रानीगंज में जीवन चंद्र घोष के घर आए थे सुभाष चंद्र बोस
जेके नगर आजादी से पहले की बात है। जब रानीगंज के घोष परिवार अंग्रेजों के आंखों की किर
जेके नगर : आजादी से पहले की बात है। जब रानीगंज के घोष परिवार अंग्रेजों के आंखों की किरकिरी बन गए थे। कसूर बस इतना था कि उनके घर पर क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस आए थे। अंग्रेजों ने घोष परिवार पर पहरा बिठा दिया था। अंग्रेजों से बचने के लिए परिवार के सभी लोग घर में बंद रहते थे। अंग्रेज जरूरी दस्तावेज उठा न ले जाए इसके डर से घोष परिवार ने सभी दस्तावेजों को काली मंदिर व गुप्त छात्रावास में छिपा दिया था। सुभाष चंद्र बोस ही नहीं कई क्रांतिकारियों का घोष परिवार के घर में आना जाना होता था। इस कारण अंग्रेजों को इस परिवार का फितरत तनिक भी नहीं सुहाता था। आज वहीं घोष परिवार इस कदर उपेक्षित हो गए हैं कि कई लोग तो यह भी नहीं जानते कि घोष परिवार का आजादी में क्या योगदान रहा है। जिस मकान में सुभाष चंद्र बोस सहित अन्य क्रांतिकारियों का अड्डा रहता था आज वह मकान पूरी तरह जर्जर हो चुका है। कायदे से नहीं मिल सका सम्मान :
स्वतंत्रता संग्राम में उनके परिवारों के योगदान के बावजूद, आजादी के बाद परिवार के सदस्यों को वह सम्मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए। यही वजह है कि घोष परिवार के सदस्य चंद्र घोष की आंखों में बहुत दु:ख हैं। इस संबंध में खनिक बाबू ने कहा कि उनके दादा जीवन चंद्र घोष पेशे से डाक्टर थे। इसके साथ ही वह रानीगंज नगर पालिका के अध्यक्ष थे। उनका शरतचंद्र बोस के साथ करीबी रिश्ता था। शरतचंद्र बोस अलग-अलग समय में पत्र के माध्यम से जीवन बाबू के संपर्क में रहे। देश की स्वतंत्रता से पहले, जीवन बाबू प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे। कई क्रांतिकारी रात के अंधेरे में उनके घरों में आ जाते और सूर्योदय से पहले निकल जाते। चिकित्सा केंद्र के उद्घाटन में आए थे सुभाष चंद्र घोष :
नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1932 में रानीगंज में एक चिकित्सा केंद्र का उद्घाटन करने आए थे। सुभाष चंद्र बोस ने जीवन बाबू के साथ बैठकर खाना खाया। हालांकि तस्वीर उनके परिवार के हाथों में है, लेकिन वह भी अब बर्बाद हो गई है। विप्लबी और सुभाष चंद्र बोस उनके घर आए तो उनके परिवार को अंग्रेजों ने प्रताड़ित व अपमानित किया गया था। स्वतंत्रता आंदोलन में घोष परिवार की थी अहम भूमिका :
खनिक चंद्र घोष कहते हैं कि उनके पिता खितिश चंद्र घोष और उनके परिवार के कई सदस्यों ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भी उन्हें आतंकवादी का लेबल दिया था। परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने हर समय उनके परिवारों पर नजर रखी। कई दस्तावेजों को उनके परिवार के काली मंदिर और एक गुप्त छात्रावास में रखा गया था। समय के साथ, सब कुछ बदल गया। लेकिन देश के स्वतंत्र होने के बाद, किसी ने उनका सुध तक नहीं लिया। जीवन बाबू के पोते खनिक चंद्र घोष को अफसोस है कि जीवन बाबू और उनकी वर्तमान पीढ़ी को वह सम्मान नहीं मिला। जहां पूरा देश नेताजी के साथ राजनीति में लगा हुआ है। वहीं एआर रहमान रोड, चुड़ीपट्टी, रानीगंज का घोष परिवार लंबे समय से क्रांतिकारी और नेताजी का सम्मान करता रहा है।