हिमालय दिवस को लेकर नागेंद्र व्यथित
उत्तरकाशी के तरुण पर्यावरण विज्ञान संस्था के अध्यक्ष एवं पर्यावरण प्रेमी नागेंद्र दत्त हिमालय दिवस के नाम पर होने वाली भाषणबाजी को लेकर व्यथित हैं।
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : उत्तरकाशी के तरुण पर्यावरण विज्ञान संस्था के अध्यक्ष एवं पर्यावरण प्रेमी नागेंद्र दत्त हिमालय दिवस के नाम पर होने वाली भाषणबाजी को लेकर व्यथित हैं। वह इस बात से दुखी हैं कि हिमालय क्षेत्र में विकास को लेकर अब तक स्पष्ट नीति नहीं बनी है, जबकि इसे यदि गंभीरता से लिया जाता तो पर्यावरण के क्षेत्र में ही हजारों युवाओं को रोजगार मिल सकता था। नागेंद्र दत्त उन व्यक्तियों में शामिल हैं, जिन्होंने वर्ष 2010 में हिमालय दिवस मनाने की पुरजोर वकालत की थी।
तरुण पर्यावरण विज्ञान संस्था के अध्यक्ष नागेंद्र दत्त कहते हैं कि 26-27 जून 2010 को देहरादून में आयोजित बैठक में जब 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था, तो उन्होंने भी इसका पुरजोर समर्थन किया था। हिमालय दिवस मनाने के साथ ही हिमालयी संघर्षों तथा सरोकारों को देश-दुनिया से जोड़ने की भी मुहिम शुरू की। वह कहते हैं कि 17-18 जुलाई 2010 को गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में जन आंदोलन व संगठनों का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें उन्होंने भी प्रतिभाग कर सामुदायिक संपदा जल, जंगल, जमीन और खनिज बचाने के लिए हो रहे जनसंघर्षो के बारे में बात रखी। इस पर एक आवाज एक धुरी बनाने और हिमालयी क्षेत्र में विकास की एक विशेष जन नीति बनाने का निर्णय लिया गया था। लेकिन, आज तक सरकारी सिस्टम में हिमालयी क्षेत्र में विकास को लेकर कोई स्पष्ट नीति तक नहीं है।
नागेंद्र दत्त कहते हैं कि हिमालय दिवस की सार्थकता तभी है, जब हिमालय क्षेत्र की सही विकास नीति की नीयत से कार्य किए जाएं। प्राकृतिक संसाधनों का बड़ी संख्या में दोहन करने के बाद भी सरकार यहां के युवाओं को रोजगार नहीं दे पाई है, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरण की रक्षा के कार्य में बहुत बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन हो सकता है। हिमालय के प्राकृतिक वनों को बचाने और क्षतिग्रस्त वनों को नया जीवन देने में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। पशुपालन, जैविक खेती, वन उपज से ग्राम समुदाय को जोड़ने, ईको पर्यटन क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं, जो हिमालय दिवस की सार्थकता के लिए सबसे जरूरी हैं।