India-China Border News: चीन सीमा पर नेलांग में हिम प्रहरियों की चौकन्नी नजर
India-China Border News लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद उपजे तनाव के बीच चीन से सटी उत्तराखंड की 345 किलोमीटर सीमा हमेशा से संवदेनशील रही है।
उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। समुद्रतल से लगभग चार हजार मीटर की ऊंचाई। भारत-चीन सीमा पर पसरे वीराने में फौजी गतिविधियां ही जीवन का अहसास कराती हैं। यह उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी है। अग्रिम मोर्चे पर तैनात हिमवीरों (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल) की चौकन्नी निगाह संदेश दे रही है कि आप चैन की नींद सो सकते हैं, सीमा पूरी तरह सुरक्षित है।
लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद उपजे तनाव के बीच चीन से सटी उत्तराखंड की 345 किलोमीटर सीमा हमेशा से संवदेनशील रही है। इसमें से 122 किलोमीटर उत्तरकाशी जिले में है। सामरिक दृष्टि से संवेदनशील यह क्षेत्र जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 129 किलोमीटर दूर है। विषम भूगोल वाली नेलांग घाटी में सेना और आइटीबीपी के जवान सतर्क हैं। उत्तरकाशी के पास चिन्यालीसौड़ में हवाई पट्टी का कार्य भी अंतिम चरण में है।
चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी का निर्माण कर रही एजेंसी उत्तर प्रदेश निर्माण निगम के प्रोजेक्ट मैनेजर घनश्याम सिंह ने बताया कि हवाई पट्टी का कार्य तकरीबन पूरा हो चुका है। सेना और वायुसेना यहां परीक्षण करते रहे हैं। यहां से चीन सीमा की हवाई दूरी (एरियल डिस्टेंस) 126 किलोमीटर है। वर्ष 1990 में नेलांग तक सड़क तैयार कर ली गई थी, इसके बाद नेलांग से जादूंग करीब 16 किलोमीटर लंबी सड़क वर्ष 2005 में पूरी हो गई।
कभी गुलजार था नेलांग
वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध से पहले नेलांग घाटी भी गुलजार थी। घाटी के दो प्रमुख गांव जादूंग और नेलांग में क्रमश: 30 और 50 परिवार रहते थे। नेलांग के मूल निवासी एवं 88 वर्षीय ईश्वर सिंह राणा बताते हैं कि वर्ष 1962 में चीनी सेना सोनम नामक स्थान तक आ गई थी। जिसे भारतीय सेना ने पीछे धकेल दिया। युद्ध समाप्त होने के बाद सेना ने ये दोनों गांव खाली करा दिए। ये सभी 80 परिवार बगोरी, हर्षिल और डुंडा गांव में बस गए। नेलांग और जादूंग में उनकी जमीनों पर सेना और आइटीबीपी ने अपने कैंप बनाए। हर्षिल गांव की सीमा से नेलांग तक का क्षेत्र इनर लाइन में आता है। यहां आने के लिए सैलानियों को प्रशासन से अनुमति लेनी होती है।
62 से पहले भारत-तिब्बत व्यापार का केंद्र थी उत्तरकाशी की गंगा घाटी
वर्ष 1962 से पहले उत्तरकाशी जिले की गंगा घाटी और तिब्बत के लोग दैनिक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए एक दूसरे पर निर्भर थे। सर्दियां शुरू होने से पहले तिब्बती व्यापारी (दोरजी) चंवर गाय, याक व भेड़ों पर ऊन व चमड़े से बने वस्त्र, नमक, जड़ी-बूटियां और खिलौने आदि लाद उत्तरकाशी तक पहुंचते थे। तब यहां हाट लगती थी और इसीलिए उत्तरकाशी को बाड़ाहाट (बड़ा बाजार) भी कहा जाता है। इस दौरान दूर-दूराज के गांवों से लोग यहां आकर मोल भाव करते थे। सर्दियां समाप्त होते ही दोरजी तेल, तंबाकू, दालें, गुड़, चीनी, चाय जैसी वस्तुएं लेकर लौट जाते थे। व्यापार रुपये पैसे से नहीं, बल्कि वस्तु विनिमय के आधार पर होता था।
मई में हर्षिल में भी घुसपैठ की चर्चा
लद्दाख में घुसपैठ के बाद मई में नेलांग क्षेत्र में भी चीनी सैनिकों की घुसपैठ की चर्चा थी। हालांकि सरकार, शासन और प्रशासन ने इससे इन्कार किया था। तब यह बात सामने आई थी कि हर्षिल से 85 किलोमीटर दूर मुलिंगला, थांगला-1 और थांगला-2 क्षेत्र में चीनी सैनिक देखे गए। हालांकि, भारतीय जवानों ने उनके मंसूबों को नाकाम कर दिया। गौरतलब है कि 21 मई को मध्य कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग, ईएस घुमन हर्षिल पहुंचे थे और उन्होंने सीमावर्ती चौकियों का निरीक्षण किया।
ले.जनरल (सेवानिवृत्त) मोहन सिंह भंडारी का कहना है कि भारत-चीन के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है, क्योंकि कई इलाकों को लेकर दोनों के बीच सीमा विवाद है। हालांकि, यथास्थिति बनाए रखने के लिए एलएसी का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह मसला लंबे वक्त से चला आ रहा है और इसे सुलझाने की कोशिशें भी जारी हैं। यह कहना गलत है कि दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति आएगी। यह एक कूटनीतिक मसला है।
लिपुपास में चीन सीमा पर आइटीबीपी सतर्क
लद्दाख में चीन से बढ़ते तनाव के मद्देनजर लिपुपास में भी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) ने सतर्कता बढ़ा दी है। आइटीबीपी चीन के किसी भी हरकत का जवाब देने के लिए तैयार है। हालांकि, अभी तक चीन सेना की ओर से इस इलाके में किसी भी प्रकार का दुस्साहस नहीं किया गया है। आइटीबीपी ने लिपुपास क्षेत्र में चीन सेना द्वारा झंडा फहराकर माहौल खराब करने की चर्चाओं को अफवाह बताया है।
लिपुलेख क्षेत्र में स्थित लिपुपास में भारतीय सीमा पर तैनात आइटीबीपी की 14वीं वाहिनी चीनी सैनिकों की हर गतिविधि पर नजर बनाए हुए है। आइटीबीपी के डीआइजी एपीएस निंबाडिया ने बताया कि सीमा पर कांबिंग के दौरान दोनों देशों के सैन्य जवान सफेद झंडा फहराते हैं। दोनों देश की सेना यह प्रक्रिया शांति का संदेश देने के लिए प्रतिदिन पूर्ण करती है। यह एक औपचारिकता है। जिसे निभाया जाता है। यदि भविष्य में वहां तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है तो आइटीबीपी उससे निपटने के लिए तत्पर है। आइटीबीपी की 14वीं वाहिनी के सेनानी अनुप्रीत टी बोरकर ने बताया कि प्रतिदिन चीन सीमा के हालात से उच्चाधिकारियों को अवगत कराया जाता है। फिलहाल हाल के दिनों में वहां अशांति जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है।
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चमोली में भी चीन सीमा पर सजगता बढ़ी
चमोली से सटी चीन सीमा पर भी सेना पूरी तरह सतर्क है। बार्डर पर होने वाली हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है। इन दिनों बड़ी संख्या में सेना के ट्रक सीमा की ओर आवाजाही कर रहे हैं। हालांकि, सेना के सूत्रों ने इसे नियमित कार्यवाही का हिस्सा बताया। कहा कि वाहनों की आवाजाही सामान्य प्रक्रिया है।
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