उत्तराखंड में मास्टर प्लान से बसे इस शहर में आबाद किया 'सेहत का गांव', जानिए
नई टिहरी मेें एक छोटा-सा जैविक गांव फूल-फल रहा है। लोगों की सेहत संवारने के लिए इस गांव को बसाया है आरके नाम मशहूर 65 वर्षीय फोटोग्राफर सुरेंद्र डबराल ने।
नई टिहरी, अनुराग उनियाल। उत्तराखंड में मास्टर प्लान से बसे एकमात्र शहर नई टिहरी मेें एक छोटा-सा जैविक गांव फूल-फल रहा है। लोगों की सेहत संवारने के लिए इस गांव को बसाया है 'आरके' नाम मशहूर 65 वर्षीय फोटोग्राफर सुरेंद्र डबराल ने। उन्होंने नौ साल पहले कैमरा छोड़कर जैविक खेती की राह पकड़ी और आज यह उनका जुनून बन चुकी है। उनकी बगिया में तैयार जैविक उत्पादों की सिर्फ टिहरी में ही, विदेशों तक में डिमांड है।
आज की भागादौड़ी भरी जिंदगी में बीमार होना सामान्य बात हो गई है। इसी को देखते हुए सुरेंद्र बीते नौ साल से जैविक खेती के फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं, जिससे लोग बीमारियों से दूर रह सकें।
इसके लिए उन्होंने वर्ष 2010 में नई टिहरी के बौराड़ी में गैस गोदाम के पास किराये पर लगभग पांच नाली (5800 वर्ग फीट) भूमि और एक टिन शेड लिया। यहां उन्होंने रोज मेरी (गुलमेंहदी), गेंठी, सरसों, लेमन ग्रास, चौलाई, गन्ना, फरड़ आदि की खेती करनी शुरू की। इसके अलावा सुरेंद्र ने आसपास के गांवों से कच्चे जैविक उत्पाद लेकर उनसे खाद्य पदार्थ बनाने की भी शुरुआत की। इससे उन्हें अच्छी-खासी इनकम हो जाती है। साथ ही गांव के पांच लोगों को भी वह रोजगार दे रहे हैं। इनमें चार महिलाएं भी हैं।
कभी नहीं रखा लाभ-हानि का हिसाब
सुरेंद्र बताते हैं कि रिसर्च और सामान खरीदने में जो भी लागत आती है, वह भी उत्पादों की बिक्री से वसूल हो जाती है। मुनाफा कमाना मेरा ध्येय नहीं है। मेरी कोशिश बस इतनी है कि लोग शुद्ध खानपान से अपने शरीर को स्वस्थ रखें और जैविक खेती के लिए प्रेरित हों। रही बात कमाई की तो स्वास्थ्यवद्र्धक उत्पादों
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जैविक उत्पादों की विदेशों में भी भारी डिमांड
सुरेंद्र डबराल के उत्पादों की डिमांड विदेशों तक में है। जापान, जर्मनी, थाईलैंड, डेनमार्ग और अमेरिका में रहने वाले प्रवासी उत्तराखंडी उनसे स्थानीय उत्पाद मंगाते हैं। इनमें लहसुन, मिर्च, गोभी आदि सब्जियों का अचार, जैविक दालें, एलोवेरा और गिलोय का जूस, सिरका वगैरह प्रमुख हैं। इसके अलावा नवरत्न आटा भी डबराल का प्रमुख उत्पाद है।
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