जिले में हरेराम सिंह के रूप में तृणमूल को मिला हिदी भाषी नेता
दुर्गापुर जितेंद्र तिवारी के बगावत के बाद तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बर्द्धमान जिले में एक हिदी भ
दुर्गापुर : जितेंद्र तिवारी के बगावत के बाद तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बर्द्धमान जिले में एक हिदी भाषी नेता की तलाश थी। ऐसे में जामुड़िया जैसे सीट को तृणमूल कांग्रेस की झोली में डालकर हरेराम सिंह ने खुद को जिले के बड़े हिदी भाषी नेता साबित किया है। अब जितेंद्र की कमी को पूरा करने के लिए हरेराम सिंह के रूप में तृणमूल को एक बड़ा नेता मिल गया है। हरेराम सिंह तृणमूल के गठन के समय से ही संगठन से जुड़े हुए हैं। इस बार के चुनाव में हरेराम सिंह को तृणमूल कांग्रेस ने अपनी सबसे कमजोर सीट जामुड़िया से चुनाव मैदान में उतारा था। हालांकि सबसे कमजोर सीट पर भी उन्होंने तकरीबन डेढ़ माह तक मकर पसीना बहाया। यहां तक की लगातार प्रचार करते हुए एक रोड शो के दौरान वे अस्वस्थ भी हो गए थे एवं सीधे उन्हें वहां से अस्पताल भेजा गया था। उनके मेहनत का नतीजा था कि बिना किसी बड़े चेहरे के प्रचार के उन्होंने जामुड़िया में पहली बार तृणमूल का परचम लहराया एवं जीत हासिल कर अपनी योग्यता प्रमाणित की।
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श्रमिक संगठन को नंबर एक बनाया :
हरेराम सिंह तृणमूल से तो जुड़े थे। लेकिन तृणमूल की राजनीति में उन्होंने कभी हिस्सेदारी नहीं की। वे कोयला श्रमिक थे। वाममोर्चा के समय से ही वे तृणमूल ट्रेड यूनियन के कोयला खदान श्रमिक कांग्रेस के महामंत्री की जिम्मेदारी निभाई। वे निष्ठा के साथ श्रमिक संगठन से जुड़े रहे। लगातार कोयला खदान श्रमिक कांगेस को मजबूत करने का प्रयास किया। ईसीएल का विस्तार पूरे जिले तक है, जहां स्थायी 50 हजार श्रमिक हैं। इस कारण उन्होंने पूरे जिले में श्रमिक संगठन के माध्यम से तृणमूल कांग्रेस को मजबूत करने पर जोर लगाया एवं संगठन को ईसीएल का सबसे बड़ा संगठन स्थापित किया। जिसका फायदा उन्हें इस चुनाव में भी मिला।
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तृणमूल में सीधे नौ माह पहले संभाली कमान :
तृणमूल कांग्रेस में सीधे तौर पर उनकी एंट्री नौ माह पहले हुई। चुनाव को लेकर जब प्रशांत किशोर के कहने पर ममता बनर्जी ने अपनी टीम तैयार की। उसमें हरेराम सिंह को जिला संयोजक के रूप में एंट्री मिली एवं उन्हें दो विधानसभा क्षेत्रों का दायित्व मिला। जहां से उन्होंने आपसी मतभेद को भुलाकर सभी कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरने पर जोर दिया एवं इसमें तृणमूल को सफलता भी मिली। सभी की एकजुटता के कारण तृणमूल ने अप्रत्याशित जीत हासिल की। खुद वे भी ऐसी सीट पर जीते जहां तृणमूल कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष वी शिवदासन दासू, ट्रेड यूनियन के जिलाध्यक्ष प्रभात चटर्जी भी हार मान चुके थे।
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43 साल बाद ध्वस्त हुआ माकपा का लाल दुर्ग :
जामुड़िया की पहचान माकपा के लाल दुर्ग के रूप में थी। जहां 43 वर्षों से माकपा का दबदबा था। वर्ष 2011 में जब तृणमूल की सरकार पहली बार राज्य में बनी, उस समय भी माकपा के इस लाल दुर्ग पर माकपा का ही कब्जा रहा। वर्ष 2016 में भी तृणमूल कांग्रेस इस लाल दुर्ग पर फतह नहीं कर पायी। लेकिन तृणमूल के इस सपने को वर्ष 2021 में हरेराम सिंह ने पूरा किया एवं लाल दुर्ग को ध्वस्त कर तृणमूल का परचम लहराया।