सीमांत क्षेत्र के सजग प्रहरियों को मिला इनर लाइन परमिट
भारत-चीन सीमा पर अलर्ट के बीच उत्तरकाशी और चमोली में भेड़ पालक परिवारों को इनर लाइन (आंतरिक सुरक्षा रेखा) परमिट दिया गया है।
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : भारत-चीन सीमा पर अलर्ट के बीच उत्तरकाशी और चमोली में भेड़ पालक परिवारों को इनर लाइन (आंतरिक सुरक्षा रेखा) परमिट दिया गया है। हर वर्ष परमिट लेकर ये भेड़पालक परिवार मवेशियों को लेकर बॉर्डर क्षेत्र में विचरण कर सजग प्रहरी की भूमिका निभाते हैं। जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने बताया कि भेड़पालकों को एसडीएम स्तर से इनर लाइन की अनुमति दी गई है। 7 जून से लेकर अभी तक 16 भेड़ पालक परिवारों को अनुमति दी गई हैं। ये सभी भेड़पालक बगोरी गांव के निवासी है।
भारत-चीन सीमा पर भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) के हिमवीर और सेना की निगाहें चौकन्नी हैं। खासकर पूर्वी लद्दाख में बढ़े गतिरोध के बाद उत्तरकाशी जनपद में पड़ने वाली 122 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा पर सेना अलर्ट मोड में हैं। नेलांग इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों और स्थानीय ग्रामीणों की आवाजाही बंद हैं। इसी गतिरोध और कोविड-19 के कारण 2 जून को नेलांग और जादूंग में होने वाली लाल देवता और रिगली देवी की पूजा के लिए भी ग्रामीणों को अनुमति नहीं मिल सकी। लेकिन, भेड़ पालकों को इनर लाइन पास जारी किए गए। जिसके बाद ये भेड़ पालक भैरव घाटी से नेलांग बॉर्डर की ओर बढ़ गए हैं। ये भेड़पालक मूल रूप से नेलांग और जादूंग गांव के निवासी हैं। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद उत्तरकाशी की नेलांग घाटी में बसे दो गांव नेलांग और जादुंग को सुरक्षा की दृष्टि से सेना ने खाली कराया गया था। तब ये हर्षिल के निकट बगोरी गांव में बस गए। इन परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन पशुपालन है। बगोरी के पूर्व प्रधान भवान सिंह राणा बताते हैं कि जब उनके परिवार नेलांग और जादुंग में रहते थे तब वे मवेशियों को लेकर जून से सितंबर तक घाटी के दूरदराज के इलाकों में चले जाते थे, ये परंपरा आज भी बरकरार है। इसके लिए इनर लाइन पास की अनुमति एसडीएम देता है और गंगोत्री नेशनल पार्क से परमिट जारी किए जाते हैं। ऐसे में ग्रामीण पांच माह नेलांग के विभिन्न इलाकों में भ्रमण करते हैं। राणा बताते हैं कि इस दौरान ग्रामीण सीमा के आसपास होने वाली गतिविधियों पर भी निगाह बनाए रखते हैं और यदि कुछ असामान्य हो तो सेना और आइटीबीपी को सूचना देते हैं।
उधर चमोली में 100 से अधिक भेड़पालक नीती व मलारी घाटी में कूच कर गए हैं। ये भेड़पालक बाडाहोती समेत अन्य बुग्यालों में चार माह तक डेरा डालते हैं। खास बात यह है कि भेडों में ये चार माह का राशन व बकरियों के लिए नमक भी ले जाते हैं। बुग्यालों में बकरियों के साथ गुफाओं या फिर पत्थरों की ओट में तिरपाल लगाकर अस्थाई डेरे डालते हैं। एसडीएम जोशीमठ अनिल चन्याल ने कहा कि अब तक 100 से अधिक भेड पालकों को सीमा पर जाने की अनुमति दी जा चुकी है। अन्य आवेदनों पर भी अनुमति की प्रक्रिया जारी है। गांवों में जाने के लिए अनुमति की जरूरत नहीं है।