Move to Jagran APP

हिमालय के प्रसिद्ध फोटोग्राफर स्वामी सुंदरानंद ने छोड़ा शरीर, तपोवन कुटिया के पास बनायी जाएगी समाधि

हिमालय के प्रसिद्ध फोटोग्राफर एवं गंगोत्री के प्रमुख संत स्वामी सुन्दरानंद ने 95 वर्ष की आयु में बुधवार की रात को शरीर छोड़ दिया है। आज गुरुवार को उनका शरीर गंगोत्री लाया जाएगा तथा उनकी तपोवन कुटिया के पास समाधि बनायी जाएगी।

By Sunil Singh NegiEdited By: Published: Thu, 24 Dec 2020 07:10 AM (IST)Updated: Thu, 24 Dec 2020 10:48 PM (IST)
हिमालय के प्रसिद्ध फोटोग्राफर स्वामी सुंदरानंद ने छोड़ा शरीर, तपोवन कुटिया के पास बनायी जाएगी समाधि
हिमालय के प्रसिद्ध फोटोग्राफर स्वामी सुंदरानंद। फाइल फोटो

जागरण संवाददाता उत्तरकाशी। हिमालय के प्रसिद्ध फोटोग्राफर एवं गंगोत्री के प्रमुख संत स्वामी सुन्दरानंद ने 95 वर्ष की आयु में बुधवार की रात को शरीर छोड़ दिया है। आज गुरुवार को उनका शरीर गंगोत्री लाया जाएगा तथा उनकी तपोवन कुटिया के पास समाधि बनायी जाएगी। स्वामी सुन्दरानंद को बीते अक्टूबर माह में कोरोना संक्रमण भी हुआ था। जिससे स्वस्थ होकर अस्पताल से वह अपने परिचित डॉक्टर अशोक लुथरा के घर चले गए थे। रात को भोजन करने के बाद कुछ देर तक उन्होंने बातचीत की और फिर अपना शरीर छोड़ दिया। वहीं, मुख्‍यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ट्वीट कर कहा हिमालय के विशेषज्ञ फोटोग्राफर कहे जाने वाले गंगोत्री के प्रमुख संत स्वामी सुन्दरानन्द ने अपना शरीर त्याग दिया है। स्वामी जी के जीवन से भविष्य की पीढ़ियों को प्रकृति प्रेम की प्रेरणा मिलती रहेगी। ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दे। 

loksabha election banner

ग़ौरतलब है कि हिमालय में अपने सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है। जिसमें अधिकांश फ़ोटो गंगोत्री में स्थित उनकी आर्ट गैलरी में प्रदर्शित हैं। वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक ‘हिमालय : थ्रू ए लेंस ऑफ ए साधु' (एक साधु के लैंस से हिमालय दर्शन) में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। अब तक इस पुस्तक की साढ़े तीन हजार प्रतियां बिक चुकी हैं।

आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में 1926 में जन्मे स्वामी सुंदरानंद को पहाड़ों के प्रति बचपन से ही आकर्षण था। प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 1947 में वह पहले उत्तरकाशी और यहां से गोमुख होते हुए आठ किलोमीटर दूर तपोवन पहुंचे। कुछ समय तपोवन बाबा के सानिध्य में रहने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया।

1955 में 19,510 फुट की ऊंचाई पर कालिंदी खाल से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से स्वामी सुंदरानंद अपने साथियों के साथ बदरीनाथ की यात्रा पर थे। अचानक बर्फीला तूफान आ गया और अपने सात साथियों के साथ वे किसी तरह बच गया। बस, यहीं से उन्होंने हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की ठान ली। 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और शुरू कर दी फोटोग्राफी।

यह भी पढ़ें - गंगोत्री धाम में कीजिए हिमालय के विराट दर्शन, पढ़िए पूरी खबर

चीनी आक्रमण में भारतीय सेना के रह चुके पथ प्रदर्शक 

गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे तथा ग्लेशियर एवं गाड़-गदेरों (बरसाती नाले) से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 के चीनी आक्रमण में भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ प्रदर्शक रह चुके हैं। भारत-चीन युद्ध के दौरान वह सेना के पथ प्रदर्शक भी रहे। एक माह तक साथ रहकर उन्होंने कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बार्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया।

यह भी पढ़े - 1962 के युद्ध के दौरान जब सेना का सहायक बना हिमालय का एक साधु


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.