गौरीकुंड और सूर्यकुंड से होकर आगे बढ़ती है गंगा, जानिए इसके पीछे की मान्यता
गौरीकुंड और सूर्यकुंड का अपने आप में बहुत महत्व है। माना जाता है कि मां गंगा गौरीकुंड और सूर्यकुंड से होकर ही आगे बढ़ती है।
उत्तरकाशी, [जेएनएन]: विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम में सूर्यकुंड और गौरीकुंड का विशेष माहात्म्य है। आज भी भागीरथी (गंगा) की धारा इन्हीं दोनों कुंडों से होकर आगे बढ़ती है। यही वजह है कि यात्रियों के साथ पर्यटक भी बड़ी संख्या में इन कुंडों की खूबसूरती निहारने गंगोत्री धाम पहुंचते हैं।
उत्तरकाशी से सौ किमी दूर और समुद्रतल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है गंगोत्री धाम। मान्यता है कि गंगोत्री में स्थित एक शिला पर बैठकर राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए 5500 वर्षो तक कठोर तप किया था। इस शिला को कालांतर में भगीरथ शिला नाम से जाना गया। आज भी यह शिला गंगोत्री में विद्यमान है।
जब गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी थी तो भगीरथ शिला से 500 मीटर की दूरी पर स्थित गौरीकुंड में भगवान शंकर ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया। आज भी यहां पर पत्थर का एक शिवलिंग मौजूद है। इसकी परिक्रमा करते हुए ही गंगा आगे बढ़ती है। इस शिवलिंग के दर्शन शीतकाल में गंगा का जलस्तर कम होने पर ही हो पाते हैं।
गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित सुधांशु सेमवाल के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि रामेश्वरम में गौरीकुंड से आगे का गंगाजल नहीं चढ़ाया जाता। जो लोग रामेश्वरम गंगाजल लेकर जाते हैं, वे गौरीकुंड से पहले का गंगाजल भरते हैं। वहीं, गंगोत्री मंदिर से सौ मीटर के फासले पर राजा भगीरथ ने सूर्यदेव को अघ्र्य दिया था। इस स्थान पर आज भी गंगा एक धारा के रूप में कुंड में गिरती है। बताते हैं कि इस कुंड में भी एक शिवलिंग विराजमान है। तीर्थ पुरोहित रजनीकांत सेमवाल बताते हैं कि गंगोत्री धाम में सूर्यकुंड विशेष आकर्षण का केंद्र है। सूर्य कुंड के पास गंगा की धारा पूरब दिशा की ओर की ओर गिरती है।
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