खतरे में है बुग्यालों की दुलर्भ वनस्पति, ये है इसकी बड़ी वजह
हिमालयी बुग्यालों की वनस्पति खतरे की जद में है और इसकी वजह जलवायु परिवर्तन के कारण बुग्यालों में भी निचले क्षेत्र के पेड़ उगना है।
नई टिहरी, [अनुराग उनियाल]: हिमालयी बुग्यालों (मखमली घास के मैदान) में भी जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। डीआरडीओ दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एसपी ङ्क्षसह के शोध में यह बात सामने आई है।
शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण अब बुग्यालों में भी निचले क्षेत्र के पेड़ उगने लगे हैं। जिससे बुग्यालों में पाई जाने वाली दुर्लभ वनस्पतियां खतरे की जद में आ गई हैं। इस पर ठोस कार्ययोजना बनाकर ही रोक लगाई जा सकती है।
गढ़वाल विश्वविद्यालय के स्वामी रामतीर्थ परिसर बादशाहीथौल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में यह शोध पत्र प्रस्तुत किया गया। कहा गया है कि पहले मानवीय दखल के चलते बुग्यालों की दुर्लभ वनस्पति खतरे की जद में थी, लेकिन अब बुग्यालों में उगने वाले निचले क्षेत्र के पेड़-पौधों ने वहां संपूर्ण परिवेश के लिए खतरा पैदा कर दिया है।
प्रो. एसपी सिंह ने बताया कि समुद्रतल से नौ हजार से 12 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित बुग्यालों में दुर्लभ औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं। जो कई तरह की असाध्य बीमारियों के उपचार में काम आती हैं। लेकिन, अब इन वनस्पतियों का अस्तित्व भी मौसम परिवर्तन के कारण खतरे में पड़ गया है। इससे वहां पाए जाने वाले वन्य जीवों की दिनचर्या पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
अगर इसी तेजी के साथ निचले क्षेत्र को पेड़-पौधे बुग्यालों में उगते रहे तो बुग्यालों का अस्तित्व मिटने में देर नहीं लगने वाली। प्रो. सिंह के अनुसार इस स्थिति पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कार्ययोजना बनाकर कार्य करना होगा। तभी बुग्याल बचे रह सकते हैं।
बुग्यालों में पाई जाने वाली वनस्पति
अतीस, दूधिया अतीश, कुटकी, कड़वी कुटकी, अर्चा गडऩी, मीठा विष, जटामासी, वन ककड़ी, चिरायता, ककोली, गुग्गल, सतवा, दूधिया सतवा, जीवक रसबक, शिल्पाहरी, हथजड़ी, पुष्करमोल, चोरु, कपूरकचरी, दौलू अरचा, वज्रदंती, रतनजोत, ब्रह्मकमल आदि।
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