जनता के दरबार में औंधे मुंह गिरे दलबदलू प्रत्याशी
दुर्गापुर दलबदलू लोगों को टिकट देना भाजपा के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस को महंगा पड़ा। जिस त
दुर्गापुर : दलबदलू लोगों को टिकट देना भाजपा के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस को महंगा पड़ा। जिस तरह पूरे राज्य में दलबदलुओं को राज्य की जनता ने नकार दिया। यानि उन्हें बंगाल की जनता ने सबक भी सिखा दिया। वहीं स्थिति पश्चिम एवं पूर्व बर्द्धमान जिले में देखने को मिला। पश्चिम बर्द्धमान जिले में तीन एवं पूर्व बर्द्धमान जिले में दो दलबदलू विधायकों को भाजपा व तृणमूल कांग्रेस ने टिकट दिया था। लेकिन तीनों को हार का सामना करना पड़ा। वहीं इन दलबदलुओं को पार्टी से बगावत करना काफी नुकसानदायक रहा। इस हार के साथ इन सभी के राजनीतिक भविष्य को लेकर सवाल उठने लगा है।
विश्वनाथ पड़ियाल : विश्वनाथ पड़ियाल ने पहला विधानसभा चुनाव वर्ष 2016 में कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था। उस चुनाव में कांग्रेस एवं माकपा के साथ गठबंधन था। नतीजा था कि चालीस हजार से अधिक वोटों से विश्वनाथ ने तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी अपूर्व मुखर्जी को हराया था। हालांकि चुनाव जीत हासिल करने के बाद से उनकी नजदीकी तृणमूल कांग्रेस से बढ़ती गई। तृणमूल कांग्रेस में आने पर उनकी पत्नी दुर्गापुर नगर निगम की मेयर परिषद सदस्य भी बनी। वहीं विश्वनाथ को तृणमूल ट्रेड यूनियन का जिलाध्यक्ष बनाया गया। इस बार तृणमूल ने उन्हें टिकट भी दे दिया। लेकिन वे तृणमूल को जीत दिलाने में विफल रहे एवं पहली बार दुर्गापुर पश्चिम में कमल खिलने का मौका मिला। उन्हें भाजपा प्रत्याशी लखन घोरूई से तकरीबन 15 हजार मतों से हारना पड़ा।
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जितेंद्र तिवारी : पांडवेश्वर से वर्ष 2016 के चुनाव में उन्हें तृणमूल कांग्रेस ने टिकट दिया था। उन्होंने पांडवेश्वर में पहली बार तृणमूल को जीत भी दिलाई। लेकिन दिसंबर माह में उन्होंने तृणमूल कांग्रेस से बगावत कर दी। काफी नाटकीय ढंग से अंत में उन्होंने तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। इस बार भाजपा ने उन पर विश्वास कर चुनाव मैदान में उतार दिया। लेकिन वे भाजपा का कमल खिलाने में पूरी तरह विफल रहे एवं रोमांचक मुकाबले में तृणमूल के नरेंद्रनाथ चक्रवर्ती से उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
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दीप्तांशु चौधरी : रिटायर्ड कर्नल दीप्तांशु चौधरी पहली बार वर्ष 2016 के चुनाव में आसनसोल दक्षिण से भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे। लेकिन वहां तृणमूल कांग्रेस से निराशा हाथ लगी। इसके बाद वह तृणमूल में आ गए। तृणमूल कांग्रेस में उन्हें काफी सम्मान एवं कई महत्वपूर्ण पद मिला। यहां तक की दक्षिण बंगाल राज्य परिवहन निगम का चेयरमैन भी उन्हें बनाया गया। लेकिन उन्होंने दिसंबर में बगावत कर भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने भी उन पर विश्वास जताया एवं दुर्गापुर पूर्व से टिकट दे दिया। लेकिन यहां से उन्हें तृणमूल के प्रदीप मजूमदार से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि यहां भी मुकाबला काफी रोचक रहा एवं मात्र 3500 मतों से हार का सामना करना पड़ा।
------------------------विश्वजीत कुंडू : विश्वजीत कुंडू आरंभ से तृणमूल से जुड़े थे। वर्ष 2011 एवं 2016 में पूर्व बर्द्धमान के कालना से वे तृणमूल के टिकट पर विधायक भी बने। वे कालना नगरपालिका के चेयरमैन भी थे। लेकिन दिसंबर माह में उन्होंने भी तृणमूल कांग्रेस से बगावत कर दिया एवं भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हें कालना से टिकट भी दे दिया। लेकिन जीत की हैट्रिक लगाने में वह विफल रहे एवं उन्हें तृणमूल के देवव्रत बाग से सात हजार मतों से हार का सामना करना पड़ा।
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सैकत पांजा : पूर्व बर्द्धमान जिले के मंतेश्वर से वर्ष 2016 में सैकत पांजा के पिता सजल पांजा ने पहली बार तृणमूल कांग्रेस को जीत दिलाई थी। लेकिन अचानक उनका निधन हो गया था। इसके बाद तृणमूल ने उनके पुत्र सैकत को टिकट दिया था एवं उन्होंने जीत हासिल की थी। लेकिन उन्होंने भी तृणमूल छोड़ दिया एवं भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने मंतेश्वर से उन्हें चुनाव मैदान में उतार भी दिया। बावजूद उन्हें बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा।