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मो. नफीस की बेटी संस्कृत की पंडित

जागरण संवाददाता, काशीपुर : देववाणी संस्कृत को भले ही पंडित की भाषा की मान्यता मिली है, मगर मुस्लिम स

By Edited By: Published: Tue, 09 Aug 2016 05:17 PM (IST)Updated: Tue, 09 Aug 2016 05:17 PM (IST)
मो. नफीस की बेटी संस्कृत की पंडित

जागरण संवाददाता, काशीपुर : देववाणी संस्कृत को भले ही पंडित की भाषा की मान्यता मिली है, मगर मुस्लिम समाज की बेटियां भी इसके अध्ययन में पीछे नहीं हैं। महाकवि कालिदास की कालजयी रचना अभिज्ञान शाकुंतलम की प्रेम कहानी को जानने की उत्कंठा ने काशीपुर की बेटी सबिहा को संस्कृत का पंडित बना दिया। कुमाऊं विवि की एमए संस्कृत परीक्षा में तीसरा स्थान हासिल कर सबिहा ने परिवार के साथ ही शहर का नाम भी रोशन किया है। अच्छे अंक आने पर परिवार में खुशी का माहौल है।

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अल्ली खां निवासी सबिहा पुत्री मोहम्मद नफीस को बचपन से ही संस्कृत पढ़ने का शौक था। आर्य कन्या इंटर कालेज से 12वीं के बाद राधे हरि राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से बीए किया। वहां हिंदी के साथ संस्कृत विषय था। वह बताती हैं कि इंटर में संस्कृत काव्य नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम का एक अंक चलता है, जिसमें राजा दुष्यंत व शकुंतला की प्रेम कहानी है। सभी सात अंक पढ़ने की इच्छा शिक्षिका सरोज से जताई तो उन्होंने बताया कि यह बीए में मुमकिन होगा इसलिए स्नातक में यह विषय चुना। यहां एमए में संस्कृत विषय न होने से राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से हिंदी से एमए किया। बाद में इसी महाविद्यालय में संस्कृत पढ़ने के लिए एमए में प्रवेश लिया। इंटर में शिक्षिका सरोज व बीए में संस्कृत की कोचिंग कराने वाले मनोज उपाध्याय ने विषय के प्रति काफी प्रेरित किया। परिजनों ने भी उत्साह बढ़ाया। सबिहा की बड़ी बहन शाजिया, छोटी बहन नेहा, इरम, भाई जुबैर, सुबहान व माता इदरीसा परवीन ने मिठाई खिलाकर हर्ष मनाया। राजकीय प्राथमिक स्कूल गोशाला में शिक्षक सबिहा के मामा रियासत अली ने भी संस्कृत पढ़ने के लिए प्रेेरित किया।

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भेदभाव पैदा नहीं करती भाषा

काशीपुर : सबिहा कहती हैं कि उर्दू हो या संस्कृत, कोई भी भाषा किसी जाति व धर्म में भेद पैदा नहीं करती है। जब संस्कृत विषय लिया तो सहेली व मोहल्ले के लोग कहते थे कि सबिहा पंडित की पढ़ाई पढ़ रही है। जबकि ऐसा नहीं है। संस्कृत पढ़ने से अहसास हुआ कि ईश्वर एक है। पढ़ने व बोलने में यह विषय बहुत अच्छा लगता है। संस्कृत में बोलती हूं तो गर्व महसूस करती हूं। कक्षा सात में थी तो परिजन व सहेलियों को गजाननं भूतगणादि सेवितम्, कपित्थ जंबू फल चारु भक्षणम्, उमासुतं शोक विनाश कारकम, नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् छंद सुनाती थी तो लोग हंसते थे। बताया कि भविष्य में संस्कृत का ही शिक्षक बनना है।


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