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उत्तराखंड के काश्तकारों की उम्मीदों पर मौसम ने बरपाया कहर

राज्य के पर्वतीय जनपदों में बीते अप्रैल माह से लगातार किसानों और बागवानों पर मौसम अपना सितम बरपा रहा है। अतिवृष्टि के कारण नकदी व पारंपरिक फसल के साथ ही बागवानी चौपट हो गई।

By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Published: Mon, 04 May 2020 11:48 AM (IST)Updated: Mon, 04 May 2020 11:48 AM (IST)
उत्तराखंड के काश्तकारों की उम्मीदों पर मौसम ने बरपाया कहर
उत्तराखंड के काश्तकारों की उम्मीदों पर मौसम ने बरपाया कहर

उत्तरकाशी, जेएनएन। राज्य के पर्वतीय जनपदों में बीते अप्रैल माह से लगातार किसानों और बागवानों पर मौसम अपना सितम बरपा रहा है। ओलावृष्टि व अतिवृष्टि के कारण नकदी व पारंपरिक फसल को 40 व बागवानी को 50 फीसद से अधिक नुकसान का अनुमान है। 

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चमोली जनपद में तो बागवानी को 70 फीसद से अधिक नुकसान हुआ है। फिलहाल क्षतिग्रस्त हुई फसलों को आंकलन किया जा रहा है। इसकी रिपोर्ट आने पर ही नुकसान की असली तस्वीर साफ होगी। 

बीते अप्रैल के पहले सप्ताह से लेकर तीन मई तक दस से अधिक बार ओलावृष्टि व अतिवृष्टि हो चुकी है। जिसके कारण गेहूं, मटर, जौ की तैयार फसल तथा आलू की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। मौसम की सबसे अधिक मार बागवानी और नकदी फसलों पर पड़ी है। 

उत्तरकाशी जनपद से लेकर चमोली जनपद तक मौसम की मार ने 50 हजार से अधिक काश्तकारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। शीतकाल में अच्छी बारिश और बर्फबारी से काश्तकारों को उम्मीद थी कि मौसम की खुराक से रवि की फसल की अच्छी पैदावार तथा खरीफ की फसल पर भी इसका अच्छा असर पड़ेगा। 

साथ ही सेब, नासपाती, आडू, पुलम सहित टमाटर, आलू, गोभी, शिमला मिर्च, बीन्स, लौकी, खीरा, कददू, ङ्क्षभडी सहित आदि नकदी फसलों का बंपर उत्पादन होगा।  काश्तकारों को कहां पता था कि जिस मौसम से उन्हें पहले अच्छे फायदे की उम्मीद थी, उसने कहर बरपा दिया। 

राष्ट्रीय कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त उत्तरकाशी के गोरसाली निवासी जगमोहन ङ्क्षसह राणा कहते हैं कि गेहूं की बालियां ओले के चलते टूटकर खेतों में बिछ गई हैं। सरसों और मटर मसूर की पकती फसल को भी ओले से काफी नुकसान हुआ है। रबी सीजन प्राकृतिक आपदा टूट पड़ी है। 

अधिकतर किसानों की फसल कटकर मड़ाई करने को तैयार है, लेकिन लगातार अतिवृष्टि व ओलावृष्टि से फसल बर्बादी के कगार पर पहुंच गई है। किसानों के बीच काम करने वाले आपदा प्रबंधन जनमंच के आंकलन के अनुसार बारिश व ओलावृष्टि के चलते जिले में 35 फीसद फसलें नष्ट हो गई है। बागवानी को कई स्थानों पर 50 फीसद से अधिक नुकसान पहुंचा है।

नकदी फसलों को ऐसे पहुंचा नुकसान

पहाड़ों में बीते अप्रैल से सब्जी उत्पादन के लिए पौध रोपण किया जा रहा है। नकदी फसलों में इन दिनों आलू की गुड़ाई चल रही है। जबकि टमाटर, गोभी, शिमला मिर्च, बीन्स, लौकी, खीरा, कददू, ङ्क्षभडी सहित कई सब्जियों की पौध लगाई जा रही है। लेकिन, ओलावृष्टि ने इन सब्जियों की छोटी पौध को बड़ा नुकसान पहुंचाया दिया है।

अभी शुरू नहीं हुआ क्षति का आंकलन 

जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण, गंगोत्री विधायक गोपाल रावत ने अतिवृष्टि और ओलावृष्टि से हुए नुकसान का आंकलन करने तथा प्रभावित ग्रामीणों को मुआवजा देने के लिए मुख्यमंत्री व कृषि मंत्री से बात की। सरकार ने सभी जनपदों में अतिवृष्टि और ओलावृष्टि से हुए फसल नुकसान की रिपोर्ट मांगी है। 

ओलावृष्टि और अतिवृष्टि पर नजर 

14 अप्रैल उत्तरकाशी चिन्यालीसौड़ व स्यूरी फल पट्टी, टिहरी के प्रतापनगर घनसाली, रुद्रप्रयाग और चमोली में। 

21 अप्रैल उत्तरकाशी मोरी बंगाण व चमोली में। 

23 अप्रैल उत्तरकाशी के नौगांव में। 

26 अप्रैल उत्तरकाशी के मोरी और आराकोट, रुद्रप्रयाग व चमोली में। 

27 अप्रैल टिहरी के सकलाना क्षेत्र में। 

29 अप्रैल उत्तरकाशी के नंदगांव व गीठ क्षेत्र में।

30 अप्रैल उत्तरकाशी की गंगा घाटी और यमुना घाटी में। 

1 मई  उत्तरकाशी जनपद के गंगा घाटी में। 

2 मई  उत्तरकाशी गंगा घाटी और चमोली के पोखरी, पीपलकोटी, घाट, नंदप्रयाग, जोशीमठ व गोपेश्वर में। 

3 मई  उत्तरकाशी के पुरोला और टिहरी व चमोली में। 

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नुकसान के आंकलन को दिए गए निर्देश 

उत्तरकाशी के जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान के मुताबिक, ओलावृष्टि और अतिवृष्टि में क्षति के आंकलन के लिए सभी एसडीएम को निर्देश दिए गए हैं। यह भी देखा जा रहा है कि कितने काश्तकारों ने फसल बीमा किया हुआ है। आगे से फसल बीमा के लिए हर काश्तकार को प्रेरित किया जाएगा। 

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