रुद्रपुर के 14,154 परिवारों का टूटा सपना, अटकीं सांसें
राहुल पांडेय, रुद्रपुर : हाई कोर्ट के फैसले से रुद्रपुर में नजूल भूमि पर बसे 14,154 परिव
राहुल पांडेय, रुद्रपुर :
हाई कोर्ट के फैसले से रुद्रपुर में नजूल भूमि पर बसे 14,154 परिवारों को जोर का झटका लगा है। शासन की हालिया नीति के बाद अपने कब्जे की भूमि पर मालिकाना हक का सपना देख रहे शहरवासी इस फैसले के बाद मालिक तो दूर कब्जेदार भी नहीं रह पाएंगे। कोर्ट के फैसले से शहर का आवास विकास क्षेत्र छोड़ शेष नजूल भूमि प्रशासन के कब्जे में चली जाएगी।
आजादी के बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू ने तराई को आबाद करने का निर्णय लिया था। इसी के तहत रुद्रपुर 1965 में नगर पंचायत के रूप में विकसित होना शुरू हुआ। तब सरकार ने क्षेत्र में 1989 एकड़ नजूल भूमि नगर पंचायत को देखरेख के लिए दी थी। लोग उसी भूमि पर बसते गए और शहर आबाद होता रहा। इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में यहां बसे लोगों को भूमि के पटटे भी आवंटित किए गए। वर्तमान में यह शहर एक औद्योगिक नगरी के रूप में विकसित हो चुका है। जिला मुख्यालय के साथ ही नजूल भूमि पर ही शहर नगर निगम का भी रूप ले चुका है। शहर की सबसे बड़ी समस्या यहां बसे लोगों के मालिकाना हक को लेकर है। बसासत में आज भी लगभग 80 प्रतिशत आबादी यानी लगभग 14,154 परिवार आज भी मालिकाना हक से वंचित हैं। मालिकाना हक न मिलने से वह अपने कारोबार समेत तमाम समस्याओं से जूझ रहे हैं। वर्तमान में शहर में आवास विकास व बाजार क्षेत्र को छोड़कर किसी भी क्षेत्र को मालिकाना हक नसीब नहीं है। शहर की आबादी को इस समस्या से दूर कराने के लिए हालांकि राजनीतिक दलों ने कई बार प्रयास किया पर कोई पहल सार्थक नहीं हो सकी। 2009 में प्रदेश सरकार की नजूल नीति लागू होने के बाद शहर वासियों को मालिकाना हक मिलने की उम्मीद जगी। शहर के तमाम लोगों ने इस नीति का फायदा उठाते हुए भारी शुल्क जमा कर अपनी भूमि को फ्रीहोल्ड करा मालिकाना हक भी पा लिया। 2011 में इसी नीति में आए संशोधन के बाद 25 प्रतिशत शुल्क जमा कर तमाम लोगों ने आवेदन भी किया। पर वर्ष 2015 में पूर्व पालिका सदस्य रामबाबू द्वारा हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की जिस पर हाई कोर्ट ने फ्री होल्ड पर रोक लगा दी। कांग्रेस सरकार ने जाते-जाते 30 सितंबर 2016 को शहर को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए शासनादेश भी जारी कर दिया पर यह अमल में नहीं आ सका। 14 फरवरी 2018 को भाजपा सरकार ने 2011 से काबिज लोगों को व्यावसायिक व आवासीय अलग-अलग दरों पर मालिकाना हक देने की घोषणा की, जिसमें 50 गज के आवासीय भूखंडों को निश्शुल्क फ्रीहोल्ड करने की बात कही गई, पर इस नीति का अभी तक शासनादेश जारी नहीं हो पाया है। मंगलवार को हाई कोर्ट ने नजूल नीति को लेकर पूर्व सभासद रामबाबू द्वारा नजूल नीति को दी गई चुनौती के फैसले के क्रम में नजूल नीति को निरस्त करते हुए राज्य सरकार पर पांच लाख का जुर्माना लगाया है। कोर्ट की खंडपीठ ने सरकार को यह भी आदेश दिया है कि वह नजूल भूमि को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराने के बाद अपने खातों में निहीत करे। कोर्ट के इस फैसले से राज्य के हजारों परिवारों पर जहां असर पड़ेगा। वहीं रुद्रपुर में बुरी तरह तबाही आएगी। बता दें कि रुद्रपुर में आवास विकास छोड़कर नगर निगम के पूर्व के 20 वार्डों मे 18 वार्ड नजूल भूमि पर बसे हैं, जिनमें 14,154 परिवारों ने अपना आशियाना व कारोबार स्थापित कर रखा है। ऐसे में यदि हाई कोर्ट का फैसला शहर में लागू हुआ तो शहरवासियों पर कहर बरपना तय है।
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लंबित हैं फ्री होल्ड की 12 सौ फाइलें
एडीएम नजूल कार्यालय में फ्री होल्ड की 12 सौ फाइलें पिछले तीन साल से अधिक समय से फ्री होल्ड के इंतजार में धूल फांक रही हैं। मालिकाना हक पाने की आस में लोगों ने 25 फीसद शुल्क भी जमा कर दिया है। ऐसे में इन लोगों को कोर्ट के फैसले से जोरदार झटका लगा है।
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हाई कोर्ट के निर्णय का सरकार व जनप्रतिनिधि सम्मान करते हैं। कोर्ट ने नजूल नीति को लेकर जो आपत्तियां की हैं। सरकार उन पर जल्द विचार करेगी तथा आपत्तियों को दूर कर ऐसा शासनादेश लाया जाएगा जिससे जनता को राहत मिल सके।
राजकुमार ठुकराल, विधायक, रुद्रपुर
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न्यायालय के निर्णय का हम सम्मान करते हैं, पर उसके द्वारा लिया गया निर्णय जनहित में नहीं है। याचिकाकर्ता द्वारा इस तरह की पीआइएल दाखिल करना गलत है। हम अपनी सरकार से मांग करेंगे कि वह जल्द ही कुछ इस तरह का अध्यादेश जारी करे, जिससे कोर्ट की आपत्तियों का भी निस्तारण हो और जनता को भी राहत मिल सके। सोनी कोली, निवर्तमान मेयर, रुद्रपुर
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कोर्ट में सरकार द्वारा पैरवी न करने के कारण आज उच्च न्यायालय ने नजूल नीति को खारिज करने का निर्णय लिया है। इस फैसले से शहर के लाखों लोग बेघर हो जाएंगे और उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।
तिलकराज बेहड़, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री
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प्रदेश सरकार द्वारा लागू की गई नजूल नीति में सौ से दो सौ गज के कब्जेदारों से सरकार फ्रीहोल्ड के नाम पर चार गुना शुल्क वसूल रही थी। वहीं भू-माफियाओं से सौ से डेढ़ सौ एकड़ भूमि को निश्शुल्क फ्री होल्ड कर रही थी, जो जनहित में नहीं था। मैंने सभी के लिए समान नीति लागू करने की मांग को लेकर ही हाई कोर्ट में नजूल नीति का विरोध किया था।
रामबाबू, याचिकाकर्ता