Uttarakhand Lockdown: ये प्रसिद्ध पर्वतारोही इनदिनों लिखने-पढ़ने और किचन गार्डन में बिता रही हैं समय, जानिए
लॉकडाउन के दौरान प्रसिद्ध पर्वतारोही चंद्रप्रभा एतवाल दिन का ज्यादा वक्त किताब पढ़ने एकांत में सोचने-विचारने मन की बातों और जीवन के अनुभव कागज में उतारने में बीत रहा है।
उत्तरकाशी, जेएनएन। '79 वर्ष की हो गई हूं। सुबह उठकर आंगन में ही टहलना होता है। फिर अखबार पढ़ने और घर के कामों में हाथ बंटाती हूं। लेकिन, दिन का ज्यादा वक्त किताब पढ़ने, एकांत में सोचने-विचारने, मन की बातों और जीवन के अनुभव कागज में उतारने में बीत रहा है। सुबह-शाम के वक्त फूलों की क्यारी और किचन गार्डन में निराई-गुड़ाई भी कर रही हूं।' इन दिनों यह दिनचर्या है पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध पर्वतारोही चंद्रप्रभा एतवाल की।
साधारण भोजन करने के लिए करती हैं बच्चों को प्रेरित
चंद्रप्रभा बताती हैं, यह समय एकांत में सोचने-विचारने के लिए सबसे अच्छा है। जब किसी एक काम से मन ऊबने लगे तो जीवन के अनुभवों को लिखने का प्रयास करती हैं। शाम के वक्त आंगन में फूलों की क्यारी और किचन गार्डन में पौधों की निराई करने और पौधों व फूल-पत्तियों को निहारने का भी अलग ही आनंद है। उनके किचन गार्डन में इन दिनों हरी सब्जी व सलाद के पत्ते हैं। आजकल इन्हीं की सब्जी घर में बन रही है। वैसे भी वह हमेशा साधारण भोजन ही लेती हैं और बच्चों को भी साधारण भोजन करने के लिए प्रेरित करती हैं।
अखबार पढ़ने में लगता है एक घंटे का वक्त
चंद्रप्रभा बताती हैं कि सुबह उठकर वह आंगन में ट्रम्पेट वाइन की बिखरी फूल-पत्तियों को हटाती हैं, फूल के पौधों का पानी देती हैं और आधे घंटे तक आंगन में ही टहलती हैं। इससे सुबह की वॉक भी पूरी हो जाती है। इनती देर में हॉकर अखबार पहुंचा देता है, जिसे पढ़ने को एक घंटे का वक्त लगता है। अगर सेहत संबंधी कोई खास बात होती है तो उसे डायरी में नोट कर लेती हैं।
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परिवार और बच्चों के साथ बातचीत के बीच कोई काम होता है तो उसमें भी हाथ बंटाती हैं। कहती हैं, वर्षों पहले उन्होंने कुछ किताबें खरीदी थीं, लेकिन व्यस्तताओं के चलते पढ़ नहीं पाई, उन्हें इन दिनों पढ़ रही हैं। किताब पढ़ते-पढ़ते भी कोई नया विचार मन में आता है तो उसे तत्काल डायरी में नोट कर लेती हैं।