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बाढ़ प्रभावित आराकोट में 26 दिन बाद भी पटरी पर नहीं लौटी जिंदगी

उत्तरकाशी जिले के आराकोट क्षेत्र में अब भी सुदूरवर्ती गांवों में जिंदगी हिचकोले खा रही है। यहां 11 गांवों में यातायात सुचारु नहीं हो पाया है।

By Edited By: Published: Wed, 11 Sep 2019 03:00 AM (IST)Updated: Wed, 11 Sep 2019 02:28 PM (IST)
बाढ़ प्रभावित आराकोट में 26 दिन बाद भी पटरी पर नहीं लौटी जिंदगी
बाढ़ प्रभावित आराकोट में 26 दिन बाद भी पटरी पर नहीं लौटी जिंदगी
उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। उत्तरकाशी जिले के आराकोट क्षेत्र में आपदा को आए 26 दिन बीत चुके हैं, पर अब भी सुदूरवर्ती गांवों में जिंदगी हिचकोले खा रही है। यहां 11 गांवों में यातायात सुचारु नहीं हो पाया है, जबकि दस गांवों में लोग बिजली का इंतजार कर रहे हैं। स्थिति यह है कि ग्रामीण जरूरी सामान के लिए जान जोखिम में डाल मीलों पैदल चलकर टिकोची पहुंच रहे हैं। हालांकि, टिकोची तक सड़क मार्ग सुचारु हो चुका है। 
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 220 किमी दूर आराकोट क्षेत्र में 18 अगस्त की सुबह कुदरत का कहर काल बनकर टूटा था। इस तबाही में जनहानि और पशु हानि के साथ सड़क, पेयजल, विद्युत व संचार व्यवस्था को भी भारी नुकसान पहुंचा, जिससे ग्रामीण गांवों में ही कैद होकर रह गए। प्रशासन ने युद्ध स्तर पर रेस्क्यू और राहत अभियान भी चलाया, लेकिन फिर भी सड़क, संचार और बिजली की व्यवस्था अभी तक सुचारु नहीं हो पाई है। इसका सीधा-सीधा असर ग्रामीणों की आर्थिकी पर पड़ रहा है। स्थिति यह है कि अभी तक सड़क टिकोची तक ही पहुंच सकी है। 
टिकोची के पास दुचाणू, किराणू और सिरतोली को जोड़ने वाले पुल के पुनर्निर्माण की भी तैयारी नहीं हुई है। इस स्थान पर वैली ब्रिज बनाने का प्रस्ताव है, लेकिन इसमें समय लगना तय है। इसलिए कोटीगाड में ह्यूम पाइप डालकर सड़क खोलने में लोनिवि पुरोला की टीम जुटी है। इसके अलावा अभी तक चिवां, खकवाड़ी, मोंडा, बलावट, गमरी, मैंजाणी, माकुड़ी और डंगोली गांव को जोड़ने वाले सड़क मार्ग भी सुचारु नहीं हो पाए हैं। इसमें अभी भी कम से कम दस दिन और लगेंगे। यही वजह है कि ग्रामीणों को जरूरी कार्यों के लिए दस से 15 किमी की दूरी पैदल नापकर टिकोची पहुंचना पड़ रहा हैं। 
इसके अलावा डगोली, बरनाली, माकुड़ी, गोकुल, झोटाड़ी, जागटा, चिंवा, बलावट, मोंडा और खकवाड़ी गांव में अब भी विद्युत आपूर्ति ठप है। जिससे ग्रामीणों को खासी दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं। मोंडा गांव निवासी अब्बल सिंह चौहान कहते हैं कि चिवां-मोंडा-बलावट-खकवाड़ी मार्ग जगह-जगह टूटा पड़ा है। जिससे ग्रामीण गांव से बाजार तक भी नहीं जा पा रहे। इसका सबसे बुरा असर सेब की फसल पर पड़ रहा है। बताया कि कि डगोली, बरनाली, माकुड़ी, गोकुल, झोटाड़ी, जागटा, चिंवा, बलावट, मोंडा, खकवाड़ी आदि गांवों में सेब की फसल बर्बाद हो चुकी है। यहां अगस्त में सेब तैयार हो चुका था, लेकिन उसे अभी तक बाजार नहीं पहुंचाया जा सका। सेब की तैयार फसल को बाजार तक पहुंचाने के लिए सड़क मार्गों का खुलना नितांत जरूरी है। अन्यथा सारा सेब रखे-रखे ही खराब हो जाएगा।
जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल ने बताया कि आपदा प्रभावित क्षेत्र में सड़क निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है। हर दिन कार्य की रिपोर्ट ली जा रही है। उम्मीद है कि इस सप्ताह सभी गांव सड़क से जुड़ जाएंगे और बिजली की आपूर्ति भी सुचारु हो जाएगी। फिलहाल सेब ढुलान के लिए बलावट से ट्रॉली लगाई गई है।

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