काम मे कट मनी से लोग परेशान हैं, तृणमूल के कार्यकर्ता दबंगई से यह काम करते हैं। लोग इससे मुक्ति चाहते हैं।
शायद इस कसमसाहट का ही असर है कि 2016 में जिले की चार में एक भी सीट नहीं जीत पाने वाली भाजपा ने यहां लोकसभा चुनाव में अपना झंडा गाड़ा। जंगली व पथरीली जमीन वाले इस जिला की एकमात्र संसदीय सीट झाडग़्राम से भाजपा के कुनार हेंब्रम टीएमसी के वीरबाहा हांसदा को करीब 12 हजार वोटों के अंतर से हराकर चुनाव जीते थे। इसके बाद से यहां भाजपा का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
नयाग्राम निवासी गोकुल मुर्मू कहते हैं, एबार विपुल भोटे बीजेपी आसबे... (इस बार बड़े अंतर से भाजपा आएगी)। ममता सरकार में विकास के कुछ अच्छे कार्य हुए हैं, लेकिन उनके दल के लोगों का भ्रष्टाचार व गुंडागर्दी काफी बढ़ गई है। यह हमें बर्दाश्त नहीं। जंगल में मिलने वाले साल और केंदु पत्ता पर आधारित उद्योग बंद हो गए। यह यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन था। अब यहां के लोग पलायन को मजबूर हैं। लोग चाहते हैं कि ऐसी सरकार बने जो रोजगार के द्वार खोले। उद्योग चलाए। 'आसोल परिवर्तन चाहिए।
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तीन विधायकों का टिकट काटा है दीदी ने
वर्तमान में यहां विधानसभा की सभी चार सीटों पर टीएमसी का कब्जा है। नयाग्राम और बिनपुर आदिवासी सुरक्षित क्षेत्र है, जबकि गोपीबल्लभपुर और बिनपुर सामान्य। आदिवासी और कुरमी जाति की यहां बहुलता भी है और दबदबा भी। जाहिर तौर पर राजनीतिक दलों ने इन्हीं समुदाय के चेहरों पर दांव लगाया है। टीएमसी ने अपने चार में से तीन सीटिंग विधायकों के टिकट काट दिए हैं।
समझा जा सकता है कि यहां लोगों में जो असंतोष है उसकी भनक हाइकमान को भी है। टिकट से वंचित टीएमसी विधायक आनेवाले दिनों में भाजपा को मजबूत करने में ऊर्जा लगाते नजर आ सकते हैं। वहीं, कभी लालगढ़ का आतंक रहे छत्रधर महतो को तृणमूल में शामिल कर ममता उसके प्रभाव के वोट बटोरने की कोशिश में हैं। यहां भाजपा सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार, टीएमसी कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी को लेकर हमलावर है। जबकि टीएमसी के लोग ममता सरकार की स्वास्थ्य साथी, सोबुज साथी, कन्याश्री, युगोश्री कल्याणकारी योजनाओं को लेकर वोट मांग रहे हैं। पहले दो चरणों में यहां 27 मार्च और 1 अप्रैल को वोट पडऩे हैं।