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हौसले ने खिलाया प्रतिभा का 'पंकज', बना इंडियन ब्लाइंड फुटबाल टीम का कप्तान

हिम्‍मत और हौसले से यह दिव्‍यांग आज न केवल इंडियन ब्लाइंड फुटबाल टीम का कप्तान बना, बल्कि चार बार अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैच भी खेले।

By Edited By: Published: Mon, 04 Feb 2019 03:01 AM (IST)Updated: Mon, 04 Feb 2019 03:40 PM (IST)
हौसले ने खिलाया प्रतिभा का 'पंकज', बना इंडियन ब्लाइंड फुटबाल टीम का कप्तान
हौसले ने खिलाया प्रतिभा का 'पंकज', बना इंडियन ब्लाइंड फुटबाल टीम का कप्तान

उत्तरकाशी, ओंकार बहुगुणा। हौसला और हिम्मत हो तो दुश्वारियां खुद-ब-खुद बौनी हो जाती हैं। इसकी बानगी पेश कर रहे हैं उत्तरकाशी जिले की बड़कोट तहसील के भंसाड़ी निवासी पंकज राणा। जीवन की तमाम बाधाओं को पार करते हुए दोनों आंखों से दिव्यांग पंकज आज न केवल इंडियन ब्लाइंड फुटबाल टीम के कप्तान है, बल्कि चार बार अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैच भी खेल चुके हैं।

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जिला मुख्यालय से सौ किमी की दूरी पर स्थित भंसाड़ी पहुंचने के लिए तीन किमी की खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती है। इसी गांव में करम सिंह राणा के घर वर्ष 1997 में पंकज का जन्म हुआ। पंकज बचपन से ही दोनों आंखों से दिव्यांग थे। इसलिए वे बचपन में विद्यालय का मुंह भी नहीं देख पाए। बाद में दृष्टिबाधितार्थ आवासीय विद्यालय तुनाल्का की संचालक विजय जोशी ने भंसाड़ी पहुंचकर पंकज का अपने विद्यालय में दाखिला कराया। पंकज को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था, जिसे पूरा करने का मौका उन्हें इसी विद्यालय में मिला।

आठवीं के बाद पंकज ने देहरादून स्थित एनआइवीएच (राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ संस्थान) में दाखिला लिया। यहां पंकज ने पढ़ाई के साथ फुटबॉल खेलना शुरू किया। इंडियन ब्लाइंड फुटबाल टीम के कोच नरेश नयाल ने पंकज को फुटबॉल की बारीकियां समझाई। इसका नतीजा यह रहा कि पंकज को राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने वाली एनआइवीएच देहरादून की टीम की कप्तानी सौंप दी गई।

वर्ष 2015 में ब्लाइंड फुटबॉल एशियन कप के लिए राष्ट्रीय टीम में पंकज का चयन हुआ। एशियन कप का आयोजन टोकियो (जापान) में हुआ। वर्ष 2016 में पंकज को इंडियन ब्लाइंड फुटबाल टीम का कप्तान चुना गया। इसी वर्ष पंकज के नेतृत्व में भारतीय टीम मलेशिया गई और वहां पंकज ने शानदार फील्ड गोल किया। 2018 में पंकज के नेतृत्व में इंडियन ब्लाइंड फुटबॉल टीम दोबारा जापान गई। जहां बेल्जियम की टीम के खिलाफ पंकज ने फील्ड गोल दागा। 

किसी यूरोपियन देश के खिलाफ फील्ड गोल करने वाले पंकज पहले भारतीय दिव्यांग फुटबॉलर बने। सितंबर 2018 में कोच्चि में आस्ट्रेलिया के साथ हुए मुकाबले में भी पंकज ने न सिर्फ फील्ड गोल किया, बल्कि टीम मैच जीतने में भी सफल रही।

पढ़ाई में भी अव्वल हैं पंकज 

पंकज राणा ने वर्ष 2016 में इंटरमीडिएट की परीक्षा 77 फीसद अंकों के साथ उत्तीर्ण की। वर्तमान में वह गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर से इतिहास, राजनीतिक शास्त्र और समाज शास्त्र विषय में बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं।

सिर्फ तमगा बदला, हालात नहीं 

पंकज की तीन छोटी बहनें भी हैं। उनके पिता करम सिंह राणा कृषक और मां गृहिणी हैं। पिता करम सिंह राणा कहते हैं कि विकलांगों को अब भले ही 'दिव्यांग' कहा जाने लगा हो, लेकिन हालात में कोई बदलाव नहीं आया। आज भी प्रतिभावान दिव्यांग सिस्टम की उपेक्षा झेल रहे हैं। कहते हैं, उनका पुत्र राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभा दिखा चुका है, फिर भी तंत्र की उपेक्षा हैरान करने वाली है।

सम्मान के लिए प्रतिभागी स्वयं करते हैं आवेदन 

उत्तरकाशी की जिला समाज कल्याण अधिकारी हेमलता पांडे कहती हैं कि सम्मान के लिए प्रतिभागियों को स्वयं आवेदन करना होता है। दिव्यांग पंकज की ओर से इस तरह का कोई आवेदन नहीं आया है। आवेदन आएगा तो उसे प्राथमिकता के आधार पर लिया जाएगा।

फील्ड गोल दागने वाले देश के एकमात्र दिव्यांग 

फुटबॉलर कोच नरेश नयाल ने बताया कि पंकज भारत का एकमात्र ऐसा दिव्यांग फुटबॉलर है, जो फील्ड गोल मारने वाला है। आज तक यह उपलब्धि कोई दूसरा खिलाड़ी अर्जित नहीं कर पाया है। यही नहीं, पंकज ने देहरादून में आयोजित 21 किमी दौड़ भी एक घंटा 45 मिनट में पूरी की। अब पंकज के नेतृत्व में भारतीय टीम पैरा ओलंपिक व व‌र्ल्ड चैंपियनशिप के लिए तैयार है।

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