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गंगा लहरी के बिना अधूरी है मां गंगा की आराधना, जानिए इसके पीछे की मान्यता

मां गंगा की आराधना गंगा लहरी के बिना अधूरी है। क्योंकि गंगा लहरी ही मां गंगा का श्रेष्ठतम काव्य ग्रंथ है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Thu, 24 May 2018 06:21 PM (IST)Updated: Sat, 26 May 2018 05:43 PM (IST)
गंगा लहरी के बिना अधूरी है मां गंगा की आराधना, जानिए इसके पीछे की मान्यता
गंगा लहरी के बिना अधूरी है मां गंगा की आराधना, जानिए इसके पीछे की मान्यता

उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: गंगा धाम गंगोत्री में सुबह से लेकर शाम तक यात्रियों की चहल-पहल और गंगा के जयकारे भक्तों में जोश भर देते हैं। लेकिन, गंगा की असली आराधना तो शाम की आरती से शुरू होती है। भागीरथी (गंगा) से उठने वाली संगीत लहरियां जब गंगा लहरी के साथ मिलकर वातावरण में गूंजती हैं तो श्रद्धालु और तीर्थ पुरोहित भी उसी भाव में डूब जाते हैं, जिस भाव को लेकर पंडित जगन्नाथ मिश्र ने काशी में दश्वाश्वमेध घाट पर गंगा लहरी को रचा था। 

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गंगोत्री के रावल रवींद्र सेमवाल बताते हैं कि गंगा लहरी मां गंगा का श्रेष्ठतम काव्य ग्रंथ है। इसीलिए गंगोत्री में हर दिन सांध्यकालीन आरती के बाद गंगा लहरी का पाठ होता है। इस ग्रंथ में मां गंगा की महिमा और विविध गुणों का वर्णन किया गया है। पंडित जगन्नाथ मिश्र द्वारा संस्कृत में रचित गंगा लहरी में 52 श्लोक हैं। इसमें उन्होंने गंगा के विविध गुणों का वर्णन करते हुए उनसे अपने उद्धार के लिए अनुनय किया है। 

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार शाहजहां के शासनकाल में धार्मिक श्रेष्ठता को लेकर एक शास्त्रार्थ हुआ। यह शास्त्रार्थ कई दिनों तक चला, जिसमें काशी से महापंडित एवं महाज्ञानी पंडित जगन्नाथ मिश्र भी पहुंचे। पंडितजी की विद्वता से बादशाह काफी प्रसन्न हुए और बोले, 'आप जो चाहे मांग सकते हैं, वही आपका पुरस्कार होगा।' इस पर पंडितजी बोले, 'जितने भी पंडितों को आपके द्वारा बंदी बनाया गया है, उन्हें मुक्त कर दिया जाए।' बादशाह ने उन्हें अपने लिए भी कुछ मांगने को कहा, तो पंडितजी ने एक मुस्लिम कन्या लवंगी का हाथ मांग लिया और उसके साथ काशी आ गए। लेकिन, काशी में ब्राह्मण इस बात से बहुत कुपित हुए और उन्होंने पंडितजी का बहिष्कार कर दिया। 

इस अपमान से जगन्नाथ मिश्र बहुत दुखी हुए और इस दुख से छुटकारा पाने के लिए गंगा के श्रेष्ठतम काव्य गंगा लहरी की रचना की। बावजूद इसके अपने और लवंगी के अपमान को वे फिर भी भूल नहीं पाए और सपत्नीक काशी के दश्वाश्वमेध घाट पर गंगालहरी गाने लगे। रावल रवींद्र सेमवाल बताते हैं कि गंगाजी प्रसन्न होकर प्रत्येक श्लोक के पाठ के साथ एक-एक पग बढऩे लगीं और 52 श्लोक पढ़ते-पढ़ते वह 52 पग बढ़कर उनके निकट पहुंच गईं। यह नजारा वहां के सारे पंडितों ने देखा तो पंडितजी से क्षमा मांगने को विवश हो गए। 

इसीलिए मां गंगा के धाम गंगोत्री में हर दिन आरती के बाद गंगा लहरी का पाठ होता है। गंगा लहरी को पीयूष लहरी भी कहते हैं। इसे मां गंगा की श्रेष्ठतम स्तुति माना जाता है। गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश सेमवाल कहते हैं कि गंगा लहरी पाठ के दौरान उसके जो भाव हैं, भक्त भी उन्हीं में डूब जाते हैं। 

गर्भगृह से बाहर आएगी गंगा की डोली 

गंगा दशहरे पर मां गंगा की उत्सव डोली को गंगोत्री मंदिर के गर्भगृह से बाहर लाकर भागीरथी नदी में स्नान कराया गया। इसके बाद भगीरथ शिला पर तीर्थ पुरोहित ने गंगाजी व राजा भगीरथ के विग्रह का अभिषेक किया।

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