माघ मेले में पारंपरिक रासौं नृत्य का रहा आकर्षण
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : माघ मेले के दूसरे दिन पारंपरिक लोक नृत्य रासौं-तांदी के ना
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : माघ मेले के दूसरे दिन पारंपरिक लोक नृत्य रासौं-तांदी के नाम रहा है। इसमें अलग-अलग गांव की महिलाओं ने रासौं-तांदी नृत्य की प्रस्तुति दी है। इसके साथ ही चिन्यालीसौड़ विकासखंड की सांस्कृतिक टीम ने अपनी प्रस्तुति दी। इस मौके पर दूरदराज से आए ग्रामीणों ने मेले में खरीददारी की।
धीरे-धीरे माघ मेले का रंग जमने लगा है। मंगलवार को सांस्कृतिक कार्यक्रमों में महिला मंगल दल कोटियाल गांव की महिलाओं ने सबसे पहले रासौं नृत्य प्रस्तुत किया। इसके बाद महिला मंगल दल लदाड़ी की महिलाओं ने रासौं तांदी नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी। महिला मंगल दल दिलसौड़ की महिलाओं ने अपने पारंपरिक पहनावे में रासौं नृत्य किया। इन टीमों की प्रस्तुति आकर्षण का केंद्र रही है।
इसके साथ लोक गायक लोकेंद्र कैंतुरा की टीम ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। इसके साथ ही लोक गायक नवीन कठैत, मुकेश नौटियाल, सुंदर सैलानी की टीम ने भी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर समा बांधा। इस मौके पर जिला पंचायत अध्यक्ष जशोदा राणा ने कहा कि माघ मेले में शिरकत करने के लिए जिला प्रभारी मंत्री एवं उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन ¨सह रावत बुधवार की उत्तरकाशी पहुंचेंगे तथा गुरुवार के माघ मेले के कार्यक्रम में भाग लेंगे। माघ मेले में कृषि विभाग की गोष्ठी का आयोजन
उत्तरकाशी : माघ मेले के दूसरे दिन रामलीला मैदान में कृषि विभाग की की ओर से किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें विभागीय अधिकारियों ने किसानों से खेती, फसल, मिट्टी व जैविक खाद के संबंध में सवाल पूछे। सही जवाब देने वालों को सम्मानित किया गया। जिसमें महिला किसान बवीता, विनिता सेमवाल, किसन ¨सह को पुरस्कृत किया गया। आत्मा योजनान्तर्गत किसान गोष्ठी मुख्य कृषि अधिकारी महिधर ¨सह तोमर एवं भूमि संरक्षण अधिकारी सचिन कुमार ने
किसानों से अपील करते हुए कहा कि वे जैविक खेती अपनाएं। जिससे आने वाले समय में किसानों को अपनी फसल का अच्छा मूल्य भी मिलेगा। सहायक कृषि अधिकारी, यशपाल ¨सह राणा, मुकेश तोपवाल, शैलेन्द्र उनियाल, धर्मेन्द्र प्रसाद भट्ट, शैलेन्द्र रतूड़ी आदि मौजूद थे।
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चमाला की चौंरी में पांडवों ने जमाई थात
उत्तरकाशी : पौराणिक माघ मेले (बाहाड़ाट का थौलू) की कुछ पौराणिकता अभी भी बरकरार है। इन पौराणिकताओं में तीन दिन तक चलने वाला पांडव नृत्य भी शामिल है। मंगलवार से चमाला की चौंरी में पांडव नृत्य शुरू हुआ। बुधवार को इस कार्यक्रम में हाथी का स्वांग आयोजित होगा। इस पौराणिक नृत्य का समापन मंगलवार को लक्षेश्वर में होगा।
उत्तरकाशी के पौराणिक माघ मेले में समय के साथ बदलाव आते चले आए हैं। बाहाड़ाट का थौलू में चावल के चुहड़े बनाने की परंपरा तो खत्म हो गई है। लेकिन, पांडव नृत्य का आयोजन अभी भी बरकरार है। बीते मंगलवार को पांडव के पश्वा लक्षेश्वर से कंडार देवता के साथ कंडार देवता मंदिर के लिए आए। जहां से पांडवों के पश्वा गंगा स्नान के लिए पहुंचे। गंगा किनारे से नृत्य करते हुए पांडवों के पश्वा चमाला की चौंरी में आए। जहां पांडवों के पश्वों ने अपनी थात जमाई और पांडव नृत्य शुरू किया।
इस मौके पर अमर ¨सह, पदम ¨सह नेगी, विजय लाल नैथानी, इंद्र देव, कुंती डंगवाल, पदम ¨सह चौहान, राजपाल चौहान, रामलाल आर्य, कलमू राम, सुखशर्मा नौटियाल आदि मौजूद थे।