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ग्रामीण अंचलों में जैविक खेती को हकीकत के धरातल की दरकार

जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन ग्रामीण आंचलों में किसान जैविक खेती कैसे करें इसके लिए किसानों तक जरूरी जानकारियों नहीं पहुंच पा रही है। जिले में स्थिति यह है कि जैविक खेती करने के लिए कहां संपर्क करना है इसका भी कोई पता नहीं है।

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 17 Jun 2021 05:08 PM (IST)Updated: Thu, 17 Jun 2021 05:08 PM (IST)
ग्रामीण अंचलों में जैविक खेती को हकीकत के धरातल की दरकार
ग्रामीण आंचलों में किसान जैविक खेती कैसे करें, इसके लिए किसानों तक जरूरी जानकारियों नहीं पहुंच पा रही है।

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी : जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन, ग्रामीण आंचलों में किसान जैविक खेती कैसे करें, इसके लिए किसानों तक जरूरी जानकारियों नहीं पहुंच पा रही है। जिले में स्थिति यह है कि जैविक खेती करने के लिए कहां संपर्क करना है तथा कहां प्रशिक्षण लेना है इसका भी कोई पता नहीं है। जिले में घोषित जैविक ब्लाक में सात हजार किसानों में से केवल तीन सौ किसानों के पास ही जैविक खाद तैयार करने के लिए पिट बने हैं।

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उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड को जैविक प्रदेश बनाने की बयानबाजी शुरू हो गई थी। वर्ष 2003 में जैविक उत्पाद परिषद का गठन किया गया है। वर्ष 2015 में हर जिले में जैविक ब्लाक चुने गए। इसी में उत्तरकाशी जनपद का भटवाड़ी ब्लाक को शासन स्तर पर चुना गया। लेकिन, भटवाड़ी ब्लाक में सेब काश्तकारों के विरोध के कारण इसके बादल डुंडा ब्लाक को जैविक ब्लाक बनाने की कवायद शुरू हुई। 2015 में केन्द्र सरकार से करीब 10 करोड़ की धनराशि भी आई। लेकिन, जैविक उत्पाद परिषद के डुंडा ब्लाक के सात हजार किसानों में से केवल चार हजार किसानों का पंजीकरण किया है। जैविक खाद तैयार करने के लिए हर किसान के पास जैविक खाद पिट तैयार करवाए जाने थे। पर, अभी तक पूरे ब्लाक में केवल साढ़े सौ किसानों के पास ही जैविक खाद पिट हैं। बजट न मिलने के कारण इस वर्ष एक भी जैविक खाद पिट तैयार नहीं कराया गया। साथ ही गांव में ग्रामीणों जैविक खेती के लिए जागरूक करने के कार्यक्रम पर भी ब्रेक लग गया है। किसानों को जैविक खेती के लिए जागरूक करने का जिम्मा जैविक उत्पाद परिषद के पास है। लेकिन परिषद की हालत ऐसी है कि जिले में तैनात कर्मचारियों के बैठने के लिए एक कार्यालय नहीं है।

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कर्मचारियों की संख्या भी सीमित है। जिसके कारण न तो किसानों के तैयार उत्पादों के सैंपल भरे जा रहे हैं और न मिट्टी की जांच के अनुसार से किसानों को जैविक खाद और जैविक दवाइयां मिल पा रही है। भले ही कृषि विभाग के अनुसार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए पूरे जनपद में 450 कलस्टरों में परपंरागत कृषि विकास योजना के तहत कार्य हो रहा है। लेकिन प्रभावी से यह कार्य दिख नहीं रही है। प्रभारी मुख्य कृषि अधिकारी उत्तरकाशी सचिन कुमार का कहना है क‍ि जनपद उत्तरकाशी में कृषि विभाग को 450 कलस्टरों में परंपरागत जैविक खेती को बढ़ावा दिए जाने का कार्य किया जा रहा है। यह योजना तीन वर्ष की है। जिसमें दूसरे और तीसरे वर्ष उत्पादों की जैविकता की जांच भी की जाएगी। 

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