Move to Jagran APP

समाजसेवा के क्षेत्र में बड़ी मिसाल बन चुके हैं, चाय की जमीन से सिल्वर स्क्रीन तक 'एंबुलेंस दादा'

एंबुलेंस दादा के नाम से मशहूर करीमुल हक समाजसेवा के क्षेत्र में बड़ी मिसाल बन चुके हैं। एक मजदूर से पद्मश्री बने उत्तर बंगाल के जाने-माने समाजसेवी करीमुल हक उर्फ बाइक एंबुलेंस उर्फ एंबुलेंस दादा के जीवन पर अब फिल्म बनने जा रही है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 17 Dec 2020 06:05 PM (IST)Updated: Thu, 17 Dec 2020 06:19 PM (IST)
समाजसेवा के क्षेत्र में बड़ी मिसाल बन चुके हैं, चाय की जमीन से सिल्वर स्क्रीन तक 'एंबुलेंस दादा'
मजदूर से पद्मश्री बने उत्तर बंगाल के जाने-माने समाजसेवी करीमुल हक उर्फ 'बाइक एंबुलेंस' उर्फ 'एंबुलेंस दादा'

सिलीगुड़ी, इरफ़ान-ए-आज़म। एक मजदूर से पद्मश्री बने उत्तर बंगाल के जाने-माने समाजसेवी करीमुल हक उर्फ 'बाइक एंबुलेंस' उर्फ 'एंबुलेंस दादा' के जीवन पर अब फिल्म बनने जा रही है। चाय बागान मजदूर रहे करीमुल हक अब सिल्वर स्क्रीन पर नजर आएंगे। उनकी बायोपिक आगामी जनवरी महीने से बननी शुरू हो जाएगी जिसे अगले दो साल में पूरा कर लेने का लक्ष्य है। अभी फिल्म के लिए नायक की तलाश जारी है। खूब संभावना है कि शाहरुख खान या फिर सोनू सूद इस फिल्म के नायक हो सकते हैं। अपनी बायोपिक को लेकर करीमुल हक उर्फ 'एंबुलेंस दादा' का जाने-माने फिल्म लेखक व निर्देशक विनय मुद्गिल और प्रसिद्ध फिल्म निर्माता 'सिनेयुग' कंपनी के कर्णधार करीम मोरानी संग करार हस्ताक्षरित हुआ है। कुछ दिन पहले ही विनय मुद्गिल के आमंत्रण पर मुंबई गए करीमुल करार का काम अंजाम देकर लौटे हैं।

loksabha election banner

याद रहे कि 'एंबुलेंस दादा' के नाम से मशहूर करीमुल हक जलपाईगुड़ी के जिले के माल प्रखंड के राजाडांगा ग्राम पंचायत अंतर्गत धलाबाड़ी गांव के निवासी हैं। वह समाजसेवा के क्षेत्र में बड़ी मिसाल बन चुके हैं। अपने आस-पास के दर्जनों गांवों के गरीब जरूरतमंदों को पिछले दशक भर से भी ज्यादा समय से वह निःशुल्क बाइक एंबुलेंस सेवा देते आ रहे हैं। अब तक उन्होंने लगभग चार हजार लोगों को निःशुल्क बाइक एंबुलेंस सेवा दी है। उनके झोंपड़ीनुमा घर में ही निःशुल्क क्लिनिक भी चलती है जहां लोगों की कुछ स्वास्थ जांच भी हो जाती है और दवाएं भी मिल जाती हैं। इसके अलावा यहां-वहां से जुटा कर नए-पुराने कपड़े, दाना-पानी, किताब-कलम व कॉपी आदि से भी वह जरूरतमंदों की सेवा करते रहते हैं। कई जरूरतमंद विकलांगों का घर बनवाने में भी उन्होंने बड़ी सहायता की है। अब वह अपने घर के पास ही अपनी पुश्तैनी जमीन पर गांव के लोगों को चिकित्सा परिसेवा देने के लिए एक तीन मंजिला अस्पताल भी बनवा रहे हैं। उसकी एक मंजिल लगभग तैयार हो गई है।

एक घटना ने उनकी जिंदगी बदल कर रख दी

यह 1995 की बात है। एक दिन देर रात करीमुल की मां जफीरुन्निसा को दिल का दौरा पड़ा। वह यहां-वहां बहुत दौड़े पर कोई संसाधन न मिला। मां को अस्पताल न पहुंचाया जा सका सो मां चल बसीं। उस घटना ने करीमुल को अंदर तक झकझोर कर रख दिया। तब, उन्होंने प्रण लिया कि किसी को भी संसाधन के अभाव के चलते वह मरने नहीं देंगे और लोगों की स्वास्थ्य सेवा में जुट गए। शुरू-शुरू में रिक्शा, ठेला, गाड़ी, बस जो मिला उसी से रोगियों को अस्पताल पहुंचाने का काम करने लगे।

उनके एंबुलेंस दादा बनने की कहानी कुछ यूं है कि वर्ष 2007 में एक दिन चाय बागान में काम करने के दौरान करीमुल का एक साथी मजदूर गश खा कर गिर पड़ा। उन्होंने आनन-फानन में बागान प्रबंधक की बाइक ली व उसे अस्पताल ले गए। उसी घटना से बाइक एंबुलेंस का आइडिया आया। एक पुरानी राजदूत मोटरसाइकिल खरीदी और शुरू कर दी फ्री बाइक एंबुलेंस सेवा। एक बार एक्सीडेंट के शिकार भी हुए जिसके चलते उनका एक पांव आज तक थोड़ा छोटा व टेढ़ा है। उस समय एक्सीडेंट से मोटरसाइकिल भी बेकार हो गई। तब, यहां-वहां से जैसे-तैसे करके पैसे जुटा कर वर्ष 2009 में उन्होंने एक नई बाइक खरीदी और अपनी निःशुल्क एंबुलेंस सेवा को और बेहतर कर दिया। इसके बावजूद उन्हें ताने भी सुनने पड़े। कई ऐसे लोग रहे जिन्होंने शुरू-शुरू में उन्हें नौटंकी, पगला, आदि कह कर ताने भी कसे। मगर, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपने जज्बे को डिगने नहीं दिया। समाज सेवा को पूरी मेहनत व लगन से दिन-रात जारी रखा।

फिर, वही हुआ जो होना था। उनकी मेहनत रंग लाई। उनके जज्बे को चहुंओर सराहना मिलने लगी। उनकी ख्याति उनके गांव की सीमा से बाहर भी जगह-जगह फैलने लगी और भारत सरकार के कानों तक जा पहुंची। फिर, वर्ष 2017 में भारत सरकार ने उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा। उसके बाद करीमुल हक की शोहरत सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जा पहुंची। इधर, बॉलीवुड भी उनके प्रभाव से अछूता नहीं रहा। अब बहुत जल्द उनकी जीवनी सिल्वर स्क्रीन के माध्यम से सबके सामने होगी। इस बारे में करीमुल हक का कहना है कि अपने जीवन पर फिल्म बनने की बात से वह खुश तो हैं लेकिन इससे ज्यादा खुशी उन्हें तब होगी जब उस फिल्म से कुछ लोग प्रेरणा लेंगे और वे समाज की सेवा की दिशा में अग्रसर होंगे। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.