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भारत में पहली बार इस तकनीक से किया गया बुग्यालों का संरक्षण, जानिए कहां से हुई शुरुआत

उत्तरकाशी जिले में एक अभिनव प्रयोग हुआ है। यह शुरुआत समुद्रतल से 10500 फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल से हुई है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 12 Jun 2020 12:10 PM (IST)Updated: Fri, 12 Jun 2020 03:09 PM (IST)
भारत में पहली बार इस तकनीक से किया गया बुग्यालों का संरक्षण, जानिए कहां से हुई शुरुआत
भारत में पहली बार इस तकनीक से किया गया बुग्यालों का संरक्षण, जानिए कहां से हुई शुरुआत

उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। हिमालय की गोद में फैले औषधीय पौधों और मखमली घास से लकदक मैदानों (बुग्याल) को बचाने के लिए उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक अभिनव प्रयोग हुआ है। यह शुरुआत समुद्रतल से 10,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल से हुई है। यहां करीब 600 मीटर कटाव क्षेत्र में जूट और नारियल के रेशों से तैयार जाल (केयर नेट), पिरुल (चीड़ की पत्ती) के चेक डैम बंडल और बांस के खूंट से ट्रीटमेंट किया गया। साथ ही जाल के बीच में बुग्याल प्रजाति के पौधों का रोपण भी किया गया है। उत्तरकाशी वन विभाग के प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) संदीप कुमार कहते हैं कि यह ट्रीटमेंट 100 फीसद ईको फ्रेंडली है और भारत में पहली बार इस तकनीकी से बुग्यालों का संरक्षण किया गया है। 

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जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 50 किमी दूर दयारा बुग्याल 30 वर्ग किमी क्षेत्र फैला हुआ है। दरअसल, बीते कुछ वर्षों में प्राकृतिक कारणों और मानवीय हस्तक्षेप के चलते बुग्यालों में भूस्खलन की रफ्तार बढ़ी है। इससे उनके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। इसीलिए बुग्यालों के संरक्षण को सरकार खासा ध्यान दे रही है। हालांकि दयारा बुग्याल में यह प्रयोग एकदम नया है।

इसके लिए जूट और नारियल के रेशों से तैयार केयर नेट कॉयर बोर्ड ऑफ इंडिया देहरादून से मंगवाएं, चेक डैम बनाने के लिए पिरुल धरासू रेंज के सिलक्यारा से लाई गई। कोटद्वार से बांस के खूंटे मंगवाएं, जिसके बाद इसका ट्रीटमेंट शुरू हुआ। जून के पहले सप्ताह तक यह ट्रीटमेंट पूरा हो चुका है। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला है। 

डीएफओ संदीप कुमार बताते हैं कि बुग्याल के ट्रीटमेंट को विशेषज्ञों की सलाह से केयर नेट और केयर चेक डैम की योजना बनाई गई। केयर नेट जूट और नारियल के रेसों से बनी एक प्रकार की मैट या जाल है, जिन्हें उन स्थानों पर बिछाया गया जहां मिट्टी का कटाव हो रहा था। साथ ही पिरुल के केयर चेक डैम भी बनाए गए। ट्रीटमेंट में इसका ध्यान रखा गया कि इससे बुग्याल को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे। 

पर्यटकों के लिए खास है दयारा 

हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र में जहां बुग्यालों की अहम भूमिका है, वहीं पर्यटकों के लिए भी ये बेहद खास हैं। शीतकाल में दिसंबर से लेकर अप्रैल तक बुग्याल की ढलानों पर बर्फ की चादर बिछी रहती है। शीतकालीन खेलों के लिए भी दयारा बुग्याल में आदर्श स्थितियां हैं। स्कीइंग विशेषज्ञ सतल सिंह पंवार बताते हैं कि दयारा बुग्याल में स्कीइंग के लिए गुलमर्ग से बेहतर स्थितियां हैं। मई से लेकर नवंबर तक यहां पर्यटक प्रकृति का आनंद लेते हैं। 

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कटाव की ये है वजह  

उत्तरकाशी के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल के मुताबिक, कमजोर भौगोलिक गठन, भूमि संरचना, भूकंपीय सक्रियता, अधिक बरसात और बादलों के फटने जैसी प्राकृतिक घटनाएं बुग्याली क्षेत्र में मिट्टी के कटाव का प्रमुख कारण होती हैं। हालांकि, बुग्यालों में अत्याधिक मानवीय हस्तक्षेप भी मिट्टी के कटाव का कारक है। इसके अलावा बुग्यालों में एक ही स्थान पर पशुओं को चराना भी इसकी एक वजह है।

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