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रिवर्स पलायन से पहाड़ के वीरान पड़े घर हुए आबाद, अब स्वरोजगार को कवायद

रिवर्स पलायन से पहाड़ के वीरान गांव गुलजार होने लगे हैं। जिन घरों में वर्षों से ताले लटके हुए थे उनके किवाड़ खुल चुके हैं और वापस लौटे प्रवासी उन्हें सजाने-संवारने में जुटे हैं।

By Edited By: Published: Wed, 10 Jun 2020 03:00 AM (IST)Updated: Wed, 10 Jun 2020 06:54 PM (IST)
रिवर्स पलायन से पहाड़ के वीरान पड़े घर हुए आबाद, अब स्वरोजगार को कवायद
रिवर्स पलायन से पहाड़ के वीरान पड़े घर हुए आबाद, अब स्वरोजगार को कवायद

उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। कोरोना महामारी के चलते प्रवासियों के रिवर्स पलायन से पहाड़ के वीरान गांव गुलजार होने लगे हैं। जिन घरों में वर्षों से ताले लटके हुए थे, उनके किवाड़ खुल चुके हैं और वापस लौटे प्रवासी उन्हें सजाने-संवारने में जुटे हैं। कुछेक अपवाद छोड़ दें तो पहाड़ में रह रहे लोग भी प्रवासियों की भरपूर मदद कर रहे हैं। इसकी झलक उत्तरकाशी जिले के सुदूरवर्ती गांवों में देखी जा सकती है। यहां वीरान घरों के गुलजार होने से सबसे ज्यादा खुश वो ग्रामीण हैं, जो पहाड़ की विकटता में जीवन यापन करते आ रहे हैं। अब वो मिलजुलकर गांवों को संवारने का सपना संजो रहे हैं। पहले बात करते हैं चिन्यालीसौड़ ब्लॉक के सुदूरवर्ती गांव गढ़वालगाड की। यहां ग्रामीणों और प्रवासियों के बीच सामूहिकता का भाव देखते ही बनता है। एक ओर गांव लौटे प्रवासी अपने खंडहर घरों को संवारने के साथ बंजर खेतों को आबाद करने में जुटे हैं, तो वहीं ग्राम प्रधान विशन सिंह कोटवाल समेत अन्य ग्रामीण उनकी मदद कर रहे हैं।

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प्रधान कोटवाल कहते हैं कि प्रवासियों को संबल देना हम सबकी जिम्मेदारी और भविष्य की जरूरत भी है। ऐसे संकट के दौर में परदेस गए लोग अपने घरों को नहीं लौटेंगे तो और कहां जाएंगे। इसी ब्लॉक के ग्राम खालसी निवासी धन सिंह कंडियाल की भी यही राय है। भटवाड़ी ब्लॉक के ग्राम अगोड़ा में जो प्रवासी शहरों से लौटे हैं, उनके परिवार गांव में ही हैं। ग्रामीण संजय पंवार कहते हैं कि अगोड़ा के युवाओं ने रोजगार के लिए पलायन किया है। हमें समझना होगा कि पहाड़ से पलायन तभी रुक सकता है, जब यहां रोजगार के संसाधन विकसित हों। ब्लॉक की ग्रामसभा खालसी की प्रधान आरती कंडियाल कहती हैं कि शहरों से लौटे प्रवासियों को रोजगार देना सबसे बड़ी चुनौती है। 
अभी तक जो प्रवासी लौटे हैं, उनके बैंक खाते शहरों में होने के कारण मनरेगा जॉब कार्ड बनाने में मुश्किल पेश आ रही है। बावजूद इसके उन्होंने कुछ प्रवासियों के जॉब कार्ड बना दिए हैं, ताकि उन्हें मनरेगा में थोड़ा-बहुत रोजगार दिया जा सके। दिखोली गांव के नरेश बिजल्वाण कहते हैं कि पहले-पहल लोगों में कोरोना को लेकर इस कदर भय था कि वो प्रवासियों के विरुद्ध तरह-तरह की टिप्पणी कर रहे थे। लेकिन, अब उन्हें अच्छी तरह समझ आ गया है कि कोरोना से बचने के लिए शारीरिक दूरी जरूरी है, न कि सामाजिक दूरी। इसी की परिणति है कि दिखोली में करीब 20 प्रवासियों को गांव वालों ने अपने जॉब कार्ड पर मनरेगा में रोजगार दिलाया, जिससे उनकी आर्थिकी भी चल सके। 
इन गांवों में भी लौटे हैं प्रवासी 
चिन्यालीसौड़ ब्लॉक के बगोड़ी, बल्डोगी, कुमराड़ा, बधाण गांव, भडकोट, अनोल, बादसी, खांड, पुजारगांव, रौंतल, चमियारी, पीपलखंडा, सुनारगांव, नेरी, अदनी और जसपुरी। 
गांवों में हुई प्रवासियों की आमद 
गांव, लौटे प्रवासी 
खालसी, 147 
जगड़गांव, 67 
बनकोट, 45 
जोगथ मल्ला, 110 
जोगथ बिचला, 40 
जोगथ तल्ला, 150 
गढ़वालगाड, 165 
बड़ी मणि, 35 
छोटी मणि, 53 
न्यू खालसी, 150 

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