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टिहरी झील से विलुप्त हुई मछलियों की दस प्रजाति, जानिए

टिहरी झील में स्थानीय मछलियों को विदेशी मछलियों से खतरा पैदा हो गया है। झील बनने से पूर्व नदी में पाई जाने वाली लगभग दस प्रजाति की मछलियां अब गायब हो चुकी हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 15 Feb 2019 11:17 AM (IST)Updated: Fri, 15 Feb 2019 09:20 PM (IST)
टिहरी झील से विलुप्त हुई मछलियों की दस प्रजाति, जानिए
टिहरी झील से विलुप्त हुई मछलियों की दस प्रजाति, जानिए

नई टिहरी, अनुराग उनियाल। 42 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली टिहरी झील में स्थानीय मछलियों को विदेशी कॉमन कार्प मछलियों से खतरा पैदा हो गया है। गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एनके अग्रवाल के शोध में यह बात सामने आई। शोध के अनुसार टिहरी झील बनने से पूर्व भागीरथी और भिलंगना नदी में पाई जाने वाली लगभग दस प्रजाति की मछलियां अब झील से गायब हो चुकी हैं।

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विदेशी कॉमन कार्प मछली की तेजी से बढ़ती संख्या इसकी प्रमुख वजह है। कॉमन कार्प के रहते स्थानीय मछलियों को झील में रहने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। अगर स्थानीय मछलियों को संरक्षण नहीं दिया गया तो आने वाले समय में यह पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगी। विदित हो कि प्रसिद्ध असेला मछली भी झील से विलुप्त हो चुकी है। 

वर्ष 2006 में टिहरी बांध की झील बनने से पूर्व भागीरथी और भिलंगना नदी में प्रसिद्ध स्थानीय मछली असेला समेत 13 अन्य प्रजाति की मछलियां पाई जाती थीं, लेकिन झील बनने के बाद इनमें से दस प्रजाति विलुप्त हो चुकी हैं। अब मात्र तीन स्थानीय प्रजाति की मछलियां ही झील में रह गई हैं। इनमें नाऊ, चौंगु और महाशीर प्रजाति शामिल हैं। बीते वर्ष देश के प्रतिष्ठित जर्नल 'कोल्ड वाटर फिशरीज' में गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के स्वामी रामतीर्थ परिसर बादशाहीथौल में जंतु विज्ञान के प्रोफेसर एनके अग्रवाल का इस संबंध में शोध प्रकाशित हुआ है। 

शोध के मुताबिक टिहरी झील में बीते कुछ सालों के दौरान विदेशी कॉमन कार्प मछली की संख्या तेजी से बढ़ी है। यह मछली आसानी से झील के पानी में स्थापित हो जाती है, जिससे स्थानीय मछलियों के वास और भोजन स्थल में कमी आई है। कॉमन कार्प ने स्थानीय मछलियों के रहने और खाने के स्थलों पर कब्जा जमा लिया है। अब स्थानीय मछलियां भागीरथी में चिन्यालीसौड़ से उत्तरकाशी की तरफ और भिलंगना में केवल घनसाली में ही मिल रही हैं। ऐसे में अगर स्थानीय मछलियों के वास स्थलों का संरक्षण नहीं हुआ तो कॉमन कार्प यहां से भी इन्हें बाहर कर देगी। 

स्थानीय मछलियों की विलुप्ति के कारण 

  • झील में विदेशी कॉमन कार्प का तेजी से विस्तार 
  • मछलियों के वास और आहार स्थलों का संरक्षण न होना 
  • स्थानीय मछलियों के प्रजनन स्थलों का खत्म होना 
  • झील की अधिक गहराई 

ऐसे संभव है संरक्षण

  • झील परिक्षेत्र में कॉमन कार्प के बजाय महाशीर मछली के बीज का संचयन 
  • झील के किनारे स्थानीय मत्स्य प्रजातियों के वास स्थलों का संरक्षण 

झील से विलुप्त हुई मछली प्रजाति 

असेला, असेला की तीन अन्य प्रजाति साइजोथोरेक्स रिचार्डसोनी, साइजोथोरेक्स प्लेजियोस्टोमस व साइजोथोरेक्स कर्वीप्रोन, मसीन,  खरोंट, गुंथला, फुलरा, गडियाल व नाऊ।

ऐसे आई विदेशी कॉमन कार्प 

मत्स्य विभाग की मानें तो उत्तरकाशी के कल्याणी में विभाग की हैचरी में कॉमन कार्प का सीड तैयार किया जाता था। करीब दस साल पहले बाढ़ के कारण हैचरी क्षतिग्रस्त होने से कॉमन कार्प भागीरथी में आ गई। इसके बाद इसकी संख्या बेहद तेजी से बढ़ी है। 

बोले अधिकारी 

आमोद नौटियाल (जिला मत्स्य अधिकारी, टिहरी गढ़वाल) का कहना है कि विभाग ने झील में द इंडियन मेजर कार्प के तहत रोहू, कतला और नैन मछली के बीज डाले थे। विदेशी कॉमन कार्प के बीज झील में नहीं डाले गए हैं। बावजूद इसके कॉमन कार्प ने पिछले कुछ सालों के दौरान झील में जगह बना ली है। इसकी रोकथाम कोप्रयास किए जा रहे हैं।

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