गंगोत्री धाम में हिमालय की दुर्लभ तस्वीरों की आर्ट गैलरी तैयार, पीएम कर सकते हैं उद्घाटन
गंगोत्री धाम में बीते एक दशक से बन रही तपोवनम् हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी तैयार हो चुकी है। उम्मीद है कि उद्घाटन के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गंगोत्री पहुंचेंगे।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। गंगोत्री धाम में बीते एक दशक से बन रही तपोवनम् हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी (हिमालय तीर्थ) तैयार हो चुकी है। अब सिर्फ ध्यान टावर का निर्माण होना बाकी है, जो अगस्त से पहले पूरा हो जाएगा। करीब ढाई करोड़ की लागत से तैयार इस आर्ट गैलरी को स्वामी सुंदरानंद ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सुपुर्द कर दिया है। इसकी पुष्टि उन्होंने गंगोत्री में 'दैनिक जागरण' से बातचीत में की। बताया कि आर्ट गैलरी के संचालन के लिए उन्हें कोई योग शिष्य नहीं मिल पाया। इसी कारण उन्होंने कोई शिष्य भी नहीं बनाया और आर्ट गैलरी आरएसएस को सौंप दी। इसी वर्ष 14 सितंबर को इसके उद्घाटन की तिथि भी तय कर दी गई है। उम्मीद है कि उद्घाटन के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गंगोत्री पहुंचेंगे।
गंगोत्री में तैयार हो चुकी पांच मंजिला आर्ट गैलरी में तीन मंजिल ऐसी हैं, जिनमें मुख्य द्वार से लेकर सीढ़ियों व दीवारों पर हर जगह हिमालय की कंदराएं, चोटियां, घाटियां, लोक संस्कृति व पौराणिक लोक जीवन को जीवंत करती हजारों तस्वीरें लगी हैं, जबकि एक मंजिल पर योग हॉल है और एक मंजिल पर अलग-अलग ध्यान केंद्र बनाए गए हैं।
भारतीय संसद से लेकर यूरोप व अमेरिका में हिमालय की तस्वीरों का स्लाइड शो दिखा चुके स्वामी सुंदरानंद बताते हैं कि उन्होंने जीवनभर विकटता में हिमालय की जो तस्वीरें उतारी, उनका जीवंत स्मारक तैयार हो चुका है। इसका नाम उन्होंने 'तपोवनम् हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी' रखा है। बताया कि गैलरी में हिमालय की एक हजार दुर्लभ तस्वीरों के अलावा करीब एक लाख फोटो डिजिटल फॉर्मेट में हैं। ट्रैकिंग और पर्वतारोहण के शौकीन बाबा ने सिर्फ गंगोत्री और गोमुख ग्लेशियर की ही 50 हजार से ज्यादा तस्वीरें और ओम पर्वत समेत एक दर्जन से अधिक चोटियों, ट्रैक रूट, ताल, बुग्याल, वन्य जीव, वनस्पति व पहाड़ की संस्कृति को दर्शाती तस्वीरें कैमरे में कैद की हैं।
स्वामी सुंदरानंद : एक परिचय
अविभाजित आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में स्थित अनंतपुरम गांव में वर्ष 1926 में जन्मे स्वामी सुंदरानंद को बचपन से ही पहाड़ लुभाते थे। पांच बहनों के अकेले भाई सुंदरानंद पढ़ाई के लिए अनंतपुरम, नेल्लोर व चेन्नई जाने के बाद भी सिर्फ चौथी कक्षा तक ही पढ़ पाए। वर्ष 1947 में उन्होंने घर छोड़ दिया और भुवनेश्वर, पुरी, वाराणसी व हरिद्वार होते हुए वर्ष 1948 में गंगोत्री पहुंचे। यहां तपोवन बाबा के सानिध्य में रहने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया। इसका उल्लेख स्वामी सुंदरानंद ने अपनी आत्मकथा में भी किया है।
62 साल से कर रहे हिमालय को कैमरे में कैद
स्वामी सुंदरानंद बताते हैं कि वर्ष 1955 में वह समुद्रतल से 19510 फीट की ऊंचाई पर कालिंदीखाल ट्रैक से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से अपने सात साथियों के साथ बदरीनाथ धाम की यात्रा पर जा रहे थे। इसी बीच अचानक बर्फीला तूफान आ गया, लेकिन वह साथियों समेत किसी तरह बच गए। इस घटना के बाद उन्होंने हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में कैद करने की ठान ली। उन्होंने 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और शुरू हुआ फोटोग्राफी का सफर। बताते हैं, हिमालय में छह दशक के सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है। वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को पुस्तक 'हिमालया : थ्रू द लैंस ऑफ ए साधु' (एक साधु के लैंस से हिमालय दर्शन) में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था।
1962 में रहे सेना के गाइड
गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के दौरान भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ-प्रदर्शक रह चुके हैं। सुंदरानंद बताते हैं कि भारत-चीन युद्ध के दौरान उन्होंने एक माह तक कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बॉर्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया।
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