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13 साल से बिछुड़े युवक के लिए आपदा बनी अपनों से मिलने की वजह, एसडीआरएफ के जवान ने दिखाई राह

13 वर्ष पूर्व अपनों से बिछुड़े बिहार निवासी शीवाजन के लिए आपदा अपनों से मिलने की राह बनी। जल्द ही उसके परिजन उसे लेने देहरादून पहुंचेंगे।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 26 Aug 2019 03:02 PM (IST)Updated: Mon, 26 Aug 2019 08:27 PM (IST)
13 साल से बिछुड़े युवक के लिए आपदा बनी अपनों से मिलने की वजह, एसडीआरएफ के जवान ने दिखाई राह
13 साल से बिछुड़े युवक के लिए आपदा बनी अपनों से मिलने की वजह, एसडीआरएफ के जवान ने दिखाई राह

उत्तरकाशी, जेएनएन। यह कहानी है 13 वर्ष पूर्व अपनों से बिछुड़े बिहार निवासी शीवाजन की, जो दस साल की उम्र में बिहार से कुछ श्रमिकों के साथ काम की तलाश में हिमाचल प्रदेश आया था। वहां सभी श्रमिक सेब की पैकिंग का काम करने लगे, लेकिन बदकिस्मती से एक दिन अन्य श्रमिकों की सेब बागान मालिक से तकरार हो गई और वे शीवाजन को वहीं छोड़ भाग लिए। तब से उसका कोई अता-पता नहीं था। पर बीते दिनों आराकोट क्षेत्र में आई आपदा के दौरान शीवाजन राज्य आपदा प्रतिवादन बल (एसडीआरएफ) के जवान कुलदीप सिंह से टकरा गया। इसे उसकी खुशकिस्मती ही कहेंगे कि कुलदीप ने न केवल शीवाजन के घर-गांव का पता खोज निकाला, बल्कि अगले सप्ताह उसके परिजन उसे लेने देहरादून पहुंच रहे हैं। 

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एसडीआरएफ के जवान कुलदीप सिंह बताते हैं कि साल 2006 में सेब बागान के मालिक से तकरार होने के बाद रात में सभी श्रमिक वहां से भाग निकले थे। लेकिन वे शीवाजन को साथ ले जाने के बजाय एक कमरे में बंद कर गए। इसके बाद कुछ दिन तक शीवाजन सेब बागान मालिक के साथ ही रहा और प्रताड़ित होने पर एक दिन मौका देख वहां से भाग निकला। भटकते-भटकते वह त्यूणी (देहरादून) पहुंचा और दस दिन तक वहां एक होटल में काम किया। 

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इसके बाद होटल मालिक के एक परिचित उत्तरकाशी के किराणू गांव निवासी भुवनेश्वर चौहान उसे अपने साथ गांव ले गए। तब से शीवाजन किराणू में उनके बागीचों की देखभाल करता है। कुलदीप सिंह के अनुसार शीवाजन ने कई बार अपने घर जाने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन अपने गांव और जिले का सही नाम नहीं बता पाया। उसे केवल पिता का नाम ही याद था। गांव के शिक्षक ने कई बार शीवाजन के कहने पर उसके बताए पते पर चिट्ठी भी लिखी। पर, पता सही न होने के कारण ये चियां वापस लौट आईं। गांव में जो भी नया व्यक्ति आता था, शीवाजन उससे अपने गांव जाने की बात करता था। यहां तक कि चुनाव ड्यूटी में आने वाले कर्मियों से भी कई बार शीवाजन ने गुहार लगाई, पर कहीं से ठोस मदद नहीं मिल सकी। 

बीते 18 अगस्त को आराकोट क्षेत्र में आपदा से किराणू गांव भी प्रभावित हुआ। यहां 21 अगस्त को एसडीआरएफ की टीम पहुंची, जिसे गांव के लोग अपनी समस्या बता रहे थे। इसी दिन शाम को शीवाजन ने भी एसडीआरएफ जवान कुलदीप सिंह को अपनी व्यथा बताई। तब कुलदीप ने शीवाजन को उसके घर का पता लगाने का भरोसा दिलाया। बकौल कुलदीप, शीवाजन ने अपने पिता का नाम कृष्णा मांझी और गांव का नाम बडेजी बताया। इसके अलावा वह सिर्फ इतना ही बता पाया कि उसके घर के पास से बड़े-बड़े जहाज उड़ते हैं। सो मैंने गूगल पर बिहार के हवाई अड्डों की जानकारी जुटाई। सबसे पहले गया जिले के गांवों के नाम तलाशे, लेकिन उनमें बडेजी नहीं था। फिर इससे मिलता-जुलता नाम भडेजी तलाशा। 

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यह गांव गया जिले में हवाई अड्डे के निकट था। इसके बाद मैंने गांव के निकटवर्ती मगध मेडिकल थाने को युवक के बारे में सूचना दी। लेकिन, संबंधित थाने के अधिकारियों ने बताया कि भडेजी गांव मुफालिस कोतवाली क्षेत्र में आता है। 22 अगस्त को मैंने वहां के एसएचओ और 23 अगस्त की शाम गया के एसपी सिटी को इस संबंध में जानकारी दी। 24 अगस्त की सुबह मुफालिस थाने के एसएचओ ने बताया कि सात साल पहले शीवाजन के पिता की मौत हो चुकी है। जबकि उसकी मां का नाम फुलादेवी और भाई का नाम रोहित मांझी है। साथ ही उन्होंने गांव का एक संपर्क नंबर भी दिया। 

कुलदीप ने बताया कि इस नंबर के जरिये उन्होंने शीवाजन की फोटो वहां भेजी, जिसे फुलादेवी ने पहचान लिया। फिर शीवाजन की अपनी मां और भाई के साथ बात भी हुई। बताया कि रास्ते खराब होने के कारण एक सप्ताह बाद शीवाजन के परिजनों को देहरादून बुलाया गया है। उधर, शीवाजन के परिजनों ने पौड़ी जिले की चौबट्टाखाल तहसील के ग्राम कुलासू निवासी एसडीआरएफ जवान कुलदीप सिंह को देवदूत की संज्ञा देते हुए उनका आभार जताया है। एसडीआरएफ की सेनानायक तृप्ति भट्ट ने भी इस जवान की मानवीयता और जागरुकता की सराहना करते हुए उन्हें 2500 रुपये का नगद ईनाम देने की घोषणा की है। 

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