आजादी के 73 साल बाद भी दक्षिण दिनाजपुर में नहीं स्थापित हुआ कोई उद्योग
जिले के युवक-युवतियां रोजगार व उच्च शिक्षा के लिए पलायन को है मजबूर
महासमर के लिए
-जिले के युवक-युवतियां रोजगार व उच्च शिक्षा के लिए पलायन को है मजबूर
-लॉक डाउन के समय 50 हजार से अधिक लोग दूसरे राज्यों से दक्षिण दिनाजपुर में लौंटे
-जिले में नहीं है मेडिकल, इंजीनियरिंग या कोई विश्वविद्यालय
-सड़क दुर्घटना होने पर दूसरे जिले या कोलकाता जाने को मजबूर होते है रोगी
पूजा दास, दक्षिण दिनाजपुर: कहने को पश्चिम बंगाल का दक्षिण दिनाजपुर जिला अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर भारत-बांग्लादेश के पास है। करीब 252 किलोमीटर बॉर्डर से घिरा यह जिला आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, रेल परिसेवा आदि आधारभूत सुविधा से वंचित है। जिले का दुर्भाग्य है कि आजादी के 73 साल बाद भी जिले में किसी राजनीतिक दल ने उद्योग स्थापित नहीं कर पाई। गंभीर बीमारी या सड़क दुर्घटना के लिए आपको जिले में बेहतर स्वास्थ्य परिसेवा नहीं मिलेगी। मालदा मेडिकल कॉलेज या उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज की ओर रूख करना होगा या कोलकाता जाना पड़ता है। इसके कारण बहुत बार घायल व्यक्ति की समय पर इलाज न होने से मौत हो जाती है। पिछले दिनों सड़क हादसे में बीडीओ की भी मौत हो गई। समय पर उसका इलाज नहीं हो पाया। सिलीगुड़ी पहुंचने से पहले उन्होंने दम तोड़ दिया। यहां के युवक -युवतियों को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों की ओर रूख करना पड़ता है। आर्थिक रूप से यह जिला काफी पिछड़ा है। बतादें कि कोविड 19 के दौरान 50 हजार से अधिक युवक दक्षिण दिनाजपुर अपने घर को लौटे थे। बाद में स्थिति ठीक होने पर फिर पेट के लिए इन्हें बाहर जाना पड़ा। मेडिकल, इंजीनियरिंग या उच्च शिक्षा के लिए यहां कोई संस्थान नहीं है। एक विश्वविद्यालय भी इस जिला को नहीं मिला। वैसे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कई बार आश्वासन दिया है कि वें जिला में एक विश्वविद्यालय स्थापित करेंगी। लेकिन तृणमूल सरकार के 10 साल होने के बाद भी वादा पूरा नहीं हुआ। यहां लघु उद्योग की बड़ी संभावना है। लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण कोई उद्योगी यहां नहीं आते। कई चावल मिल है, लेकिन उसकी स्थिति बंद होने के कगार पर है।
यातायात का अभाव : यातायात के लिए भी यहां ट्रेन या बस की उचित व्यवस्था नहीं है। बालुरघाट से सिलीगुड़ी या दूर -दराज जाने के लिए बस का अभाव है। एयरपोर्ट के लिए सभी बुनियादी संरचना पूरी होने के बाद भी विमान परिसेवा शुरू नहीं की गयी। इसे लेकर स्थानीय लोगों में काफी रोष है। किसी भी इलाके के विकास के लिए यातायात की व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए। लेकिन दक्षिण दिनाजपुर में सड़क, रेल व हवाई यात्रा तीनों लचर स्थिति में है। यहां से अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय होने की बहुत संभावना है। लेकिन सीमांत क्षेत्र में बुनियादी व्यवस्था दुरूस्त नहीं है। इसलिए तस्करी यहां की बड़ी समस्या है। बालुरघाट-हिली व बुनियादपुर-कालियागंज के रेलवे संप्रसारण की घोषणा होने के बाद भी यह ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। बालुरघाट रेल विकास कमेटी के सचिव पीयूष कांति देव ने कहा कि जिलावासियों की जरूरतों के हिसाब से और भी ट्रेन का परिचालन होना चाहिए। बंग रत्न से सम्मानित विश्वनाथ लाहा ने बताया कि जिले के विकास के लिए सभी पार्टी के लोग आश्वासन देते है, लेकिन जिले के विकास के लिए कोई कार्य नहीं करता। सिर्फ बाते होती है। 10 साल में राजनीतिक उठा-पटक से जिले में अशांति : विभिन्न समस्याओं से घिरे इस जिले में अभी राजनीतिक अशांति भी बड़ी समस्या है। 2011 में परिवर्तन की लहर के कारण छह विधानसभा सीटों में से पांच तृणमूल कांग्रेस के और एक वाम के खाते में गया था। परिवर्तन का असर 2014 के लोकसभा चुनाव पर भी देखा गया। तृणमूल को ही जीत का सहरा जनता ने पहनाया था। लेकिन 2016 के विधानसभा चुनाव में स्थिति फिर बदल गयी। छह सीटों में से दो तृणमूल, एक कांग्रेस व तीन वाम के हिस्से में चला गया। इसके बाद से 2019 में मोदी लहर के कारण भाजपा के उम्मीदवार डॉ. सुकांत मजूमदार विजयी हुए। इस बार त्रिशंकु चुनाव होने के आसार: जिले के छह विधानसभा सीटों पर इस बार त्रिशंकु लड़ाई देखने को मिल सकती है। 'खेला होबे' की बिगुल जिले में भी बज रही है। तो दूसरी ओर टिकट नहीं मिलने से खफा तृणमूल के नेता मंत्री भाजपा की ओर रूख कर रहें है। भाजपा की सांगठनिक शक्ति भी जिले में मजबूत हुई है। उम्मीदवार को लेकर अंदर खेमे काफी मथफौरव्वल हो रहा है। इसके बीच वाम-कांग्रेस का जोट वोट को अपने पक्ष में करने की जुगत में लगा हुआ है। नाटक, कला संस्कृति के इस जिले में इस बार पॉलिटिकल ड्रामा अधिक देखने को मिल सकती है। पिक्चर अभी बाकी है।