विधानसभा चुनाव में तृणमूल को जीत दिलाना अपूर्व के लिए चुनौती
दुर्गापुर तृणमूल कांग्रेस (तृकां) द्वारा पुराने साथियों को फिर से संगठन को जोड़ने का प्रय
दुर्गापुर : तृणमूल कांग्रेस (तृकां) द्वारा पुराने साथियों को फिर से संगठन को जोड़ने का प्रयास कर रही है, ताकि वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में तृकां जीत की हैट्रिक लगा सके। इसका उदाहरण पश्चिम बर्द्धमान जिले भी देखने को मिला। जिला की कमान एक बार फिर से तृकां सुप्रीमो ने अपने पुराने सैनिक अपूर्व मुखर्जी के कंधे पर दी है। ऐसे समय में उन्हें दायित्व मिला है, जब जिले में भाजपा भी मजबूती से खड़ी है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी जिले की सभी नौ सीटों पर भाजपा को बढ़त मिली थी। ऐसी स्थिति में तृकां को जिले में जीत दिलाना अपूर्व मुखर्जी के समक्ष बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि अब चुनाव में ज्यादा समय नहीं है। फरवरी माह में चुनाव की घोषणा होने की उम्मीद की जा रही है।
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वर्ष 2001 में बने थे पहली बार विधायक : अपूर्व मुखर्जी तृकां के स्थापना के समय से ही संगठन के साथ जुड़े हुए हैं। वर्ष 2001 में वे पहली बार विधायक बने थे। जब उन्होंने वामो के शासनकाल में माकपा प्रत्याशी को हराकर चुनाव जीता था। हालांकि वर्ष 2006 में उन्हें माकपा प्रत्याशी विप्रेंदु चक्रवर्ती से अपूर्व को हार का सामना करना पड़ा था। फिर वर्ष 2011 के चुनाव में तृकां के टिकट पर विधायक बने। वर्ष 2012 में दुर्गापुर नगर निगम (डीएमसी) चुनाव में तृकां को जीत मिली थी एवं उन्हें मेयर का भी दायित्व दिया गया था। उस समय उन्हें जिलाध्यक्ष का दायित्व दिया गया था।
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विश्वनाथ से समन्वय बनाना भी चुनौती होगा : वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में तृकां ने अपूर्व को टिकट दिया था। उस समय वे दुर्गापुर के मेयर के दायित्व में भी थी। लेकिन उस समय विश्वनाथ पड़ियाल ने तृकां से ही बगावत कर दी। उस चुनाव में विश्वनाथ ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। वामो समर्थित कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विश्वनाथ ने अपूर्व को 40 हजार मतों से पराजित किया था। इसके बाद से अपूर्व धीरे-धीरे राजनीति से दूर होते गए। पिछले साढ़े चार वर्षों से शायद ही कभी उन्हें राजनीतिक कार्यक्रम में देखा गया। अब विश्वनाथ भी तृकां के साथ आ गए हैं। वहीं अपूर्व को जिले की कमान मिली है। ऐसे में इन दोनों नेताओं को आपसी समन्वय बनाकर काम करना भी चुनौती भरा होगा।