Move to Jagran APP

खतरनाक साबित हो रही ग्रीष्मकालीन धान की खेती

रुद्रपुर में तराई में ग्रीष्मकालीन खेती भूगर्भ जलस्तर को लगातार कम कर रही है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 05 Apr 2021 09:26 AM (IST)Updated: Mon, 05 Apr 2021 09:26 AM (IST)
खतरनाक साबित हो रही ग्रीष्मकालीन धान की खेती
खतरनाक साबित हो रही ग्रीष्मकालीन धान की खेती

जागरण संवाददाता, रुद्रपुर : तराई में ग्रीष्मकालीन खेती भूगर्भ जलस्तर को लगातार कम कर रही है। इससे सभी वाकिफ हैं। इसके बाद भी किसान धान की बुआई कर रहे हैं। फरवरी के अंतिम व मार्च के प्रथम सप्ताह में ग्रीष्मकालीन धान की बुआई की जा चुकी है। इसमें बड़ी मात्रा में पानी का दोहन किया जा रहा है। किसानों का कहना है कि फसलों की लागत लगातार बढ़ रही है। इसको कम करने के लिए ही ग्रीष्मकालीन धान लगा रहे हैं। किसानों ने कहा कि सरकार सिडकुल की बड़ी इंडस्ट्रीज पर कार्रवाई न कर किसानों पर दवाब डाल रही है। पर्यावरण विज्ञानी का मानना है कि जलस्तर सबसे अधिक ग्रीष्मकालीन धान की खेती से प्रभावित हो रहा है।

loksabha election banner

तराई में लगभग 15 हजार हेक्टेअर में ग्रीष्मकालीन धान की खेती की जाती है। फरवरी के अंतिम व मार्च के प्रथम सप्ताह में इसकी बुआई जिले में बड़ी संख्या में किसान करते चले आ रहे हैं। जबकि सरकार की तरफ से इसकी बुआई को लेकर हर साल जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। सरकार एक तरफ किसानों से जलस्तर को लेकर ग्रीष्मकालीन धान न लगाने की अपील की करती है। दूसरी तरफ सिडकुल में बड़ी से लेकर छोटी इंडस्ट्रीज लगातार भूगर्भ जल का दोहन अंधाधुंध तरीके से कर रही हैं।

..........

किसान बोले-बड़ी इंडस्ट्रीज जलस्तर कम करने के दोषी

इस बार करीब 12 एकड़ में ग्रीष्मकालीन धान की बुआई की है। भूगर्भ जलस्तर का इससे नुकसान होता है। खेती में लागत इतनी है कि दूसरी फसलों की अपेक्षा इस फसल से लागत बढि़या निकलती है। वहीं इस समय धान की फसल में कीड़ों से नुकसान कम होता है। बारिश की फसल में काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

-अरविद मौर्य, गांव छतरपुर, रुद्रपुर

..........

ग्रीष्मकालीन धान की बुआई इस बार भी की है। इससे लागत कम आती है वहीं प्रति एकड़ कम से कम 33 क्विटल तक धान मिल जाता है। जबकि बारिश की फसल में इतनी फसल नहीं मिल पाती। दूसरी ओर किसानों पर ही सरकार दवाब डाल रही है जबकि जलस्तर सबसे अधिक बड़ी इंडस्ट्रीज की वजह से कम होता जा रहा है। सरकार को चाहिए कि वह इंडस्ट्रीज के मालिकान पर कार्रवाई करे।

-जसवीर सिंह, गांव मलसी, रुद्रपुर

.........

कुल पानी का 60 फीसद हिस्सा खेती पर होता है खर्च

हमारी पृथ्वी पर एक अरब 40 घन किलो लीटर पानी है। इसमें से 97.5 प्रतिशत पानी समुद्र में है जो खारा है, शेष 1.5 प्रतिशत पानी बर्फ के रूप में घ्रुव प्रदेशों में है। इसमें से बचा एक प्रतिशत पानी का 60वां हिस्सा खेती और कारखानो में खपत होता है। बाकी का 40वां हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं साफ-सफाई में खर्च करते है। पंतनगर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष व पर्यावरणविद आरके श्रीवास्तव की मानें तो जिले में पिछले 50-60 वर्षो से रह रहे लोगों को यह अच्छी तरह पता है कि तराई में कालोनाइजेशन स्कीम के तहत बसाए जाने की प्रक्रिया के दौरान कई स्थानों पर 'आर्टीजन बेल' लगाये गये थे। आज वे कहां हैं और क्यों सूख गए इस बात पर चर्चा और अध्ययन किये बगैर ही 'डीप ड्रिलिग' कर धड़ाधड ट्यूबवेल लगाए जा रहे हैं। आजादी के बाद हुए बंटवारे से पीड़ित हजारों परिवारों को यहां बसाया गया और हरित क्रांति का नया बिगुल गोविद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय के माध्यम से बजाया गया। यह जरूरी भी था और देश की कृषि व्यवस्था में एक क्रांतिकारी ओर महत्वपूर्ण परिवर्तन भी था। विभागाध्यक्ष का कहना था कि ग्रीष्मकालीन धान की खेती में बड़ी मात्रा में पानी का दोहन हो रहा है। एक आंकड़े के अनुसार करीब एक किलो धान की फसल प्राप्त करने के लिए करीब 2200 जल का दोहन किया जा रहा है जो कि एक बड़ी मात्रा है। इस पर प्रभावी रोक न लगाई गई तो भविष्य में पानी की एक-एक बूंद हमारे लिए महत्वपूर्ण होगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.