कानूनी लड़ाई की दुविधा में फंसे हजारों परिवार
कलेक्ट्रेट न्यायालय द्वारा बाजपुर तहसील क्षेत्र के 12 ग्रामों व शहरी क्षेत्रों पर जमीन की खरीद पर हस्तांतरण पर रोक लगाई गई है।
जीवन सिंह सैनी, बाजपुर: कलेक्ट्रेट न्यायालय द्वारा बाजपुर तहसील क्षेत्र के 12 ग्रामों व शहरी क्षेत्र में सूद परिवार की लीज की भूमि को लेकर दिए गए आदेशों से लोगों की सांसें थमने लगी हैं। जो निर्माण कार्य चल रहे थे वह रुकने शुरू हो गए हैं। वहीं भारतीय किसान यूनियन द्वारा 17 फरवरी को कृषि उत्पादन मंडी समिति परिसर में उपरोक्त मामले को लेकर किसानों की पंचायत बुलाई है। इधर, सूद परिवार द्वारा इस आदेश के विरोध में उच्च न्यायालय व आदेश में 1966 के फैसले के आधार को लेकर उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करने की बात कही गई है।
राज्य सरकार बनाम लाल खुशीराम वारीसान विविध वाद संख्या 51/14 का प्रभावित लोगों द्वारा अध्ययन किया गया और इसके कानूनी पहलुओं को समझा गया। इसमें सुरेंद्र सूद व उनके पुत्र सुशांत सूद आदि ने बताया कि 1895 में प्रिस ऑफ वैल्स के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया ने काउंसलर के जरिए तराई भाबर की वन क्षेत्र की भूमि को कृषि उपयोग हेतु लीज पर दिए जाने का सुझाव दिया, जोकि ब्रिटिश हुकूमत द्वारा स्वीकार किया गया और 1905 में विभिन्न समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित कराकर भूमि लीज पर दिए जाने की बात कही गई, जिसमें उनके परदादा खुशीराम द्वारा इस्तहार के माध्यम से उपरोक्त क्षेत्र की 4805 एकड़ भूमि लीज पर ली गई। जिसमें अन्य लीज होल्डरों से अतरिक्त एक विशेष शर्त यह जोड़ी गई कि संबंधित लीज होल्डर लाला खुशीराम को अगली पंक्ति के किसानों को सब लीज देने का अधिकार होगा, जबकि अन्य लीज होल्डरों के पास यह पावर नहीं थी। जिसके चलते 95 प्रतिशत से भी अधिक भूमि उनके वारीसान द्वारा सब लीज पर किसानों को दे दी गई व शहरी क्षेत्र में इस पर हजारों की संख्या में भवन भी बन चुके हैं। शुक्रवार को उपरोक्त भूमियों से संबंधित आदेश प्राप्त होने के उपरांत 12 गांवों के किसानों में हड़कंप मच गया है और उनके जेहन में एक बार फिर एस्कोर्ट फार्म की तस्वीर उभरने लगी है। प्रभावित परिवारों द्वारा बचाव के लिए राजनीतिक तथा कानूनी दांव-पेच शुरू कर दिए गए हैं।
इंसैट::
कौन है सही?
बाजपुर : जिला कलेक्ट्रेट द्वारा सुप्रीम कोर्ट के 1966 के फैसले को आधार बनाते हुए उपरोक्त भूमि को खुर्द-बुर्द करने से रोकने के लिए यथास्थिति के आदेश कर दिए हैं जिसके चलते सूद परिवार की ओर से विक्रय की गई भूमि का अब अग्रिम आदेशों तक बैनामा नहीं हो सकेगा और जो पूर्व में उनके द्वारा भूमि को सब लीज किया गया है उपरोक्त भूमियों का भी हस्तांतरण नहीं हो पाएगा। इस संबंध में सूद परिवार का कहना है कि जिला कलेक्ट्रेट द्वारा जिस 1966 के फैसले को आधार बनाया गया है उपरोक्त बात स्वयं उनके द्वारा मुआवजे के लिए दायर किया गया था जिसमें उन्हें भूमिधरी अधिकार मिल जाने के चलते न्यायालय ने मुआवजे की अपील खारिज की थी। इसके उपरांत उन्हें जेड-ए लागू होने के चलते 35 ठेकेदारी प्रथा के ग्रामों को भूमिधरी अधिकार प्राप्त हो गए थे और वर्तमान में भी उनके द्वारा जिन लोगों को सब लीज किया गया था उनके पास ही भूमिधरी के अधिकार हैं।
क्या अन्य 23 गांवों पर भी होगी कार्रवाई?
बाजपुर : ब्रिटिश हुकूमत द्वारा गवर्नमेंट क्राउन ग्रांट एक्ट के तहत जमीनें लीज पर दी गई थी। देश की आजादी के बाद उपरोक्त एक्ट को यथावत रखते हुए 1950 में क्राउन शब्द को हटा दिया गया था तथा शेष शर्तों को विधिवत रखते हुए लीज जारी रखी गई थी। तराई भाबर में ठेकेदारी प्रभा के ऐसे कृषि योग्य 35 ग्रामों को मान्यता दी गई थी जिसमें 20 गांव बाजपुर में व 15 गांव खटीमा, किच्छा आदि में बताए गए हैं। इस आदेश के बाद अन्य लीज होल्डर परिवारों में भी हड़कंप मच गया है। चर्चा है कि शेष बचे ग्रामों के खिलाफ भी जल्द कलेट्रेट का आदेश आ सकता है।
दैनिक जागरण की खबर बनी चर्चा का विषय
बाजपुर : दैनिक जागरण द्वारा कलेक्ट्रेट न्यायालय की ओर से जारी आदेश से संबंधित खबर को पेज नंबर-तीन पर प्रमुखता से प्रकाशित किए जाने से पूरे दिन हड़कंप मचा रहा और खबर की यह कटिंग सोशल मीडिया के माध्यम से हजारों परिवारों के बीच आती-जाती देखी गई। वहीं इस खबर की चर्चा चौराहों, गलियों व आम सार्वजनिक स्थानों पर भी हुई व अधिक जानकारी के लिए कुछ लोग प्रशासनिक अधिकारियों को फोन करते हुए भी देखे गए।
तो क्या उजड़ जाएगा बाजपुर शहर?
बाजपुर : सूद परिवार द्वारा तकरीबन 200 से अधिक एकड़ में आवासीय भू-खंड सब लीज, बैनामे आदि पर दिए गए हैं जिसमें अलीशान बंगले व लोगों के रैन बसेरा बने हुए हैं, लेकिन यही घर अब लोगों की परेशानी का सबब बनते नजर आ रहे हैं तथा उनके माथे पर अपनी मेहनत की इस कमाई को लेकर चिता की लकीरें हैं। वर्तमान समय में सूद कॉलोनी, सुंदर नगर सहित ऐसी अनेक बस्तियां, जोकि सूद परिवार द्वारा भूमि देकर बसाई गई हैं। इसके अतिरिक्त अनेक उद्योग भी इनकी भूमियों पर स्थापित हैं, ऐसे में आवासीय भवनों व उद्योग भी आदेश से प्रभावित हो सकते हैं, यदि आदेश को इसी रूप में लागू किया जाता है और संपत्ति को राज्य सरकार के निहित माल कागजात में दर्ज किया जाता है तो बाजपुर से उजड़ने से कोई बचा नहीं सकता, यह बात अधिकांश लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।