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महाकाल में बेल कर्म संस्कार 17 व 18 फरवरी को

3 साल से 11 वर्ष की बच्चियों की बेल को भगवान शंकर को साक्षी मानकर शादी कराई जाती संवाद सूत्र

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 08:54 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 08:54 PM (IST)
महाकाल में बेल कर्म संस्कार 17 व 18 फरवरी को
महाकाल में बेल कर्म संस्कार 17 व 18 फरवरी को

3 साल से 11 वर्ष की बच्चियों की बेल को भगवान शंकर को साक्षी मानकर शादी कराई जाती

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संवाद सूत्र,दार्जिलिंग: अखिल भारतीय नेवार संगठन आचलिक समिति और शहरी शाखा द्वारा पहली बार सामूहिक बेलकर्म का आयोजन 17 व 18 फरवरी को होगा। इस कार्यक्रम में 3 साल से 11 वर्ष की बच्चियों की बेल को भगवान शंकर को साक्षी मानकर शादी कराई जाती है। उक्त संस्कार आधुनिकता के चक्कर में विलुप्त सी होती जा रही है संस्कृति को जीवित रखने के उद्देश्य से नेवार संगठन के सौजन्य से उक्त कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। यह जानकारी शनिवार को अखिल भारतीय नेवार संगठन के सदस्यों ने दी। उन्होंने बताया कि बेल कर्म कराने वाले पुजारियों की संख्या घटने से अन्य पंडितों द्वारा भी बेलकम कराया जा रहा है इन सभी को ध्यान में रख संस्था द्वारा इसे विलुप्त होने से बचाने के लिए सामूहिक तौर पर यह विवाह कराया जा रहा है यह बेल कर्म 3 साल से 11 साल के कन्याओं का होता है यह कर्म दार्जिलिंग के महाकाल मंदिर में 17 और 18 फरवरी को किया जाएगा 17 तारीख को पितरों को निमंत्रण किया जाएगा और 18 तारीख को बेल कर्म सम्पन किया जाएगा । यह कर्म तात्रिक विधि से किया जाता है यह तात्रिक रूप से बेल कर्म कराने वाले दार्जिलिंग में नहीं होने सेउक्त कार्य संपन्न कराने के लिए कर्सियांग से पंडित आएंगे। जो भी नेवार समुदाय के अभिभावक बेल कर्म कराना चाहते हैं वह निवार समाज में संपर्क करे 6 फरवरी तक फार्म भरना पड़ेगा यह बेल कर्म निशुल्क नहीं होगा। इसमें जितना ज्यादा संख्या में कन्या आयेगी उतना ही कम खर्च अभिभावक को देना होगा। 20 से अधिक कन्याओं को सम्मिलित होने का संभावना है। नेवार समुदाय में कन्याओं का विवाह बेल को भगवान शिव का रूप मानकर उनको साक्षी रखकर भगवान सुवर्ण कुमार के साथ विवाह किया जाता है जो भगवान विष्णु के रूप हैं इसके बाद सामाजिक तौर पर कन्या वयस्क का रूप लेती है इस क्त्रम में कन्या के पिता सुवर्ण कुमार को कन्यादान करते हैं ,हिंदू बौद्धिक धर्म अनुसार पूजा संस्कार किया जाता है । पूर्व समय में हमारे समाज में सती प्रथा था पति के मृत्यु पश्चात पत्‍‌नी सती होती थी उसी के रोकथाम के लिए यह संस्कार सार्थक होता था ,क्योंकि वह कन्या का विवाह अविनाशी भगवान के साथ होता था ,बेल कर्म का यही उद्देश्य है और दूसरी कथा अनुसार नेपाल में राणा शासन के समय में छोटे-छोटे कन्याओं को भी ले जाया जाता था इसकी रोकथाम के लिए उनका विवाह बेल से कर दिया जाता था और वह विवाहित हो जाती थी विवाहित होने के कारण उसे नहीं ले जाया जाता था।


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