भगवान बदरी विशाल की गाड़ू घड़ा यात्रा हुई शुरू, ये है मान्यता
बदरी विशाल की गाड़ू घड़ा यानी अभिषेक तेल कलश यात्रा शुरू हो गई है। इसके लिए नरेंद्रनगर स्थित राजमहल में सुहागिनों ने तिलों से तेल पिरोया।
नई टिहरी, जेएनएन। श्री बदरीनाथ धाम गाड़ू घड़ा (अभिषेक तेल कलश) यात्रा के लिए नरेंद्रनगर स्थित राजमहल में सुहागिनों ने तिलों से तेल पिरोया। देर शाम तेल कलश यात्रा ऋषिकेश के लिए रवाना हो गई, जो नौ मई को बदरीनाथ धाम पहुंचेगी। दस मई को भगवान बदरी विशाल का इसी तेल से अभिषेक किया जाएगा।
महारानी मालाराज्य लक्ष्मी शाह उनकी पुत्री शीरजा ने बुधवार को स्थानीय सुहागिनों के साथ तेल पिरोया। राज पुरोहित संपूर्णानंद जोशी और पंडित हेतराम थपलियाल ने विधि विधान के साथ तेल कलश यात्रा के लिए तेल पिरोने की शुरुआत करवाई। डिमरी पंचायत के अध्यक्ष आशुतोष डिमरी ने बताया कि यात्रा देर शाम नरेंद्रनगर से ऋषिकेश के लिए रवाना हुई। ऋषिकेश में श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के चेला चेतराम धर्मशाला में यात्रा रात्रि विश्राम करेगी। 26 अप्रैल को डिम्मर गांव पहुंचेगी, जहां छह मई तक लक्ष्मीनारायण मंदिर में कलश यात्रा को गर्भ गृह में रखा जाएगा।
सात मई को यात्रा बदरीनाथ धाम के लिए रवाना होगी और नौ मई को बदरीनाथ धाम के गर्भ गृह में पहुंचेगी। 10 मई को ब्रह्म मुहूर्त में 4 बजकर 15 मिनट पर श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के दिन भगवान बदरीनाथ का इस तेल से अभिषेक किया जाएगा।
ये है मान्यता
मान्यता है कि टिहरी के राजा को भगवान बदरी विशाल का अवतार माना जाता है और उन्हीं की कुंडली देखकर बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने का शुभ मुहूर्त तय किया जाता है। इसलिए यहीं से बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू होती है।
चांदी के विशेष कलश में रखा जाता है तिलों का तेल
श्री बदरी विशाल का अभिषेक करने के लिए विशेष रूप से तिलों का तेल तैयार किया जाता है। तिलों का तेल सबसे शुद्ध माना जाता है, इसी कारण तिलों को पारंपरिक तरीके से सिलबट्टे और ओखली में पीसकर तेल बनाया जाता है। तेल को चांदी के कलश में रखा जाता है। इस कलश को डिमरी पंचायत और बदरीनाथ धाम के रावल के अलावा कोई छू भी नहीं सकता।
आपको बता दें कि भगवान बदरी विशाल के कपाट खुलने के दौरान उनका तिलों के तेल से अभिषेक किया जाता है। सदियों से टिहरी राजपरिवार ही अभिषेक के लिए प्रयुक्त होने वाले तिलों के तेल की व्यवस्था करता है। इस परंपरा के अनुसार सुहागिन महिलाएं और राजपरिवार की महिलाएं सिलबट्टे और ओखली में तिलों को पीस कर तेल निकालती हैं। उसके बाद तेल को पीले कपड़े से छानकर राजमहल में रखे एक विशेष बर्तन में रखकर आग पर गरम किया जाता है, जिससे उसमें से पानी का अंश निकल जाए।
इस प्रक्रिया के दौरान विधिवत रुप से मंत्रोचारण चलते रहते हैं। देर शाम तक तेल को गरम कर ठंडा करने के बाद चांदी के विशेष कलश में रखा जाता है। छह महीने तक बदरीनाथ धाम में प्रत्येक दिन ब्रह्म मुहूर्त में इसी विशेष तेल से उनका अभिषेक किया जाता है। इस बार सवा क्विंटल तिलों से तेल पिरोया गया है। डिम्मर पंचायत के अध्यक्ष आशुतोष डिमरी ने बताया कि सदियों से ही यह परंपरा चली आ रही है।
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