डेढ़ करोड़ गोरखाओं की नजर गृहमंत्री के दौरे पर
-क्या और कैसे निकलेगा दार्जिलिंग में पहाड़ जैसी समस्या का हल कैसे जीत पाएंगे पहाड़वासियों
-क्या और कैसे निकलेगा दार्जिलिंग में पहाड़ जैसी समस्या का हल
कैसे जीत पाएंगे पहाड़वासियों का दिल, कैसे करेंगे चुनावी तीर से विरोधियों पर वार
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : पार्टी नहीं व्यक्ति विशेष होगा चुनाव का केंद्र बिंदु
अशोक झा, सिलीगुड़ी : दार्जिलिंग पहाड़ के सभी तीन विधानसभा सीट कालिम्पोंग, कर्सियांग और दार्जिलिंग में एक बार फिर से अपने पुराने मुद्दे गोरखा अस्मिता यानि गोरखालैंड बनने की ओर कदम दर कदम बढ़ता जा रहा है। ऐसे में देश के वह गृहमंत्री जिसने आजादी के पूर्व की जम्मू काश्मीर की समस्या धारा 370,35 ए को खत्म कर राज्य को दो भागों में बांट दिया। यह एक ऐसा मुद्दा था जिसका हल को दूर उनकी ओर देखने में भी सभी राजनीतिक दल भय महसूस करते थे। दार्जिलिंग हिल्म में पहाड़ जैसी समस्या का हल निकालने का भरोसा देने ही गृहमंत्री दो दिनों तक पहाड़वासियों को संबोधित करेंगे। उनकी ओर देशभर के डेढ़ करोड़ गोरखाओं की नजर लगी हुई है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरखा सम्मान और उनके साहस का सम्मान गोरर्खी टोपी पहनकर सिलीगुड़ी काबाखाली में की थी। इतना ही नहीं 2019 में भाजपा के लोकसभा संकल्प पत्र में इसका राजनीतिक स्थायी समाधान निकालने की बात कही गयी है। इस बात को स्वयं भाजपा सांसद व राष्ट्रीय प्रवक्ता इससे इंकार नहीं करते। उनका कहना है कि इसका हल कोई निकालेगा तो भाजपा ही। इस दिशा में पार्टी आगे बढ़ रही है।
इस बार गोजमुमो नहीं है भाजपा के साथ
बंगाल विधानसभा चुनाव में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के दोनों गुट बिनय तमांग व बिमल गुरुंग विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ चुनावी मैदान में है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा सुप्रीमो बिमल गुरुंग अपने चुनावी घोषणा पत्र में पहला मुद्दा ही गोरखालैंड बनाया है। इस मुद्दे को लेकर पहाड़ के लोग वर्ष 2009 से भाजपा के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे है।
कैसे बढ़ाया जा रहा है मुद्दा
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा बिमल गुरुंग ने ममता बनर्जी को तीसरी बार सत्ता में लाने के लिए पूरा दमखम लगा दिया है। हिल्स के तीनों सीटों के अलावा वह तराई व डुवार्स में भी आठ दस सीटों (जो प्रस्तावित गोरखालैंड में है) में जीत दर्ज कराने में लगे है। यह उनकी ही रणनीति का हिस्सा था कि माटीगाड़ा नक्सलबाड़ी विधानसभा क्षेत्र में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार कैप्टन नलिनी सिंह राय को नामांकन करने के बाद हटना पड़ा। वहां पूर्व आरटीओ गोरखा संतान राजेन सुंदास को तृणमूल कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया। इसके पीछे भी गहरी सोच छुपी हुई है। माटीगाड़ा नक्सलबाड़ी विधानसभा क्षेत्र में करीब 55 हजार मतदाता गोरखा है। गोरखालैंड आंदोलन और जीटीए समझौता के समय भी माटीगाड़ा नक्सलबाड़ी विधानसभा क्षेत्र से 150 मौजे को इसमें शामिल करने की मांग की गयी थी। विरोध होने के बाद यह बाद ठंडे बस्ते में चले गये। गोरखालैंड आंदोलन को लेकर माटीगाड़ा, बागडोगरा, अपर बागडोगरा, सैनिकपुरी, मिलनमोड़, देवीडांगा,भूजियापानी, खपरैल और कदमतल्ला समेत अन्य भागों में आंदोलन की आग सुलगती रही थी। यहां लगभग एक लाख राजवंशी वोटर भी माटीगाड़ा में है। अतुल राय समेत अन्य राजवंशी नेताओं के साथ तालमेल कर बिमल गुरुंग माटीगाड़ा सीट ममता बनर्जी के झोली में डालना चाहते है। इसमें दो फायदा बिमल गुरुंग को मिल सकता है।
गोरखालैंड के मुद्दे पर संगठन को मजबूत कर रहे बिमल
एक तो पिछले तीन वर्षो से फरारी के हालत में कमजोर संगठन को मजबूती प्रदान होगी और दूसरा सदन के अंदर गोरखालैंड और गोरखाओं की आवाज बुलंद करने वाला प्रतिनिधि मिल जाएगा। इतना ही नहीं गोरखालैंड आंदोलन के जन्मदाता स्वर्गीय सुभाष घींिसंग की पार्टी गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा सुप्रीमा मन घीसिंग ने भाजपा के उम्मीदवार को समर्थन देने का निर्णय लिया है। वह भी इसलिए कि गोरखाओं के 11 जाति को जनजाति का दर्जा देने के साथ लोकसभा चुनाव के समय गोरखाओं के समस्या का राजनीतिक स्थायी समाधान निकालने की बात भाजपा ने कही है।
जातीय समीकरण है प्रमुख
यहां जातीय समीकरण को प्रमुखता दी गयी है। गोरखा को नेपाली कहे जाने से इसको लेकर विरोध करते हुए गोरखा समाज को एकजुट करने की कोशिश विनय तमांग की ओर से की जा रही है। तृणमूल कांग्रेस भी हिल्स में गोरखाओं को खुश करने के लिए हिल्स के ही शांता क्षेत्री को राज्यसभा सांसद बनाया और दोबारा गोरखा संतान अमर राई को उम्मीदवार बनाया था। पार्टी ने गोरखाओं के साथ का स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की थी। इतना ही नहीं जीटीए चेयरमैन है या दोनों गोजमुमो गुट ने सभी उम्मीदवार गोरखा ही उतारा है। इस बार विधानसभा चुनाव चुनाव में पार्टी से ज्यादा उम्मीदवार का व्यक्तित्व महत्वपूर्ण होगा।
यह है इसका इतिहास
2017 में आंदोलन के दौरान 14 गोरखाओं की मौत गोली लगने से हुई थी।
हिल्स और समतल मिलाकर यहां गोरखाओं का संगठन गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा और समतल में माकपा, कांग्रेस और भाजपा का बोलबाला है। 1980 से 86 तक यहां गोरखालैंड अलग राज्य आंदोलन को लेकर 1800 से अधिक आंदोलनकारी मारे गये। उसके बाद यहां अलग स्वायत्त शासन दिया गया। उसके बाद पिछले दो वर्षो में विमल गुरुंग के नेतृत्व में अलग राज्य के लिए हिसक आंदोलन हुआ जिसमें दर्जनों लोग मारे गए। 110 दिन के हिल्स पर बंद का इतिहास आज भी यहां चुनाव के आसपास प्रमुख मुद्दा है।