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82 हजार बच्चों को नहीं मिली किताबें

जागरण संवाददाता रुद्रपुर सरकारी स्कूलों में गुणवतापूर्ण शिक्षा देने की बात तो सरकार कर

By JagranEdited By: Published: Tue, 02 Jul 2019 12:17 AM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2019 06:37 AM (IST)
82 हजार बच्चों को नहीं मिली किताबें
82 हजार बच्चों को नहीं मिली किताबें

जागरण संवाददाता, रुद्रपुर : सरकारी स्कूलों में गुणवतापूर्ण शिक्षा देने की बात तो सरकार कर रही है। लेकिन जो सुविधाएं बच्चों को मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है। जहां एक ओर प्राइवेट स्कूल के बच्चों ने सत्र शुरू होने से पहले ही किताबें खरीद चुके हैं तो वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूल के बच्चों को सत्र शुरू होने के दो माह बाद भी ना ही किताबें मिली है और ना ही पुस्तक खरीदने के लिए राशि। इस स्थिति में सरकारी स्कूल के बच्चें कैसे पढ़ सकेंगे, यह आप अंदाजा लगा सकते हैं।

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जिले में 792 प्राइमरी व 297 मिडिल स्कूल हैं। इनमें लगभग सवा लाख से ज्यादा छात्र नामांकित हैं। शिक्षा विभाग ने इस बार समय से किताबें उपलब्ध कराने का दंभ भर रहा था। लेकिन सभी कोशिशें बेकार गई। विभाग की ओर से एससी, एसटी और के छात्र-छात्राओं के लिए पहले मुफ्त में किताबें उनलब्ध कराई जा रही थी, लेकिन अब किताब की राशि सीधे उनके खातों में भेजने की कवायद चल रही है। इसके तहत कक्षा एक से पांच तक के छात्रों के लिए 250 रुपये प्रति छात्र तथा छह से आठ के लिए चार सौ रुंपये के हिसाब से दिए जाते हैं। विभाग की ओर से इस बार इस कोटे के बच्चों के लिए 90 लाख रुपये का प्रस्ताव भेजा गया था। जिसमें 72 लाख रुपये स्वीकृत हुए। ऐसे में करीब ढाई हजार छात्रों को इसका लाभ नहीं मिल सका। वहीं बात करें सामान्य जाति के छात्रों की तो बता दें कि जिले में करीब 80 हजार छात्र-छात्राएं सामान्य वर्ग के हैं। जिन्हे सर्व शिक्षा अभियान के तहत किताब के लिए राशि उपलब्ध कराई जाती है, लेकिन अब तक एक रुपये भी इनको नहीं मिल सका है। विभाग अब एसएसए की आस में टकटकी लगाए बैठा है। इधर स्कूल खुल चुके हैं। अब अभिभावक खुद से किताब खरीदें या इंतजार करें। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई बाधित होगी।

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कई छात्रों का नहीं खुला खाता

रुद्रपुर : शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाये जाने की दिशा में जितना प्रयोग किया जा रहा है। वह फेल ही हो रहा है। जिम्मेदार अब तक छात्रों के खाते भी नहीं खोल सके हैं। स्थानीय स्तर के पदाधिकारी योजना को समझाने व समझाने में उलझे रहते हैं। ऐसी स्थिति में किताब खरीद की राशि कितने महीनों में छात्रों के बैंक खातों तक पहुंचेगी यह कहना मुश्किल है। अगर कार्य करने की यही रफ्तार रही तो लगभग तीन से चार माह तो बच्चों की सूची बनाने में ही बीत जाएगी।


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