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प्रवासियों के सामने अब सबसे बड़ा संकट रोजी और बच्चों की पढ़ाई का

लॉकडाउन के बाद प्रवासियों के पहाड़ लौटने का सिलसिला लगातार जारी है। लेकिन इनके सामने अब सबसे बड़ा संकट रोजगार और बच्चों की शिक्षा का है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 16 Jun 2020 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 16 Jun 2020 06:00 AM (IST)
प्रवासियों के सामने अब सबसे बड़ा संकट रोजी और बच्चों की पढ़ाई का
प्रवासियों के सामने अब सबसे बड़ा संकट रोजी और बच्चों की पढ़ाई का

उत्‍तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। लॉकडाउन के बाद प्रवासियों के पहाड़ लौटने का सिलसिला लगातार जारी है। लेकिन, इनके सामने अब सबसे बड़ा संकट रोजगार और बच्चों की शिक्षा का है। इसके लिए प्रवासियों को सरकार और बैंकों से भी मदद की दरकार है। ताकि पलायन रुकने के साथ ही गांवों में रोजगार के संसाधन भी बढ़ें। हालांकि, सरकार ने उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने का भरोसा दिलाया है, लेकिन सवाल यह है कि संसाधनविहीन पहाड़ में यह कैसे संभव हो पाएगा। 

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उत्तरकाशी जिले के ग्राम जोगत मल्ला निवासी जशोधर जगूड़ी परिवार के साथ हरिद्वार से गांव लौटे हैं। कहते हैं, उनके गांव में 70 फीसद परिवारों की रोजी-रोटी ज्योतिष व्यवसाय से चलती है। लेकिन, गांव में ज्योतिष रोजगार के अवसर सीमित हैं। इसलिए स्थिति सामान्य होने पर वह दोबारा शहर का रुख करेंगे, ताकि रोजी-रोटी चल सके। जशोधर कहते हैं कि लघु उद्योग स्थापित करने के लिए सरकार ऋण देने की बात तो कर रही है, लेकिन, बिना तजुर्बे के कौन-सा लघु उद्योग स्थापित किया जाए। उद्योगों में तैयार उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने और ट्रांसपोर्ट आदि को लेकर भी कोई खाका तैयार नहीं है।

डुंडा ब्लॉक के दिखोली गांव निवासी 33-वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट सुरेश नौटियाल कहते हैं कि चंडीगढ़ में पिछले दस वर्षों से उनका कंप्यूटर सेंटर था। लेकिन, लॉकडाउन के चलते उसे बंद कर घर लौटना पड़ा। घर में उनके पास काफी खेत हैं, इसलिए डेयरी उद्योग शुरू करने की सोच रहे हैं। सरकार ऋण देने की बात तो कर रही है, लेकिन आम आदमी को बैंकों से ऋण आसानी से कहां मिल पाता है।

इसी तरह हुडोली गांव निवासी कैलाश पैन्यूली वर्षों से अपने दोनों भाइयों के साथ दिल्ली में मोटर वर्कशॉप चला रहे थे। लंबा लॉकडाउन हुआ तो वर्कशॉप पर ताला डालकर तीनों भाई परिवार के साथ गांव लौट आए। अब वह स्थिति के सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं। कहते हैं, जमा-जमाया धंधा है और बच्चे भी दिल्ली में ही पढ़ रहे हैं। लेकिन, अगर लंबे अंतराल तक स्थिति सामान्य नहीं हुई तो फिर गांव में ही स्वरोजगार तलाशेंगे। 

चिन्यालीसौड़ के ग्राम तराकोट निवासी अरविंद सिंह रांगड़ मैट्रिक तक पढ़े हैं। कहते हैं, वे पानीपत (हरियाणा) के एक होटल में काम करते थे, जो लॉकडाउन के बाद से बंद है। होटल खुलने के फिलहाल आसार नजर नहीं आ रहे। अगर बैंक से थोड़ा-बहुत ऋण मिल जाए तो मुर्गी फार्म खोलने का विचार है।

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इसी गांव के युवा भीम सिंह रावत पुणे (महाराष्ट्र) से लौटे हैं। कहते हैं, वह गंगोत्री-यमुनोत्री यात्रा मार्ग पर होटल या लॉज खोलने की सोच रहे हैं। डुंडा ब्लॉक के ग्राम थाती निवासी हेमराज कहते हैं, मैं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली में काम करते थे। लेकिन, वहां से मेरा कमरा बहुत दूर था, इसलिए नौकरी छूट गई। स्थिति सुधरती है तो दोबारा एम्स वापस लौटूंगा।

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