राजशाही के जमाने से मनाते आ रहे मौण मेला
मोहन थपलियाल, नैनबाग : टिहरी जनपद के जौनपुर ब्लॉक की संस्कृति की एक अलग पहचान है। मौण मेला यहां की स
मोहन थपलियाल, नैनबाग : टिहरी जनपद के जौनपुर ब्लॉक की संस्कृति की एक अलग पहचान है। मौण मेला यहां की संस्कृति विशिष्ट बनाता है। राजशाही के जमाने से ग्रामीण यह पर्व मनाते आ रहे है। इस पर्व पर ग्रामीण एकत्रित होकर नदी में मछली पकड़ने की प्रतियोगिता होती है। इस बार मौण मेला 28 जून को आयोजित होगा।
ब्लॉक जौनपुर में मौण मेला मनाए जाने की अनूठी परंपरा है। टिहरी नरेश रहे नरेंद्र शाह ने सन 1811 में स्वयं आकर अगलाड़ नदी में मौण डाली थी। इस मेले में पट्टी सिलवाड़, छच्यूला, अठच्यूला, लालूर, इडवालस्यूं, जौनसार सहित आसपास के 114 गांव के लोग शिरकत करते हैं। नदी में प्राकृतिक जड़ी टिमरू की बाहर की छाल को सुखा कर इसका पाउडर बनाते हैं। जिसको मौण कहते हैं। ग्रामीण बड़ी संख्या में अगलाड़ नदी में मौण डालकर देर तक मछली पकड़ते हैं। मौण को नदी में डालने से मछली पकड़ने में आसानी होती है। नदी में इस पाउडर को डालने से किसी भी जीव जंतु को हानि नहीं पहुंचती। हर साल अलग-अलग क्षेत्र से मौण लाई जाती है। ग्रामीणों स्वयं इसे स्वयं तैयार करते हैं। ़कुडियाला, फटियाला, जाल, कुंडाली का प्रयोग कर मछली पकड़ते हैं। इसके बाद सायं लोकनृत्य का अभी आयोजन होता है। मेले में महिलाएं भी दर्शक के रूप में नदी के आसपास जौनपुरी संस्कृति पर आधारित गीतों से लोगों का उत्साहवर्धन करते हैं। इस मेले को देखने के लिए बाहर से भी लोग पहुंचते है। इस बार मौण निकालने व इसे नदी में डालने की बारी पट्टी सिलगांव के ग्रामीणों की है। इसकी तैयारी में लोग जुट गए हैं। स्थानीय निवासी गजे ¨सह, प्यारेलाल नौटियाल, रणवीर ¨सह राणा, चमनदास का कहना हैं कि मौण मेला जौनपुर की लोक संस्कृति का हिस्सा है। सुबह पहले लोग नदी में मौण डालकर मछली पकड़ते है और उसके बाद हर हर में पछली बनाई जाती है। इसको बनाने का तरीका भी अलग होता है।