Move to Jagran APP

समुद्र तट पर जन्मा, हिमालय की ओर बढ़ा और हिमालय बना

स्वामी सुंदरानंद की पहचान गंगोत्री धाम के एक संत एवं फोटोग्राफर स्वामी सुंदरानंद ने हिमालय सी बुलंदियों को छुआ।

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Dec 2020 10:13 PM (IST)Updated: Thu, 24 Dec 2020 10:13 PM (IST)
समुद्र तट पर जन्मा, हिमालय की ओर बढ़ा और हिमालय बना
समुद्र तट पर जन्मा, हिमालय की ओर बढ़ा और हिमालय बना

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी

loksabha election banner

स्वामी सुंदरानंद की पहचान गंगोत्री धाम के एक संत एवं फोटोग्राफर के रूप में ही नहीं, बल्कि एक बुजुर्ग अभिभावक और जानकार के रूप में भी रही। समुद्रतट पर अविभाजित आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में स्थित अनंतपुरम गांव में जन्मे स्वामी सुंदरानंद जब हिमालय की ओर बढ़े तो फिर हिमालय ही बन गए। हिमालय के प्रति अटूट प्रेम ने उन्हें कभी अपने ध्येय से नहीं भटकने दिया। स्वामी सुंदरानंद की उतारी हिमालय की लाखों बोलती तस्वीरें उन्हें हमेशा हिमालय जैसा जीवंत बनाए रखेंगी। गंगोत्री में आर्ट गैलरी के रूप में मौजूद इन तस्वीरों का स्मारक उनकी मौजूदगी का एहसास कराता रहेगा।

अविभाजित आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के अनंतपुरम गांव में वर्ष 1926 में जन्मे स्वामी सुंदरानंद को बचपन से ही पहाड़ लुभाते थे। पांच बहनों में सुंदरानंद अकेले भाई थे। पढ़ाई के लिए अनंतपुरम, नेल्लोर व चेन्नई जाने के बाद भी स्वामी सुंदरानंद चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाए। 1947 में उन्होंने घर छोड़ दिया और भुवनेश्वर, पुरी, वाराणसी, हरिद्वार होते हुए 1948 में वह गंगोत्री पहुंचे। यहां तपोवन महाराज के सानिध्य में संन्यास दीक्षा ली और हिमालय के भ्रमण में जुट गए। 1955 में समुद्रतल से 19510 फीट की ऊंचाई पर कालिदीखाल ट्रैक से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल ट्रैक से स्वामी सुंदरानंद अपने सात साथियों के साथ बदरीनाथ यात्रा पर गए। इसी बीच अचानक बर्फीला तूफान आ गया। तब जैसे-तैसे उन्होंने साथियों समेत स्वयं की जान बचाई। इस घटना के बाद स्वामी सुंदरानंद ने हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की ठान ली। 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और शुरू कर दी फोटोग्राफी। हिमालय में छह दशक के सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया।

वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक 'हिमालय : थ्रू ए लेंस ऑफ ए साधु' (एक साधु के लेंस से हिमालय दर्शन) में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 के चीनी आक्रमण के दौरान भारतीय सेना की बॉर्डर स्काउट के पथ प्रदर्शक रहे। एक माह तक उन्होंने कालिदी, पुलमसिधु, थागला, नीलापाणी व झेलूखाका बार्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया। जाते-जाते स्वामी सुंदरानंद गंगोत्री में तपोवनम हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी (हिमालय तीर्थ) स्थापित कर गए, जो उनकी खींची तस्वीरों को जीवंत स्मारक है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.